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Patrika Opinion: राजनीति से गायब क्यों है साफ हवा का मुद्दा

Patrika Opinion: पांच राज्यों में होने जा रहे चुनावों में भी प्रदूषण मुद्दा नहीं है। इसलिए राजनीतिक दल इस पर चर्चा भी नहीं कर रहे। आम आदमी को प्रदूषण को लेकर सरकारों से सवाल करने होंगे। राजनीतिक दलों पर भी दबाव बनाना होगा कि चुनावी एजेंडे में साफ हवा-पानी को भी शामिल किया जाए।

Jan 13, 2022 / 01:28 pm

Giriraj Sharma

Why is the issue of clean air missing from politics?

Patrika Opinion: देश के 9 शहर प्रदूषण के मामले में दुनिया के शीर्ष 10 शहरों में शामिल हैं। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि विश्व के शीर्ष 50 प्रदूषित शहरों में 43 शहर तो भारत के ही हैं। प्रदूषण की स्थिति को लेकर हम दुनिया में नौवें नंबर पर हैं। येे आंकड़े डराते हैं। आखिर हम किस दिशा की ओर बढ़ रहे हैं? क्या हम साफ हवा में सांस भी नहीं ले सकते हैं? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या बिगड़े हालात केे लिए कहीं हम खुद ही तो जिम्मेदार नहीं हैं?

आंकड़े बताते हैं कि हम पूरे साल वायु प्रदूषण की चपेट में जीवन जीते हैं। बरसात के वक्त जरूर हमें इससे कुछ राहत मिल जाती है, लेकिन शेष समय इसके साथ रहना ही पड़ता है। इस प्रदूषण के लिए एक बड़ा कारक मौसम भी है, मगर इसे छोड़ भी दें तो दूसरा बड़ा कारण कारखानों और वाहनों से निकलता धुआं है।

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शहरों में वाहनों का लगने वाला जाम भी वायु प्रदूषण का कारण बन रहा है। जाम के चलते सर्दियों में एक ही जगह पर वाहनों से ज्यादा धुआं निकलता है। इसलिए इन इलाकों में वायु प्रदूषण का स्तर काफी हद तक ज्यादा होता है। दुनिया के शीर्ष प्रदूषित 20 देशों में दस अकेले उत्तर प्रदेश से आते हैं, इनमें लखनऊ और कानपुर जैसे शहर भी हैं।

सवाल यह है कि आखिर सरकारें इस मुद्दे पर गंभीर क्यों नहीं हैं? क्यों नहीं एयर क्वालिटी इंडेक्स को सुधारने की कोशिश की जाती है? विकसित देशों में इसको लेकर जिस तरह की गंभीरता है, वैसी भारत में नहीं दिखती। जापान, फ्रांस, अमरीका, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे देशों से हम कब सीखेंगे? इन देशों में सर्दियां में भी प्रदूषण का स्तर कम है। दूसरी ओर, हमारे यहां पर सर्दियों में प्रदूषण का स्तर सबसे ज्यादा होता है।

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मुश्किल यह है कि चुनावों में भी प्रदूषण का मुद्दा गायब रहता है। पांच राज्यों में होने जा रहे चुनावों में भी प्रदूषण मुद्दा नहीं है। इसलिए राजनीतिक दल इस पर चर्चा भी नहीं कर रहे। आम आदमी को प्रदूषण को लेकर सरकारों से सवाल करने होंगे। राजनीतिक दलों पर भी दबाव बनाना होगा कि चुनावी एजेंडे में साफ हवा-पानी को भी शामिल किया जाए।

समय आ गया है कि जब पार्टियों के घोषणा पत्रों में स्वच्छ हवा की बात प्राथमिकता से की जाए। इस तरह के मुद्दों पर सरकारों को गंभीर होना ही होगा। अगर हमने अभी सुधरने का प्रयास नहीं किया, तो आने वाला समय ज्यादा खराब होगा। समय रहते हुए प्रयास शुरू होंगे तो परिणाम भी जल्द ही सामने आएंगे और खतरे की गंभीरता कम हो जाएगी।

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