गौरतलब है कि पन्ना में एक भी बृहद ऑद्योगिक इकाई नहीं है।जिले में रोजगार का प्रमुख साधन हीरा और पत्थर की खदानें थीं। जिनका अधिकांश हिस्सा बन क्षेत्र में चले जाने से खान बंद हो गया और जिले में भुखमरी के हालात बनने लगे थे। जिससे लोग काम की तलाश में महानगरों की ओर पलायन करने लगे। अब हालात यह है कि जिले की कुल आबादी का 10 से 15 फीसदी तक लोग पलायन कर जाते हैं।
कोरोनाकाल ने बढ़ाई थी परेशानी, नहीं मिले थे वाहन
कोरोना संकट के चलते पिछले डेढ़ वर्ष में बड़ी संख्या में लोगों ने पलायन किया है। लॉकडाउन के बाद महानगरों व पलायन करने वाले लोगों को लौटने के लिए वाहन नहीं मिल रहे थे। इससे लोगों के ट्रकों से माल वाहकों से व पैदल सैकड़ों किमी का सफर करना पड़ा। शहरों में रोजगार छूटने के बाद माकान का किराया सहित अन्य खर्चों के कारण ज्यादा दिन तक रुक भी नहीं पा रहे थे। मजबूरी में महानगरों से भागे।
गृह जिले में नहीं मिल पाया गया
पलायन करके लौटे हजारों लोगों को रोजगार देने के लिए कई कार्यक्रम चलाए गए लेकिन उनका मैदानी स्तर पर प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो सका। इसके परिणाम स्वरूप अनलॉक शुरू होने के साथ ही कोरोना की पहली लहर में पावस लौटे लोग एकबार फिर काम की तलाश में दूसरी लहर के बाद महानगरों को लौटने लगे। वर्तमान में हालात यह है कि कुल आबादी का 10 फीसदी से भी अधिक लोग पलायन किए हुए हैं। चुनाव लड़ रहे लोगों को अब इन्हीं वोटरों की चिंता सताने लगी है। इस कारण से चलायन करने वाले लोगों के परिवार के लोगों और रिस्तेदारों से तक फोन कराए जा रहे हैं। वोट डालने के लिए आने पर आने-जाने के किराए और काम के होने वाले नुकसान की भी भरपाई करने की बात कही जा रही है।