scriptआपकी बातः केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की कार्यशैली बार-बार विवाद के घेरे में क्यों आ जाती है? | Why is the functioning of the CBFC repeatedly under controversy? | Patrika News
ओपिनियन

आपकी बातः केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की कार्यशैली बार-बार विवाद के घेरे में क्यों आ जाती है?

अनेक पाठकों ने प्रतिक्रया व्यक्त की है। प्रस्तुत हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं –

Jul 25, 2023 / 10:08 pm

Nitin Kumar

आपकी बातः केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की कार्यशैली बार-बार विवाद के घेरे में क्यों आ जाती है?

आपकी बातः केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की कार्यशैली बार-बार विवाद के घेरे में क्यों आ जाती है?

फिल्मों में होता है गलत दृश्यों का इस्तेमाल

केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की कार्यशैली बार-बार विवाद के घेरे में आती रही है। इसकी मुख्य वजह सामाजिक व धार्मिक मानी जा सकती है। वैधानिक संस्था, जो फिल्मों को प्रमाणित करती है, फिल्मों में कोई दृश्य ऐसे डाल दिए जाते हैं, जो किसी जाति, धर्म, सम्प्रदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले हों, तथ्यों से परे हों, ज्यादा नग्नता वाले दृश्य हों, कहानी को तोड़-मरोड़कर पेश किया हो, जिनसे बचना चाहिए। ऐसी फिल्मों को सर्टिफिकेट देने से पहले पूर्णरूप से जांच-पड़ताल कर लेने के बाद ही प्रसारण की अनुमति दी जानी चाहिए।
– शिवजी लाल मीना, जयपुर

……………………

फिल्म के किरदार स्तर को करते हैं पार

केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड या सेंसर बोर्ड भारत सरकार के संचार और सूचना प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आता हैं। इस बोर्ड का काम कोई भी फिल्म और टीवी धारावाहिक इत्यादि को बनने के बाद देखना होता है। इसके सदस्यों की समीक्षा के बाद ही यहां से प्रमाणपत्र जारी होते हैं जिससे कोई भी फिल्म या धारावाहिक जनता को दिखाए जाते हैं। लेकिन कई बार इनकी कहानियों में पात्र स्तर के अनुसार भाषा नहीं बोलते हैं तथा कथानक में भी ऐतिहासिक बातों में भी फेरबदल कर कुछ और ही दिखा दिया जाता हैं। लोगों की भावना आहत होने पर हंगामा होता है। विवाद के घेरे में सेंसर बोर्ड का आना स्वाभाविक है। सेंसर बोर्ड को अच्छी तरह से फिल्मों को देखकर और आवश्यक सुधार करवाकर ही प्रमाण पत्र जारी करना चाहिए।
-निर्मला देवी वशिष्ठ, राजगढ़

……………………

गाइडलाइन के दायरे में रहकर काम करने की जरूरत

विवाद मुक्त रहने के लिए निरपेक्ष भाव से गाइडलाइन के दायरे में रहकर काम करने की जरूरत होती है। किंतु सेंसर बोर्ड के कर्ताधर्ता अनेक बार स्वयं के स्वार्थ, राजनीतिक दबाव या अन्य किसी प्रभाव से मुक्त नहीं होते। परिणाम यह होता है कि निर्णय विवादास्पद होते हैं।
-विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

……………………

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय करे सख्त निर्देश जारी

देश का सांप्रदायिक सद्भाव, पौराणिक मान्यताओं एवं धार्मिक आस्थाओं पर कुठाराघात करने वाली फिल्मों को फिल्म प्रमाणन बोर्ड किसी भी हालत में रिलीज न होने दें। विवादित, जन भावनाओं के खिलाफ एवं देश को अस्थिर करने वाली कुछ फिल्में पिछले दिनों जितनी आसानी से रिलीज होकर आ गईं उससे निश्चित रूप से केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लगा है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय यह सख्त निर्देश जारी करे कि किसी भी स्थिति में विवादित फिल्म प्रदर्शन के लिए रिलीज न की जाए। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड, ऐसी फिल्में जिनके डायलॉग, कंटेंट और आपत्तिजनक सीन के कारण विवाद की स्थिति हो सकती है ऐसी फिल्मों को अपने मापदंडों एवं अधिनियम के तहत ही रिलीज होने की अनुमति प्रदान करे।
-सतीश उपाध्याय, मनेंद्रगढ़, छत्तीसगढ़

……………………

गौरवमयी इतिहास की छवि धूमिल होती है

फिल्में मनोरंजन, प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक होनी चाहिए, जो समाज के हित में हों। उन्हें कैटेगरी के हिसाब से ही प्रमाणित करना चाहिए| देश के गौरवमयी इतिहास को तोड़-मरोड़ कर बनाई फिल्मों को अनुमति देना उन शूरवीरों की छवि को धूमिल करता है| पद्मावत फिल्म भी काफी चर्चा में रही| जनता के विद्रोह के बाद फालतू के सीन हटाए गए थे। अभी हाल ही में हॉलीवुड फिल्म ओपेनहाइमर से भागवत गीता वाले सीन को हटाए जाने की मांग शुरू हो गई है| निर्माताओं को बिना तथ्य फिल्मों का निर्माण नहीं करना चाहिए। बड़ा ही ताज्जुब होता है कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड अश्लील और फूहड़ फिल्मों को आसानी से जनता के सामने पेश करने के लिए पास कर देते हैं। क्या बोर्ड मेंबर आंखे मूंद कर बैठे हैं?
-अरविन्द विजयवर्गीय, बूंदी (राज.)

……………………

फिल्में सरकार के विरोधियों से निपटने का हथियार

केन्द्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड की स्थापना फिल्म निर्माताओं की निरंकुशता को रोकने के लिए की गई थी, जो फिल्मों के प्रमाणन मे दिखाई नहीं दे रही है। आज की फिल्में, सरकार के राजनीतिक या वैचारिक विरोधियों से निपटने का हथियार बन गई हैं। हालिया दिनों मे रिलीज हुई अनेक फिल्मों के प्रमाणन ने राजनीतिक, धार्मिक और समाज के विभिन्न तबकों की भावनाओं को भड़काने के कार्य किए हैं जिनसे बोर्ड की कार्यशैली विवादों में बनी हुई है।
-नरेश कानूनगो, देवास, मध्यप्रदेश
……………………

उल्लंघन करने वाले फिल्म निर्माताओं पर लगना चाहिए जुर्माना

केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की कार्यशैली को विवादों से रोकने के लिए देश में कड़े कानून बनाने की जरूरत है। फिल्म निर्माताओं को फिल्म के निर्माण के समय लोगों की सभ्यता, संस्कृति, भावनाओं, अमर्यादित भाषाओं व चित्रण पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए और इसके लिए कानून में कड़े प्रावधान करने चाहिए और कानून के उल्लंघन करने वाले फिल्म निर्माताओं पर जुर्माने के साथ इनके लाइसेंस रद्द कर गैर-जमानती धाराओं में केस दर्ज कर सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए।
-आलोक वालिम्बे, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

……………………

सेंसरबोर्ड संवेदनहीन लोगों की संस्था

सनातन हिंदूधर्म के पूजनीय भगवानों पर फूहड़ संवादों युक्त आपत्तिजनक दृश्यों की अनदेखी क्यों की गई? क्या सेंसर बोर्ड के सारे पदाधिकारी विदेशी हैं? क्या उन्हें भारत की संस्कृति सभ्यता नहीं मालूम? मानसिक और आर्थिक भ्रष्टाचार स्पष्ट प्रतीत होता है। केंद्र सरकार सेंसर बोर्ड के वर्तमान प्रमुख को हटाकर कोई नया जिम्मेदार, संवेदनशील, समाजशास्त्री, धर्मज्ञानी को पदासीन करे, अन्यथा कहीं सामाजिक वाद-विवाद हिंसा का रूप धारण न कर ले।
-मुकेश भटनागर, भिलाई, छत्तीसगढ़

……………………

भावनाओं को ठेस पहुंचा रही फिल्में

सेंसर बोर्ड फिल्मों के अनुचित दृश्यों, सांस्कृतिक विरासत पर गलत कहानी, तथ्यों की अपूर्ण जांच और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली फिल्म को भी पास कर देता है, जो इसकी कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है। दर्शकों की भावनाओं को आहत करने वाली फिल्मों को सर्टिफिकेट जारी नहीं किया जाना चाहिए।
– आर्यन वीर, सूरतगढ़, (राज.)

……………………

अपने उद्देश्यों से भटका केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड

सेंसरशिप विचारों और विचारधाराओं की सार्वजनिक अभिव्यक्ति को प्रतिबंधित करने की प्रक्रिया है क्योंकि वे समाज की नैतिकता और अखंडता को कमजोर कर सकते हैं। यह सरकार के लिए मीडिया को नियंत्रित करने का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है। इसी सेंसर बोर्ड के माध्यम से निर्मित फिल्मों का परीक्षण किया जाता है, सभी मापदंडों पर सटीक सिद्ध होने पर ही प्रदर्शित होने की अनुमित दी जाती है,लेकिन शायद बोर्ड अपने कर्तव्यों से भटक गया है। आज वो सभी कुछ दिखाया जा रहा है जिसकी शायद आवश्यकता नहीं है। युवा पीढ़ी को उत्तेजक विषयों के माध्यम से भ्रमित किया जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि सेंसर बोर्ड अपनी भूमिका से भटक गया है।
डॉ.अजिता शर्मा, उदयपुर

……………………

लोग समझ गए हैं चर्चा में आने के दांवपेच

जब भी कोई बड़ा काम किया जाता है तो उस वक्त हमें इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि इस कार्य से कोई समूह विशेष आहत तो नहीं हो रहा है, इससे किसी की भावनाओं को चोट तो नहीं पहुंच रही है। चूंकि इस तरह के कार्य में अत्यधिक धनराशि का व्यय होता है और जब यह किसी विवाद के घेरे में फंस जाता है तो बहुत बड़ा नुकसान झेलना पड़ता है। आजकल तो एक चलन-सा हो गया है जिसमें लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना तथा चर्चा में आना सही माना जाता है। परन्तु यह सब ज्यादा दिनों की बात नहीं होती लोग इतनी जल्दी झांसे में नहीं आते। वक्त के साथ-साथ सभी इन चीजों को समझने लगे हैं और जिसका परिणाम यह देखने को मिलने लगा है।
-सरिता प्रसाद, पटना

……………………

भावनाओं के साथ हो रहा खिलवाड़

केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा सबकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है वह भी केवल सस्ती लोकप्रियता को हासिल करने के लिए। फिल्म को प्रदर्शित किए जाने से पहले प्रमाणीकरण में चूक होने की बात कोई नई नहीं है। बोर्ड के लोग खुद को या निम्न दर्जे की फिल्म को देश भर में चर्चा में लाने हेतु खुद के नियम कायदे भूल रहे हैं। इस तरह से जन भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है। जो एक इतने बड़े ओहदे वाली संस्था को शोभा नहीं देता और न ही कोई हक देता है कि वह किसी की भावना से खिलवाड़ करे।
-सुशील पूनिया, हनुमानगढ़

……………………

विरोध के लिए ही विरोध करना भी अच्छी आदत नहीं

बोर्ड के निर्णायक की नियुक्ति पर भी विवाद है तो उसकी कार्यशैली पर तो विवाद अवश्यंभावी है। अक्सर फिल्म प्रमाणन बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति पर विवाद होता रहता है तथा उनकी कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लगते रहते हैं क्योंकि सभी मामलों में पारदर्शिता का अभाव रहता है। लेकिन फिर भी कुछ लोगों ने विरोध करना और निर्णय को गलत बताना ही अपनी रोजी-रोटी का साधन बना रखा है। हमेशा महज विरोध के लिए ही विरोध करना भी अच्छी आदत नहीं है। फिल्म प्रमाणन बोर्ड का कार्य भी बहुत लंबा कठिन और समय लगने वाला है इसलिए भी सटीक निर्णय होने में चूक होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। प्रजातंत्र में नियमानुसार विरोध करना और अपनी बात रखने का अधिकार भी सब लोगों के पास है, यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है।
-डॉ माधव सिंह, श्रीमाधोपुर

Hindi News / Opinion / आपकी बातः केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की कार्यशैली बार-बार विवाद के घेरे में क्यों आ जाती है?

ट्रेंडिंग वीडियो