ऐसा ही एक माता का स्थान रानी उपखण्ड के रानीकलां गांव की पहाड़ी पर स्थित है। जहां चामुण्डा माता की महिमा अपरम्पार है। नवरात्र के नौ दिनों में यहां बडी संख्या में लोग पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं। मंदिर में गेंहू कि घूगरी एवं मात का विशेष भोग लगता है। बताया जाता है कि यह माता का स्थान भाद्रजून थुमड़ा माता के स्थान का प्रतिरूप है। जो रियासतकाल में जोधपुर रियासत द्वारा सर सुखदेव प्रसाद काक को रानीकलां की जागीर मिलने के बाद हुए किले के निर्माण के समय भी माता स्थान मौजूद था। जिसे बाद में भव्य मंदिर के रूप में बनाया गया।
मंदिर के पुजारी परिवार के मोहनसिंह राजपुरोहित ने बताया कि इस वर्ष मंदिर समिति एवं ग्रामीणों द्वारा कोविड दिशा निर्देशों के अनुरूप दर्शन की व्यवस्था करवाई है। मंदिर की एक खासियत यह भी है कि इसके स्थापित अखण्ड जोत का धुआं काला नहीं होता है। उसका कार्बन केसर के रंग का होता है। मान्यता है कि पुजारी परिवार की एक वृद्ध महिला किसी समय मंदिर में दीपक करती थी। उसे दीपक के नीचे प्रतिदिन एक सोने का सिक्का मिलता था।
महिला को माता का वरदान था कि जब कभी इस रहस्य का पर्दा उठ जाएगा तक सिक्क्का मिलना बन्द हो जाएगा। एक बार परिवारजनों एवं ग्रामीणों द्वारा परेशान करने पर वृद्ध महिला ने इस रहस्य की जानकारी उजागर कर दी। तब से अखण्ड जोत से सिक्का मिलना बन्द हो गया, लेकिन चमत्कार स्वरूप उसका धुआं एवं कालिख केसर के रंग की हो गई। जो आज भी मंदिर में आस्था की जोत के रूप में विद्यमान है।