मेरा सपना सच हो गया
नितेश ने कहा, मेरा सपना सच हो गया। विश्व के दिग्गजों के बीच अपने आप को सिद्ध करके मैंने देश को पदक दिलाया। पैरालंपिक की योग्यता प्राप्त करने के बाद दिन-रात मेरे मन में यही चलता रहता था कि वहां मैं ऐसा प्रदर्शन कर पाऊंगा। लेकिन देशवासियों की दुआओं, परिजनों और मेरे कोच के आशीर्वाद से मैंने अपने पहले पैरालंपिक खेलों में ही स्वर्ण पदक जीत लिया। मैं इस सफलता को शब्दों में बयां नहीं कर सकता।
एक हादसे ने फुटबॉलर से बना दिया शटलर
नितेश ने बताया कि बचपन से ही मुझे खेलों से लगाव था और मैं फुटबॉलर बनना चाहता था। मेरे पापा नौसेना में थे, इसलिए उनकी सर्विस के दौरान सभी जगह खेलों का वातावरण मिला। 2009 में आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में एक ट्रेन दुर्घटना में मेरा बायां पैर चोटिल हो गया। कई महीनों तक बिस्तर पर पड़ा रहा। तब मेरे पापा ने मेरा हौसला बढ़ाया। उसके बाद मैंने आईआईटी प्रवेश परीक्षा पास की। 2013 में मंडी आइआइटी में दाखिला लिया। वहां मैंने पढ़ाई का दबाव कम करने के लिए बैडमिंटन खेलना शुरू किया।
जयपुर से ही शुरू हुआ सफर
नितेश मंडी से जब छुट्टियों के दौरान जयपुर अपने घर आए तो उनकी मुलाकात सवाई मानसिंह स्टेडियम में कार्यरत बैडमिंटन कोच यादवेंद्र से हुई। नितेश ने बताया कि कोच ने मुझे बैडमिंटन को गंभीरता से लेने की सलाह दी। उसके बाद मैंने बैडमिंटन का जमकर अभ्यास किया। 2016 में मैंने अंतरराष्ट्रीय पदार्पण किया और एक साल बाद ही आयरिश पैरा-बैडमिंटन में अपना पहला खिताब जीता। बाद में बीडब्लूएफ पैरा बैडमिंटन वल्र्ड सर्किट के मुकाबले खेले। 2022 में हांगझाऊ (चीन) एशियाई पैरा खेलों में स्वर्ण पदक जीता और एसएल-3 श्रेणी में दुनिया का नंबर तीन खिलाड़ी बन गया। सही मायनों में जयपुर से ही मेरे इस सफर की शुरुआत हुई थी।
मुकाबला कड़ा था, पर मैं पॉजिटिव था
नितेश ने कहा, पैरालंपिक में मेरा फाइनल मुकाबला बेहद कड़ा था। मैं अपने विपक्षी खिलाड़ी ब्रिटेन के डेनियल बेथेल से कई बार हार चुका था, ऊपर से फाइनल का दबाव भी था, लेकिन मैच से पहले मैंने यही सोचा की आज का मुकाबला मैं ही जीतूंगा क्योंकि पिछले मैच भी मैंने लगातार जीते थे। एक-एक पाइंट की लड़ाई हो रही थी। पर आज मेरा दिन था और अंत में मेरी ही जीत हुई और देश को एक और स्वर्ण पदक मिल गया। ये मेरे जीवन का सबसे यादगार क्षण है।
बेहद प्रतिभाशाली हैं नितेश: कोच
वहीं, राजस्थान राज्य क्रीड़ा परिषद के वरिष्ठ बैडमिंटन कोच यादवेंद्र सिंह ने बताया कि जब नितेश स्टेडियम में मेरे पास आया तब वह मंडी में पढ़ाई कर रहा था उसका परिवार जयपुर में ही था। मैंने उसे पैरा बैडमिंटन के बारे में बताया और कहा कि तुम यहां अभ्यास करो। मैंने उसे बैडमिंटन के तकनीकी पहलुओं से अवगत कराया। मैं उस पर निगरानी रखता था। फिर उसकी प्रतिभा निखरती चली गई है और विश्व बैडमिंटन प्रतियोगिता में उसने अपना सिक्का जमाया। पेरिस में भी जब वह मुझसे मिला तो मैंने उसे यही भरोसा दिलाया कि वह यहां स्वर्ण पदक जरूर जीतेगा और उसने कर दिखाया।