राजसमंद सांसद दीयाकुमारी के दखल के बाद केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत वन उप महानिरीक्षक डॉ. सोनाली घोष ने चार सदस्यों की यह कमेटी गठित की है। इसमें बतौर विशेषज्ञ रिटायर्ड आईएफएस आर. एन. मेहरोत्रा, रिटायर्ड आईएफएस एनके वासु, भारतीय वन्यजीव संस्थान की टाइगर सेल में कार्यरत वैज्ञानिक डॉ. कौशिक बनर्जी को सदस्य और क्षेत्रीय कार्यालय नागपुर के सहायक वन महानिरीक्षक हेमंत कामड़ी को समन्वयक सदस्य नियुक्त किया गया है। यह कमेटी कुंभलगढ़ अभयारण्य में मानवीय बस्तियों की मौजूदा स्थिति, बाघों के अनुकूल पर्यावास, बाउंड्री, लैंडस्केप कनेक्टिविटी, अतिक्रमण की स्थिति आदि बिंदुओं पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी।
कुंभलगढ़ से क्या है हमारा नाता
236 वर्ग किलोमीटर में अरावली पर्वतमाला में फैला अभयारण्य राजसमंद, उदयपुर और पाली जिले तक है। अभयारण्य का हरा-भरा क्षेत्र मेवाड़ और मारवाड़ की विभाजन रेखा मानी जाती है। अरावली की चार मुख्य पर्वत शृंखलाएं इस क्षेत्र में आती है। इनमें कुंभलगढ़ रेंज, सादड़ी रेंज, देसूरी रेंज और बोखड़ा रेंज में 22 गांव बसे हुए हैं। अभयारण्य मुख्य रूप से मैदानी और पहाड़ी दो क्षेत्रों में बंटा हुआ है, मैदानी क्षेत्र के अंदर गांव के लोग खेती-बाड़ी करते हैं।
236 वर्ग किलोमीटर में अरावली पर्वतमाला में फैला अभयारण्य राजसमंद, उदयपुर और पाली जिले तक है। अभयारण्य का हरा-भरा क्षेत्र मेवाड़ और मारवाड़ की विभाजन रेखा मानी जाती है। अरावली की चार मुख्य पर्वत शृंखलाएं इस क्षेत्र में आती है। इनमें कुंभलगढ़ रेंज, सादड़ी रेंज, देसूरी रेंज और बोखड़ा रेंज में 22 गांव बसे हुए हैं। अभयारण्य मुख्य रूप से मैदानी और पहाड़ी दो क्षेत्रों में बंटा हुआ है, मैदानी क्षेत्र के अंदर गांव के लोग खेती-बाड़ी करते हैं।
कुंभलगढ़ में 70 के दशक तक रहे हैं टाइगर
कुंभलगढ़ में टाइगर के लिए लगभग पूरा बेस तैयार है। बड़ी वजह यह भी है कि कुंभलगढ़ अभयारण्य में 70 के दशक तक बाघों का विचरण था। कुंभलगढ़ और पाली के जंगलों में 250 साल पहले तक बाघों की संख्या काफी थी, लेकिन, धीरे-धीरे इस क्षेत्र से बाघ खत्म हो गए। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि यहां रामगढ़ (बूंदा) के मुकाबले ज्यादा कोर एरिया है। कुंभलगढ़ अभयारण्य से रावली टॉडगढ़ का लम्बा क्षेत्र टाइगर के लिए अनुकूल है। सेंचुरी में सफारी पहले से चल रही है। इसके लिए अलग से तैयारी भी नहीं करनी पड़ेगी। उदयपुर-राजसमंद में हर साल 10 लाख से ज्यादा देसी-विदेशी पर्यटक आते हैं। यही सैलानी उदयपुर से राजसमंद के रास्ते मारवाड़ में प्रवेश करते हैं। कुंभलगढ़ में बाघ को बसाने की योजना एक दशक पूर्व रिटायर्ड आईएफएस (वाइल्ड लाइफ) राहुल भटनागर के निर्देशन में शुरू हुई थी।
कुंभलगढ़ में टाइगर के लिए लगभग पूरा बेस तैयार है। बड़ी वजह यह भी है कि कुंभलगढ़ अभयारण्य में 70 के दशक तक बाघों का विचरण था। कुंभलगढ़ और पाली के जंगलों में 250 साल पहले तक बाघों की संख्या काफी थी, लेकिन, धीरे-धीरे इस क्षेत्र से बाघ खत्म हो गए। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि यहां रामगढ़ (बूंदा) के मुकाबले ज्यादा कोर एरिया है। कुंभलगढ़ अभयारण्य से रावली टॉडगढ़ का लम्बा क्षेत्र टाइगर के लिए अनुकूल है। सेंचुरी में सफारी पहले से चल रही है। इसके लिए अलग से तैयारी भी नहीं करनी पड़ेगी। उदयपुर-राजसमंद में हर साल 10 लाख से ज्यादा देसी-विदेशी पर्यटक आते हैं। यही सैलानी उदयपुर से राजसमंद के रास्ते मारवाड़ में प्रवेश करते हैं। कुंभलगढ़ में बाघ को बसाने की योजना एक दशक पूर्व रिटायर्ड आईएफएस (वाइल्ड लाइफ) राहुल भटनागर के निर्देशन में शुरू हुई थी।
संशोधित हुआ प्रस्ताव
वन विभाग ने यहां बाघ छोडऩे के लिए अपना पहला प्रस्ताव काफी पहले सरकार को भेज दिया था, लेकिन उस प्रस्ताव को कुछ संशोधित करने के लिए फिर से वन विभाग को भेजा गया। इस प्रस्ताव में बाघ संरक्षित क्षेत्र में 355 वर्ग किमी एरिया को बढ़ाकर 380 किमी किया गया है। नए प्रस्ताव में 2 किमी क्षेत्र में 75 और 5 किमी की क्षेत्र में 85 गांव आते हैं। इसमें पाली सीमा में लगते सेवंत्री, उमरवास, रूपनगर, बागोल, कोट, पनोता, सुमेर, गांथी, लापी, मण्डीगढ़ और राजपुरा शामिल हैं।
वन विभाग ने यहां बाघ छोडऩे के लिए अपना पहला प्रस्ताव काफी पहले सरकार को भेज दिया था, लेकिन उस प्रस्ताव को कुछ संशोधित करने के लिए फिर से वन विभाग को भेजा गया। इस प्रस्ताव में बाघ संरक्षित क्षेत्र में 355 वर्ग किमी एरिया को बढ़ाकर 380 किमी किया गया है। नए प्रस्ताव में 2 किमी क्षेत्र में 75 और 5 किमी की क्षेत्र में 85 गांव आते हैं। इसमें पाली सीमा में लगते सेवंत्री, उमरवास, रूपनगर, बागोल, कोट, पनोता, सुमेर, गांथी, लापी, मण्डीगढ़ और राजपुरा शामिल हैं।