पाली। पर्वाधिराज पर्युषण, जिसमे जैन समाजबंधु धर्म आराधना में लीन रहते हैं। यह महापर्व तप-त्याग व अहिंसा के साथ समरसता के फूल खिलाता है। जिनसे साम्प्रदायिक सौहार्द की महक से जहां सराबोर हो जाता है। पाली में पर्युषण पर्व पर जैन समाज के श्रावक-श्राविकाओं के साथ अन्य धर्म के लोग भी जैन साधु व साध्वियों की निश्रा में आठ दिन तक जैन साधना में लीन रहते है। जैन समाजबंधुओं के समान ही उपवास व व्रत रखते है। वे अपने प्रतिष्ठान बंद रखकर साधु व पूजन वस्त्र पहनकर रोजाना व्याख्यान सुनने के साथ प्रतिक्रमण, सामायिक और अन्य जैन धर्म की धार्मिक क्रियाएं करते हैं। समापना पर क्षमायाचना करते हैं।
प्रतिष्ठान रखता हूं बंद
पर्युषण में आराधना करने वाले माली समाज के घमंडीराम बताते है कि हम पर्युषण में दुकान बंद रखते है। स्थानक में आठ दिन तक साधु वस्त्र पहनकर रोजाना व्याख्यान सुनने के साथ प्रतिक्रमण आदि करते है। उन्होंने बताया कि हमारे गुरु रुपमुनि की कृपा से पर्युषण कर रहा हूं। पर्युषण में तो कम से कम रात्रि भोजन का त्याग रहता है। यहां आकर सामायिक आदि भी करते है।
बचपन में सीखा नवकार मंत्र
ब्राह्मण श्यामलाल शर्मा बताते है कि हमारे घर के पास मंदिर था। मेरे दोस्त जैन थे। उनके साथ जाकर मंदिर में नवकार मंत्र सीखा। उन्होंने बताया कि वे वर्ष 1996 से पर्युषण कर रहे है। पहले तो वे उपाश्रय में ही पर्युषण के आठ दिन रहते थे। अब व्याख्यान सुनने के बाद घर जाते है। उन्होंने बताया कि वे साधु-संतों की सेवा में भी रहते है। जैन समाज के धर्म स्थलों की भी यात्रा की।
पर्युषण में करते है उपवास
निम्बाड़ा गांव के साहेब खां पिछले 40 साल से पर्युषण के दौरान व्रत व उपवास करते है। वे बताते है कि जैन समाजबंधुओं के सम्पर्क था। मेरे मित्र केवलचंद धोका के साथ उपाश्रय आना शुरू किया। परिवार व समाज ने मना किया तो मन के भावाें के कारण पर्युषण में उपवास जारी रखा और आज भी आराधना कर रहा हूं। वे आठ दिन उपाश्रय में ही रहते है। गांव नहीं जाते है।