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वो कल तक भरता था खुशी के रंग, आज खुद की दुनिया हो गई बेरंग

आंखों की रोशनी जाती रही, आंसू बयां करते हैं दर्द, बेटे को कैंसर ने घेरा

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Rajendra Singh Denok

Dec 21, 2016

रायपुर. मारवाड़ (पाली). दिल्ली शहर में कई मकानों की दीवारों पर रंगरोगन कर परिवार का पेट पालने वाले शंकरलाल की दुनिया आज बेरंग हो गई है। आंखों की रोशनी चले जाने के बाद बेरोजगारी ने इस परिवार को जकड़ लिया। सबसे बड़े बेटे राजू ने परिवार का जिम्मा संभाला तो कैंसर ने उसे हमेशा के लिए चारपाई पर लेटा दिया। दिल्ली शहर की महंगाई ने इस परिवार को गांव लौटने पर विवश कर दिया, लेकिन मुसीबतें गांव लौटने पर भी खत्म नहीं हुई। यहां आकर देखा तो अपनी जमीन पर अपनों ने ही कब्जा कर लिया। अब टूटे झोपड़े में किस्मत को कोस रहे इस परिवार को सरकारी मदद की दरकार है। जीवन के 50 बसंत देख चुके दीपावास निवासी शंकरलाल मेघवाल ने साक्षर पत्नी मंजू के साथ जीवन की नई शुरुआत की थी। गांव में मजदूरी से जब परिवार का गुजारा नहीं चला तो पलायन कर दिल्ली शहर जा पहुंचे। जहां रंगरोगन का काम शुरू किया। परिवार में भी खुशी के रंग बिखरे तो जिदंगी चल पड़ी। शंकरलाल के दो पुत्र व पांच पुत्रियां हैं। दिल्ली में रंगरोगन के सहारे दो बेटियों के हाथ पीले कर दिए। बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दिलाई। दो साल पहले इस परिवार की खुशियों को न जाने किसकी नजर लग गई। शंकरलाल की आंखों की रोशनी चली गई। बड़े बेटे राजू ने रंगरोगन का काम शुरू किया लेकिन कैंसर ने उसे जकड़ लिया। अपनी आंखों का इलाज कराने की बजाय जीवन भर की कमाई बेटे के उपचार में पूरी कर दी। बावजूद इसके राजू की बीमारी दूर न हो सकी। अब राजू की रीढ़ की हड्डी में कमजोरी आ गई। इससे वह अब खाट से उठ नहीं सकता। छोटे बेटे पप्पू ने परिवार की कमान संभाली, लेकिन इसकी मजदूरी से अंधे पिता, लाचार मां, कैंसर पीडि़त बड़े भाई व तीन बहनों की परवरिश न हो सकी। ऐसे में ये परिवार पिछले माह दिल्ली से लौटकर दीपावास चला आया। यहां आकर पुश्तैनी जमीन पर खेतीबाड़ी कर गुजारा करने की मंशा पर उस समय पानी फिर गया जब उस जमीन पर अपनों को ही काबिज देखा। कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन अब तक न्याय मिलने में लम्बे इंतजार का सामना करना पड़ेगा।

अब तो मौत आ जाए तो बेहतर है

टूटे झोपड़े में जैसे-तैसे रह रहे इस परिवार का नाम न तो बीपीएल में है और न ही भामाशाह कार्ड बना है। राशन कार्ड है लेकिन सामग्री नहीं मिल रही। बेटियां पढ़ी लिखी हैं लेकिन नौकरी नहीं है। शंकरलाल निराश होकर कहता है अब ऊपरवाले से विश्वास उठ चुका है। अब तो मौत आ जाए तो ही बेहतर है।

पूरी मदद करेंगे

इस परिवार को हर संभव मदद दिलाएंगे। पटवारी को भेज रिपोर्ट मंगवाएंगे। साथ ही बीपीएल में नाम जुड़वा भामाशाह कार्ड बनाकर सरकारी मदद भी दिलाएंगे। बेटे का सरकारी खर्च पर ईलाज कराने की भी व्यवस्था करवाते हैं।

मोहनलाल खटनावलिया, उपखण्ड अधिकारी, रायपुर

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