इमरान अब तक के सबसे भाग्यशाली प्रधानमंत्रियों में से एक हैं। अधिकांश पूर्ववर्तियों की तरह उन्हें कभी भी ताकतवर सैन्य प्रतिष्ठान की तरफ से समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ा। विपक्ष कमजोर और बंटा हुआ है। उनके कष्ट भरे दिनों की शुरुआत सितंबर से हुई, जब उनकी पार्टी सैन्य आवासीय क्षेत्रों में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में बुरी तरह से हार गई थी।
इस हार ने उन्हें दिखा दिया कि ज्यादा समय तक सैन्यबलों के बीच उनकी लोकप्रियता कायम रहने वाली नहीं है। फिर दिसंबर में खैबर पख्तूनख्वा में स्थानीय निकाय चुनाव हुए। इमरान की पार्टी 2013 से ही इस प्रांत पर शासन करती रही है। फिर भी इस चुनाव में उसे प्रांत के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण शहरों में पराजय मिली।
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यह वक्त न पदयात्रा का, न शक्ति प्रदर्शन का हार के कारणों को समझने के बजाए उन्होंने पार्टी के संगठन को ही भंग कर दिया। इमरान को लगता है कि खैबर पख्तूनख्वा में उनकी पार्टी की हार की वजह सही प्रत्याशियों का चयन न होना था। लेकिन उनके कुछ निकटस्थ अलग सोचते हैं और बढ़ती महंगाई को हार की वजह मानते हैं। दरअसल, दक्षिण एशिया में पाकिस्तान मुद्रास्फीति की उच्चतम दरों का सामना कर रहा है। पाकिस्तानी रुपए ने अमरीकी डॉलर के मुकाबले पिछले सभी रेकॉर्ड तोड़ दिए हैं।
जिन लोगों ने वर्ष 2018 में इमरान खान की पार्टी को वोट दिए थे, वे अब उनके प्रदर्शन से असंतुष्ट हैं। पिछले तीन वर्षों में उनकी सरकार ने चार वित्त मंत्री और छह वित्त सचिव देखे हैं। वह आर्थिक संकट के लिए पिछली सरकारों के भ्रष्टाचार को दोषी ठहराते रहे हैं, पर खुद उनकी सरकार कोई सुधार करने में विफल रही है। उनकी विदेश नीति एक अन्य मुसीबत है। काबुल पर कब्जा किए जाने के बाद उन्होंने तुरंत ही अफगान तालिबान को गले लगा लिया।
उन्होंने इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआइसी) की विशेष बैठक इस्लामाबाद में आयोजित करके तालिबान शासन की मदद करने की कोशिश की। पर तालिबान ने न सिर्फ सीमा पर बाड़ लगाने की पाक सेना की कोशिशों में हस्तक्षेप किया है बल्कि कुछ स्थानों पर फायरिंग भी की है। दिलचस्प बात यह है कि अफगान तालिबान का समर्थन कर रहे इमरान को पाकिस्तान में तालिबान समर्थकों का समर्थन नहीं मिल पा रहा है।
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भारतीय मूल के प्रवासियों का भी बढ़ जाएगा प्रभावकुछ खबरों के मुताबिक, आइएसआइ के नए मुखिया ले.जन. नदीम अहमद अंजुम तटस्थ रहना चाहते हैं। यदि यह सच है तो खान के लिए संसद में अविश्वास प्रस्ताव से पार पाना मुश्किलभरा होगा जहां उनका बहुमत बहुत कम है। इमरान देश के बाहर से फंड अनियमितता मामले में चुनाव आयोग की जांच का भी सामना कर रहे हैं। इमरान के लिए, यह एकमात्र संभावित आपदा नहीं है जिसका कि उन्हें इस साल सामना करना पड़ सकता है।