जी-20 के अध्यक्ष के तौर पर भारत के समक्ष हैं कई चुनौतियां
भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिल गई है। जी-20 दुनिया की बीस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का समूह है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा तय करता है। रणनीतिक दृष्टिकोण और भविष्य में इसकी भूमिका के मद्देनजर जी-20 का भावी शिखर सम्मेलन श्रीनगर में कराने की संभावना है। जी-20 का अध्यक्ष होने के नाते भारत के सामने कई चुनौतियां हैं।
जी-20 के अध्यक्ष के तौर पर भारत के समक्ष हैं कई चुनौतियां
के.एस. तोमर
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिल गई है। जी-20 दुनिया की बीस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का समूह है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा तय करता है। रणनीतिक दृष्टिकोण और भविष्य में इसकी भूमिका के मद्देनजर जी-20 का भावी शिखर सम्मेलन श्रीनगर में कराने की संभावना है। जी-20 का अध्यक्ष होने के नाते भारत के सामने कई चुनौतियां हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि पहली बात तो यह कि वैश्विक आर्थिक और विकास मुद्दों को एक दूसरे के सहयोग और प्रतिबद्धता के साथ संबोधित करने के उद्देश्य से इस संगठन को बनाया गया था। रोटेशन के आधार पर भारत को अध्यक्षता सौंपी गई है। भारत को वैश्विक मुद्दों का समाधान निकालना है। दूसरी बात, भारत को पहली बार व्यापक विस्तार वाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को आयोजित करने का मौका मिलेगा। दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं की उम्मीदों पर खरा उतरने और एक नेता के रूप में खुद को स्थापित करने का भारत पर दायित्व है। तीसरी बात, भारत को विश्व अर्थव्यवस्था पर महामारी का प्रभाव नकारने, नए अभिनव समाधान खोजने तथा सदस्य देशों से आपसी सहयोग मुद्दे पर अपने प्रयासों को दोगुना करना होगा। चौथी बात, यूक्रेन संकट के कारण दुनिया दो भागों में बंट गई है। भारत एक ऐसी स्थिति में है जिसके पश्चिमी देशों और रूस दोनों के साथ ही घनिष्ठ संबंध हैं। यूक्रेन युद्ध के बाद भी रूस ने भारत को सस्ती दर पर क्रूड ऑयल की आपूर्ति जारी रखी है। कच्चे तेल ने हमारी अर्थव्यवस्था को काफी हद तक बचाया है। रूस हथियारों का प्रमुख आपूर्तिकर्ता देश है और संबंध बिगडऩे पर अरबों डॉलर के हालिया समझौते खतरे में पड़ सकते थे। पांचवीं बात, नौकरियों का संकट उत्पन्न हुआ है। इससे उबरने के लिए अवसरों के निर्माण की जरूरत होगी। यह तभी सम्भव होगा जब जी-20 देश एक फोरम के रूप में स्टार्टअप के विकास के आदान-प्रदान का दृष्टिकोण रखें। छठी बात, कोविड-19 से दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्थाएं तबाह हो गईं। ऐसे में भारत को अनुसंधान और विकास पर जोर देने की जरूरत होगी। साथ ही भारत को दुनिया में गरीबी को कम करने के लिए वसुधैव कुटुम्बकम् के सिद्धांत और भावना के तहत काम करने की जरूरत है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को जी-20 पर दबाव बनाना होगा कि वह जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी चुनौतियों को संबोधित करने में उदारतापूर्वक योगदान दे। खासकर जब पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के हतोत्साहित करने वाले विचार के बाद अमरीका फिर से प्रयासों में शामिल हो गया है। अध्यक्षता के दौरान भारत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व के संकल्पों का भी ध्यान रखना होगा। उन्होंने जी-7, जी-20, यूएन असेम्बली जैसे समूहों के बीच सहयोग की जरूरत जताई थी। भारत को ‘वन वल्र्ड, वन ग्रिडÓ के लिए कोशिश करनी होगी, जो नवीकरणीय ऊर्जा के लिए भारत के अभियान का मुख्य हिस्सा है और सतत विकास लक्ष्यों पर वैश्विक फोकस करता है। भारत ने स्वच्छ ऊर्जा अपनाने और कार्बन उत्सर्जन कम करने में विकासशील देशों को 100 बिलियन यूएस डॉलर की जरूरत को भी पूरा किया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि नई जिम्मेदारी का निर्वहन करते वक्त भारत का विशेष ध्यान खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा बाजार पर होगा। भारत ने एक साल के नेतृत्व के लिए तीन ट्रैक संरचना बनाई है, जिसमें बीस देशों के वित्त बाजार और बैंक संरचनाएं शामिल हैं। इसका उद्देेश्य सार्थक तरीके से खुद को स्थापित करने में सफल होना भी है।
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