2028 के लिए नई रणनीति बनानी होगी
भारत सरकार ने एथलीटों पर 400 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए। एथलीटों पर पैसा खर्च करना अच्छी बात है, लेकिन हमें यह भी देखने की जरूरत है कि परिणाम क्या हासिल हो रहा है? मुझे लगता है कि उन्हें 2028 में होने वाले अगले ओलंपिक से पहले गंभीरता से सोचना होगा और नई रणनीति बनानी होगी, जिससे हमारे खिलाड़ी पदक जीतने के दावेदार बन सकें।
अब खिलाड़ियों को भी जवाबदेही होना चाहिए
मेरा मानना है कि सरकार और खेल फेडरेशनों के बाद अब खिलाड़ियों को भी जवाबदेही होना चाहिए। युगांडा, क्यूबा, फिलिपींस, अल्जीरिया जैसे छोटे-छोटे देशों के एथलीट कम सुविधाएं मिलने के बावजूद गोल्ड मेडल जीत रहे हैं लेकिन हम उनके बराबर भी नहीं पहुंच पा रहे, जो चिंताजनक है। हमारे क्षिलाडि़यों में जज्बे की कमी दिखाई देती है। उनके अंदर जब तक जीतने की भूख नहीं होगी, तब तक वे ओलंपिक जैसे बड़े मंच पर पदक नहीं जीत सकेंगे। हमारे खिलाड़ियों को सीखना होगा कि जीतना कैसे है। हॉकी ने उम्मीद की लौं जलाई
लगातार दूसरे ओलंपिक खेलों में पदक जीतकर हॉकी ने उम्मीद की लौं जला दी है। मेजर ध्यानचंद के समय पर हॉकी में हमारा दबदबा था और हर ओलंपिक में हम स्वर्ण पदक जीतते थे। हम भले ही पेरिस में स्वर्ण पदक नहीं जीत सके, लेकिन लगातार दूसरी बार कांस्य जीतकर हमने अब दोबारा पदक जीतने की परंपरा कायम कर ली है। अब हमें लगता है कि हम पदक तो जरूर जीतेंगे, भले ही उसका रंग कोई भी हो। बस यह ख्याल रखने की जरूरत है कि खिलाडि़यों का ध्यान ना भटके और वह अगले ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बारे में सोचे।