सूत्रों की ओर से दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान ने इस बैठक में सिर्फ इसलिए हिस्सा नहीं लिया था, क्योंकि चीन को अमरीका ने निमंत्रित नहीं किया था। इस कदम को अमरीका की विश्व को बांटने की रणनीति माना जा रहा है, क्योंकि एक तरफ तो उसने ताईवान को बुलाया था मगर चीन और रूस को वर्चुअल बैठक में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित नहीं किया था। इसमें 100 से अधिक देशों को बुलाया गया था।
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पाकिस्तान के इसमें हिस्सा नहीं लेने के रूख की चीन ने तारीफ की है और उसे वास्तव में लौह बिरादर का करार दिया। हालांकि, पाकिसानी अधिकारी इसे चीन के साथ जोड़ने से बच रहे हैं, लेकिन सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि चीन के विरोध के चलते पाकिस्तान ने इसमें हिस्सा नहीं लिया था। पाकिस्तान विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि वह अमरीका के साथ अपने संबंधों को तरजीह देता है और इन्हें आगे ले जाने का इच्छुक है। कुरैशी ने पहले तो अपने समकक्ष से बात करने की कोशिश की थी, लेकिन उनके साथ कोई संपर्क नहीं होने के बाद उन्होंने उप विदेश मंत्री से टेलीफोन पर बातचीत की ।
शरमन की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि इस बातचीत में कुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान बड़े देशों के किसी भी गुट के साथ नहीं होना चाहता है और अफगानिस्तान के मामले में वह अमरीका के साथ संबंधों को आगे ले जाने का इच्छुक है। कुरैशी ने कहा कि यह एक सकारात्मक घटनाक्रम है और पाकिस्तान ने अमरीका से आग्रह किया है कि वह उसे बड़े देशों की गुटबाजी में शामिल करके कठिन स्थिति में नहीं डाले।
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पाकिस्तान भू राजनीतिक स्थिति के बजाय भू-आर्थिक स्थिति को अधिक पसंद करता है और यह हमें अपने आपको बदलने में मदद कर सकता है। कुरैशी ने यह भी कहा कि उन्होंने अमरीका को इस बारे में जानकारी दी कि हम सभी देशों के साथ सकारात्मक संबंध चाहते हैं और हमारा मानना है कि अमरीका हमारा अहम सहयोगी है और आगे भी रहेगा। हमारे संबंधों में काफी उतार चढ़ाव आए हैं लेकिन दोनों देश जब भी मिलकर काम करते हैं तो इसका फायदा उन्हें ही होता है।
वहीं, विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान ने अमरीका के इस न्योते को अस्वीकार कर राजनयिक स्तर पर अच्छा काम नहीं किया है और इसके प्रतिकूल आर्थिक परिणाम सामने आ सकते हैं तथा पश्चिमी देशों के समक्ष उसकी स्थिति और कमजोर हो सकती है।