सेना के जवानों ने किया प्रेरित
जम्मू-कश्मीर की शीतल ने बताया कि 2019 में मैंने सेना के एक कार्यक्रम में भाग लिया था, वहां सेना के जवानों ने मुझे खेलने को प्रेरित किया। उन्होंने ही तीरंदाजी कोच से बात करके मुझे कोचिंग देने को कहा। मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि तीरंदाजी ही मेरे जीवन का मकसद बन जाएगी। शीतल ने महज 17 साल की उम्र में पेरिस पैरालंपिक में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा था।डर और घबराहट नहीं थी
अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित हो चुकीं शीतल ने कहा, पेरिस पैरालंपिक के दौरान मैं डरी हुई नहीं थी। पहला पैरालंपिक होने के कारण थोड़ा नर्वस थी, लेकिन जैसे ही तीरंदाजी एरेना में उतरी सब गायब हो गया। बस मेरे मन में यही था कि मुझे देश के लिए पदक जीतना है। शीतल ने कहा कि माता वैष्णो देवी और मेरी मां दोनों का आशीर्वाद हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाता है। उन्हीं की कृपा से मैं आज यहां तक पहुंची हूं। यह भी पढ़ें