कर्नाटक में कांग्रेस की पदयात्रा सिर्फ एक बानगी है। देश के हर राज्य में, हर राजनीतिक दल और उनके नेताओं का व्यवहार एक-सा लगता है। सत्ता में बैठे राजनीतिक दल हों या विपक्षी दल, कोविड प्रतिबंधों की धज्जियां उड़ाने में कोई पीछे नहीं है। राजनीतिक दलों का आचरण भी सवालों के घेरे में है। सरकार ने हजारों पदयात्रियों को रोकने के लिए जरूरी कदम क्यों नहीं उठाए? यह कह देना काफी नहीं कि उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी।
मैकडाटू परियोजना कर्नाटक और तमिलनाडु सरकारों के बीच लंबे समय से विवाद का कारण बनी हुई है। आज इस परियोजना के शीघ्र क्रियान्वयन की बात कर रही कांग्रेस ने भी 2013 से 2018 तक कर्नाटक सरकार का नेतृत्व किया है। उसे बताना चाहिए कि अपने पांच साल के कार्यकाल में वह इसे पूरा क्यों नहीं कर पाई? उस दौर में विपक्षी दल के रूप में भाजपा, कांग्रेस को घेरा करती थी पर आज भाजपा खुद निशाने पर है। खेद की बात यह है कि राजनीतिक दल जनहित के मुद्दों पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आते।
देश में अनेक राज्यों के बीच पेयजल परियोजनाओं को लेकर विवाद जारी हैं। ये विवाद कभी सड़क पर तो कभी न्यायालय की दहलीज पर टकराते नजर आ जाते हैं। बेहतर हो कि राजनीतिक मिल-बैठकर विवादों का हल निकालें। नतीजा नहीं निकले तो पदयात्रा, जुलूस और प्रदर्शन भी करें।
पर यह समय न पदयात्रा का है, न शक्ति प्रदर्शन का। कोरोना पर रोकथाम को लेकर कांग्रेस नेता केंद्र को सुझाव देते रहते हैं, ट्वीट भी करते हैं और पत्र भी लिखते हैं। नेताओं को इस समय समझदारी से काम लेना चाहिए। पदयात्रा स्थगित भी की जा सकती है। सवाल कर्नाटक की जनता का ही नहीं, समूचे देश का है।