ओपिनियन

अपनाना होगा जल-संवेदनशील शहरी नियोजन

चरम मौसमी घटनाओं की मार: क्षेत्रीय जल विज्ञान और बाढ़ जोखिम प्रबंधन के साथ हो शहरी विकास का तालमेल

जयपुरOct 09, 2024 / 10:46 pm

Nitin Kumar

रिसर्च एनालिस्ट कार्तिकेय चतुर्वेदी और सीनियर प्रोग्राम लीड नितिन बस्सी काउंसिल ऑन एनर्जी, इनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) से जुड़े हैं
………………………………………………………………………………..
मानसून इस वर्ष भी अपनी विदाई के साथ देश के कई हिस्सों में विनाशकारी बाढ़ का सिलसिला छोड़ गया है। बीते दिनों गुवाहाटी, विजयवाड़ा, जयपुर, भोपाल और हैदराबाद जैसे कई क्षेत्रों ने भारी बारिश व बाढ़ का सामना किया, जबकि गुजरात के मोरबी और द्वारका जिलों में जितनी बारिश हुई, उतनी बारिश 50 वर्षों में शायद एक बार होने की संभावना होती है। हाल ही में बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे कई राज्यों ने भारी बारिश का सामना किया है। ऐसी स्थितियों में अनियोजित और तेज शहरीकरण मौसम की चरम घटनाओं की गंभीरता को बढ़ा देता है। इससे पानी का तेज बहाव, बाढ़ और शहरों में जलभराव जैसे कई मामले सामने आते हैं।
तेज शहरीकरण ने भूमि उपयोग के पैटर्न में बदलाव किया है। इससे इमारत, सडक़ और फुटपाथ जैसे ग्रे-इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़े हैं। इससे जल निकायों और प्राकृतिक भू-दृश्य (नेचुरल लैंडस्केप) जैसे ब्लू-ग्रीन स्थानों को सीधा नुकसान पहुंचा है। ऐसे शहरी नियोजन ने प्राकृतिक जल निकासी तंत्र को बाधित किया है और झीलों व तालाबों जैसे महत्त्वपूर्ण जल निकायों पर अतिक्रमण किया है, जो तूफानी बारिश के पानी को सोखने (नेचुरल स्पंज) का काम करते रहे हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली ने अपनी झीलों के एक चौथाई हिस्से पर, जबकि ठाणे ने झील पुनर्निर्माण के बहाने महत्त्वपूर्ण अतिक्रमण देखा है। इससे रायलदेवी और उपवन जैसी प्रमुख झीलों का आकार घटा है, जिसने उनकी जल धारण क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। भविष्य में बाढ़ों को रोकने और उनके प्रभावों को घटाने के लिए, शहरों में तत्काल ऐसे जल-संवेदनशील शहरी नियोजन को अपनाने की जरूरत है, जिसमें क्षेत्रीय जल विज्ञान और बाढ़ नियोजन के साथ शहरी विकास का तालमेल हो। भारतीय शहर इन तीन तरीकों से ऐसा कर सकते हैं। पहला, शहरी प्राधिकरणों को अत्यधिक बारीकी से बारिश व भूमि संबंधी आंकड़े जुटाने चाहिए। इससे प्रशासन शहरी बाढ़ से जुड़ी सभी बारीकियों को शामिल कर क्रियान्वयन योग्य रणनीतियां बनाने में सहायक सशक्त बुनियादी सूची तैयार कर सकेगा। काउंसिल ऑन एनर्जी, इनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) ने ठाणे एक्शन प्लान फॉर फ्लड रिस्क मैनेजमेंट 2024 विकसित किया है, जिसमें बारिश के सटीक तीव्रता-अवधि-आवृत्ति वक्र (इंटेंसिटी-ड्यूरेशन-फ्रीक्वेंसी कर्व) के विकास के लिए वार्ड स्तर के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। इसने ठाणे नगर निगम को बीते वर्ष हुई वर्षा के रुझानों का आकलन करने और उच्च बाढ़ जल प्रवाह वाली अवधियों और क्षेत्रों का अनुमान लगाने में सहायता की है। इससे यह भी पता चला कि मौजूदा जल निकासी प्रणाली इन स्थितियों का सामना कर सकती है या नहीं। ऐसे ही बारीक आंकड़ों पर आधारित नियोजन मौजूदा जल निकासी प्रणालियों की पर्याप्तता को चिह्नित करने में मदद करता है और बेहतर दीर्घकालिक बाढ़ नियोजन को सक्षम बनाता है।
दूसरा तरीका बाढ़ की प्रमुख जगहों (हॉटस्पॉट) को चिह्नित करने पर आधारित है। इससे निवेश और हस्तक्षेप की प्राथमिकता तय करने में मदद मिल सकती है। साथ ही बाढ़ जोखिम प्रबंधन के लिए प्रभावी कदम सुनिश्चित किए जा सकते हैं। बाढ़ के प्रतिकूल प्रभाव कम हों, इसके लिए लघु और मध्यम अवधि की रणनीतियों को स्थानीय प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियां मजबूत बनाने, तूफानी बारिश के लिए जल निकासी प्रणाली का रखरखाव सुधारने और प्रभावी सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्रोत्साहित करने पर ध्यान देना चाहिए। इस मामले में छत्तीसगढ़ का अंबिकापुर अपने महिला-नेतृत्व वाले सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट कार्यक्रम के साथ अग्रणी है। इसमें कचरे को उसके स्रोत पर ही छांटना शामिल है और यह शहर के लिए राजस्व भी सृजित करता है। दीर्घकालिक रणनीतियों के तहत जल निकासी प्रणाली का नेटवर्क बढ़ाने, सीवरेज और तूफानी बारिश के पानी का निकासी तंत्र अलग करने, जो कि भारतीय शहरों में अक्सर एक ही होता है – और शहरी नियोजन में प्रकृति-आधारित समाधान शामिल करने पर ध्यान देना चाहिए। इसमें पब्लिक पार्क की योजना बनाते समय वर्षा उद्यानों (रेन गार्डन) की अवधारणा को मुख्यधारा में लाना, ऑन-साइट स्टॉर्म वॉटर मैनेजमेंट (तूफानी बारिश के प्रवाह को नियंत्रित करना) और जल निकायों की मरम्मत व पुनर्बहाली शामिल है। उदाहरण के लिए, बेंगलूरु ने पुट्टेनहल्ली झील का कायाकल्प किया है और अपनी जैव विविधता बढ़ाने के लिए एक ‘शहरी जंगल’ (अर्बन जंगल) विकसित किया है।
तीसरा तरीका शहरी स्तर पर फ्लड रिस्क मैनेजमेंट इंडेक्स (बाढ़ जोखिम प्रबंधन सूचकांक) बनाने से संबंधित है। यह अन्य शहरों के मजबूत प्रयासों से सीखने का मंच प्रदान करते हुए यूएलबी को अपनी प्रगति और हस्तक्षेपों का मूल्यांकन करने में मदद कर सकता है। शहरों को बाढ़ प्रतिरोधक क्षमता सुधारने के लिए एक लक्षित रूपरेखा देने के साथ यह इंडेक्स उनके ब्लू-ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर, तूफानी पानी की निकासी और जल-प्रबंधन की कुशलता का आकलन भी कर सकता है। हर एक बीतते वर्ष के साथ जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव और तेज होते जाएंगे। बाढ़ से निपटने के लिए सिर्फ बचाव अभियान पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि कई और कदम उठाने होंगे। शहरों के लिए तत्काल जल-संवेदनशील नियोजन रूपरेखा बनाने की जरूरत है। बाढ़ के प्रति प्रभावी प्रतिरोधकता लाने के लिए एस.एम.ए.आर.टी. (स्मार्ट) – स्पेसिफिक (विशिष्ट), मेजरेबल (मापनीय), एचीवेबल (प्राप्त करने योग्य), रियलिस्टिक (यथार्थवादी) और टाइम-सेंसिटिव (समय के प्रति संवेदनशील) – दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।

Hindi News / Prime / Opinion / अपनाना होगा जल-संवेदनशील शहरी नियोजन

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.