विजय गर्ग, आर्थिक विशेषज्ञ और भारतीय एवं विदेशी कर प्रणाली के जानकार देश में सरकारी कार्यालयों का स्वरूप पिछले कुछ वर्षों में कॉरपोरेट ऑफिस की तरह बदला है। सरकारी इंफ्रास्ट्रक्चर में बदलाव के बावजूद, क्या कर्मचारियों के व्यवहार और कार्यप्रणाली में भी कोई बदलाव आया है? यह सवाल आज भी अनुत्तरित है। सरकार करोड़ों रुपए […]
विजय गर्ग, आर्थिक विशेषज्ञ और भारतीय एवं विदेशी कर प्रणाली के जानकार
देश में सरकारी कार्यालयों का स्वरूप पिछले कुछ वर्षों में कॉरपोरेट ऑफिस की तरह बदला है। सरकारी इंफ्रास्ट्रक्चर में बदलाव के बावजूद, क्या कर्मचारियों के व्यवहार और कार्यप्रणाली में भी कोई बदलाव आया है? यह सवाल आज भी अनुत्तरित है। सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर ऑफिसेज को नया लुक दे रही है, पर कर्मचारियों के काम करने के तरीके पर कोई खास कदम नहीं उठाए गए हैं। भारत में सरकारी व्यवस्था का इतिहास प्राचीनकाल से जुड़ा है। सम्राट अशोक, समुद्रगुप्त या मुगलों के शासन काल में भी जनता के लिए एक प्रणाली थी। अंग्रेजों ने 1947 में भारत छोडऩे के बाद लगभग 250 जिलों में एक प्रशासनिक ढांचा स्थापित किया, जिसे स्वतंत्र भारत में जारी रखा गया। आज भी हमें अंग्रेजी शासनकाल में बने सरकारी कार्यालय देखने को मिलते हैं। देश के संविधान के बाद, सरकारी कार्यप्रणाली को सुव्यवस्थित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच दायित्वों का निर्धारण किया गया। सरकारी कार्यालयों में अक्सर जनता को जाने की जरूरत होती है, लेकिन पिछले कुछ सालों में तकनीकी विकास से कई काम ऑनलाइन हो गए हैं।
हालांकि, यह दावा पूरी तरह सच नहीं है, क्योंकि कई मामलों में जनता को अब भी ऑफिसों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। बात करें सरकारी कर्मचारियों की तो उनका व्यवहार पहले से और अधिक निराशाजनक हुआ है। इसका एक कारण यह है कि सरकारी कर्मचारियों की भर्ती में कमी आई है और अब कई कार्यालयों में संविदा कर्मचारियों की संख्या बढ़ी है। ये संविदा कर्मचारी जिम्मेदारी से कम कार्य करते हैं और जनता के प्रति इनकी जवाबदेही बहुत सीमित होती है। इससे कार्यों में गति की बजाय अड़चनें बढ़ी हैं। सरकार ने कर्मचारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कुछ नियम भी बनाए हैं। उदाहरण के लिए, सीसीएस पेंशन नियमों के तहत 56 (जे) के अनुसार, अगर कोई सरकारी कर्मचारी सेवा में बने रहने के योग्य नहीं है तो उसे सेवानिवृत्त किया जा सकता है। कई अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत्त भी किया गया है। इसके बावजूद कर्मचारियों में सुधार की खास उम्मीद नजर नहीं आती। सरकारी कर्मचारियों के लिए एक आम शिकायत यह रही है कि उनके कार्यालयों का ढांचा पहले से बेहतर नहीं था। हालांकि, अब यह समस्या हल हो रही है, क्योंकि सरकारी कार्यालय कॉरपोरेट ऑफिस की तरह अच्छे हो रहे हैं। फिर भी, काम में कोई तेजी नहीं आई है।
कई सरकारी कर्मचारियों का बहाना यह रहता है कि कंप्यूटर नहीं चल रहा है, सर्वर डाउन और अन्य तकनीकी समस्याएं आ रही हैं। यह सिर्फ बहाने बनाने का तरीका लगता है और सरकार को ऐसे कर्मचारियों की निगरानी करनी चाहिए। इसके अलावा, अधिकारियों द्वारा जनता से मिलने के लिए निर्धारित समय भी कई बार केवल दिखावा साबित होते हैं। अधिकारी उस समय अपनी मीटिंग में व्यस्त होते या किसी दौरे पर चले जाते और जनता घंटों इंतजार करती रहती है। इस प्रकार के अधिकारियों की जवाबदेही तय हो। एक अन्य समस्या यह है कि सरकारी कर्मचारियों द्वारा फाइलों की नोटशीट में कई बार ऐसी टिप्पणियां डाली जाती हैं, जो काम को लटका या रोक देती हैं। सिटीजन चार्टर के तहत कार्यों की समयबद्धता तय की गई है, लेकिन काम समय पर पूरा नहीं हो पाता। अक्सर कर्मचारियों द्वारा लोगों से सुविधा शुल्क की मांग की जाती है, जो पूरी तरह से अनैतिक है। ऐसे कर्मचारियों को चिह्नित करना और उन्हें सजा देना जरूरी है।
इससे साफ है कि सरकारी कार्यालयों और कर्मचारियों के व्यवहार में सुधार की बहुत जरूरत है। सरकार को न केवल कार्यालयों की सुविधाएं बढ़ानी चाहिए, बल्कि कर्मचारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियम भी लागू करने चाहिए। यदि जनता अपने काम को जल्दी और आसानी से नहीं करा पा रही है, तो सरकार को इसके लिए ठोस कदम उठाने होंगे। आज देश का हर नागरिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से टैक्स देता है और सरकारी खर्चों में उसकी हिस्सेदारी होती है। सरकारी कार्यालयों में जनता को राहत देने के लिए केवल सुविधाओं का विकास नहीं, बल्कि कर्मचारियों की कार्यप्रणाली में भी बदलाव जरूरी है। सरकार को एक मजबूत मॉनिटरिंग सिस्टम और जवाबदेही की दिशा में काम करना होगा, ताकि सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और तत्परता लाई जा सके।
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