सांस्कृतिक मूल्यों की छोड़ी छाप, भारत का बढ़ाया गौरव
पाली मूल की दीप्ति कटारिया ने मिस्र में भारत और भारत के सांस्कृतिक मूल्यों की छाप छोड़ी है। वे भारतीय समुदाय की अध्यक्ष है। पुणे विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और काहिरा के अमरीकी विश्वविद्यालय से बिजनेस में डिप्लोमा करने के बाद लंबे समय से मिस्र में निवास कर रही हैं। दीप्ति ने इंडिया फाउंडेशन और अंतरराष्ट्रीय धम्म धर्म सम्मेलन जैसे प्रतिष्ठित मंचों पर भारत का गौरव बढ़ाया। उन्हें यूके की ऑनलाइन गुरुकुल शाखा की पहली कार्यवाह होने का प्रतिष्ठित खिताब भी हासिल है। उन्होंने वेदों का गहन अध्ययन किया है।
पाली मूल की दीप्ति कटारिया ने मिस्र में भारत और भारत के सांस्कृतिक मूल्यों की छाप छोड़ी है। वे भारतीय समुदाय की अध्यक्ष है। पुणे विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और काहिरा के अमरीकी विश्वविद्यालय से बिजनेस में डिप्लोमा करने के बाद लंबे समय से मिस्र में निवास कर रही हैं। दीप्ति ने इंडिया फाउंडेशन और अंतरराष्ट्रीय धम्म धर्म सम्मेलन जैसे प्रतिष्ठित मंचों पर भारत का गौरव बढ़ाया। उन्हें यूके की ऑनलाइन गुरुकुल शाखा की पहली कार्यवाह होने का प्रतिष्ठित खिताब भी हासिल है। उन्होंने वेदों का गहन अध्ययन किया है।
मंदिरों का विज्ञान, भावनात्मक बुद्धिमत्ता, हिंदू परिप्रेक्ष्य में पर्यावरण, महिलाओं की मानसिक शक्ति, आयुर्वेद और वेदांत जैसे विषय पर उनकी गहरी पकड़ है। वे मिस्र ही नहीं दुनिया के कई देशों में भारतीय संस्कृति और परम्परागत ज्ञान का परचम लहरा रही है। दीप्ति का कहना है कि हमारे देश का नाम भारत ही रहना चाहिए। यह शब्द सुनने मात्र से ही मन में खुशी होती है।
यूरोप में भाटी आगे बढ़ा रहे विरासत
नॉर्दन यूरोप के एस्टोनिया में सॉफ्टवेयर कंपनी के डिपार्टमेंट हैड मूलसिंह भाटी विदेश में भी भारतीय संस्कृति और संस्कारों को नहीं भूलते। भारतीयता उनके दिल और दिमाग में हमेशा छाई रहती है। भाटी का कहना है कि दुनिया में भारत की एक खास पहचान है।
नॉर्दन यूरोप के एस्टोनिया में सॉफ्टवेयर कंपनी के डिपार्टमेंट हैड मूलसिंह भाटी विदेश में भी भारतीय संस्कृति और संस्कारों को नहीं भूलते। भारतीयता उनके दिल और दिमाग में हमेशा छाई रहती है। भाटी का कहना है कि दुनिया में भारत की एक खास पहचान है।
सांस्कृतिक और ज्ञान-विज्ञान के लिहाज से हमारा देश सदैव समृद्ध और गौरवशाली रहा है। इसी कारण विश्व गुरु के रूप में भी पहचान मिली। भारत शब्द से ही अपनेपन का अहसास होता है। ऐसे में हमारी विरासत को ही आगे बढ़ाना चाहिए।