बहरहाल, वाशिंगटन में पाकिस्तानी दूतावास के स्थानीय रूप से भर्ती किए गए संविदा कर्मचारियों में से कम से कम पांच को अगस्त 2021 से अपने मासिक वेतन के भुगतान में देरी और गैर-भुगतान का सामना करना पड़ा। मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि पांच प्रभावितों में से एक कर्मचारी जो पिछले दस वर्षों से दूतावास में काम कर रहा था, उन्होंने देरी और भुगतान नहीं होने के कारण सितंबर में इस्तीफा दे दिया।
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पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था किसी से छिपी नहीं है। बढ़ती महंगाई और भूखमरी ने आम जनता की कमर तोड़ रखी है। प्रधानमंत्री इमरान खान अक्सर अपने देश की गरीबी का रोना कभी सोशल मीडिया पर तो कभी टीवी पर रोते दिखाई दे जाते हैं। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि इमरान सरकार अब अधिकारियों और कर्मचारियों को वेतन भी देने की स्थिति में नहीं है। यही हालत विदेशों में नियुक्त पाकिस्तानी अधिकारियों और कर्मचारियों की भी है।
इन अवैतनिक स्थानीय कर्मचारियों को दूतावास द्वारा वार्षिक अनुबंध के आधार पर काम पर रखा गया था और मिशन के लिए बेयर-मिनिमम सैलेरी पर काम किया था, जो प्रति व्यक्ति प्रति माह 2,000 से 2,500 डॉलर तक होता है।
स्थानीय कर्मचारियों, चाहे स्थायी हों या संविदात्मक, को स्वास्थ्य लाभ सहित विदेश कार्यालय के कर्मचारियों को मिलने वाले भत्ते और विशेषाधिकार नहीं मिलते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू कर्मचारियों को आमतौर पर ‘कॉन्सुलर सेक्शन’ की मदद के लिए काम पर रखा जाता है, जो प्रवासी भारतीयों को वीजा, पासपोर्ट, नोटराइजेशन और अन्य कॉन्सुलर सेवाएं प्रदान करता है।
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सूत्रों ने कहा कि ऐसे कर्मचारियों को पाकिस्तान कम्युनिटी वेलफेयर (पीसीडब्ल्यू) फंड से भुगतान किया जाता है, जो स्थानीय रूप से सेवा शुल्क के माध्यम से उत्पन्न होता है और फिर स्थानीय रूप से भी वितरित किया जाता है। स्थिति से परिचित सूत्रों का कहना है कि पीसीडब्ल्यू फंड पिछले साल ध्वस्त हो गया क्योंकि कोविड-19 महामारी के बाद वेंटिलेटर और अन्य चिकित्सा उपकरण खरीदने के लिए पैसे का इस्तेमाल किया गया था।