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बदल रहा है युद्ध का तरीका, रहना होगा तैयार

साइबर इंटेलिजेंस, साइबर क्षमता बाधित करने का पता लगाने के लिए मजबूत ढांचा स्थापित करना भी बेहद आवश्यक है। कुशल साइबर कार्यबल को प्रशिक्षित करना और साइबर स्वच्छता यानी नेटवर्क और डेटा सुरक्षा को बढ़ावा देना भी जरूरी होगा। संज्ञानात्मक युद्ध की रणनीति विकसित करनी होगी। सूचना युद्ध में निवेश करना होगा यानी गलत सूचना और प्रचार का मुकाबला करने के लिए क्षमता निर्माण पर ध्यान देना होगा।

जयपुरOct 23, 2024 / 09:51 pm

Gyan Chand Patni

सुधाकर जी
रक्षा विशेषज्ञ, भारतीय सेना में मेजर जनरल रह चुके हैं दुनिया अब सैन्य रणनीति और युद्ध में उन्नत प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रही है। पारम्परिक युद्ध-मैदान अब तक युद्ध की रणनीति के लिए पांच क्षेत्र- भूमि, समुद्र, वायु, अंतरिक्ष और साइबर स्पेस ही जाने जाते थे। इजरायल पर अपने शुरुआत के हमले में हमास ने इसमें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वारफेयर (इडब्ल्यू) शामिल करके इजरायल डिफेंस फोर्स (आइडीएफ) को अचम्भे में डाल दिया था। बाद में मोसाद ने हिजबुल्लाह के खिलाफ उसके पेजर और वॉकी-टॉकी पर धमाका करके अपना निशाना साधा। मोबाइल कम्युनिकेशन की यह व्यवस्थित प्रक्रिया संज्ञानात्मक क्षेत्र (यानी अनुभवजन्य तथ्यात्मक ज्ञान से संबंधित) की प्रासंगिकता और महत्त्व को रेखांकित करता है। कहने की जरूरत नहीं कि इससे अब किसी भी युद्ध का आवश्यक बुनियादी चरित्र ही बदल रहा है। ऐसे में जंग की प्रकृति में काफी बदलाव आया है।
6जी युद्ध की अवधारणा की शुरुआत के साथ ही सैन्य रणनीति और प्रौद्योगिकी का एक नया युग शुरू हुआ है जिसके अंतर्गत न केवल भौतिक और डिजिटल बल्कि संज्ञानात्मक और बायोलाजिकल क्षेत्र भी शामिल हैं। हालांकि, सैन्य ऑपरेशन्स में छठे क्षेत्र का विचार 2020 की शुरुआत में उभरा था। इसे ‘वेपनाइजेशन ऑफ न्यूरोसाइंसेज’ यानी तंत्रिका विज्ञान का हथियारीकरण नामक लेख में पहली सिफारिश के रूप में पेश किया गया था। यह लेख ‘वार फाइटिंग 2040’ के लिए लिखा गया था और यह अध्ययन एलाइड कमान ट्रांसफॉर्मेशन (एसीटी) ने कराया था। इसने कुछ सिफारिशें की गई थीं- नाटो के ऑपरेशन्स का नया क्षेत्र ‘मानव मस्तिष्क’ होना चाहिए; एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (अवाक्स) की जगह लेने वाले विमानों के लिए नैनो टेक्नोलॉजी, बायो टेक्नोलॉजी, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और कॉग्निीटिव टेक्नोलॉजी (एनबीआइसी) पर ध्यान देना चाहिए। यह भी कहा गया कि वैश्विक सुरक्षा आज दांव पर है।
रणनीतिक स्थिति और बढ़ते वैश्विक प्रभाव से जुड़ी चुनौतियों के मद्देनजर 6जी युद्ध के लिए भारत को सूझबूझ और तैयारी रखना अनिवार्य हो गया है। देश की रक्षा रणनीति पर इसके संभावित असर और इस उभरते परिदृश्य में आगे रहने के लिए 6जी युद्ध या छठी पीढ़ी के युद्ध को समझना और उसके अनुकूल होना जरूरी है। इस विधा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ), क्वांटम कंप्यूटिंग, बायोटेक्नोलॉजी और संज्ञानात्मक युद्ध जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों को शामिल करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। 6जी युद्ध में युद्ध के कई पहलू शामिल हैं-भौतिक, डिजिटल, संज्ञानात्मक और बायोलॉजिकल। भौतिक आयाम का अर्थ है पारंपरिक सैन्य अभियान जो भूमि, समुद्र, वायु और अंतरिक्ष से जुड़े होते हैं। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वारफेयर (इडब्ल्यू) में सैन्य अभियानों का समर्थन करने के लिए विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा का उपयोग करना शामिल है। इस जानकारी का उपयोग खतरों का अनुमान लगाने, दुश्मन के संचार को बाधित करने और महत्त्वपूर्ण अभियानों की सुरक्षा के लिए किया जा सकता है। डिजिटल आयाम यानी साइबर युद्ध, जिसमें हैकिंग, साइबर जासूसी और डिजिटल सेंधमारी शामिल है। संज्ञानात्मक आयाम (मानव मस्तिष्क की हैकिंग) यानी सूचना युद्ध और जनधारणा को प्रभावित करना। उदाहरण के लिए, अमरीकी वाणिज्य दूतावास, हैदराबाद ने मल्टीमीडिया प्लेटफार्मों में घोषणा की है कि वह कौशल और प्रशिक्षण के कार्यक्रमों के लिए लाखों डॉलर का अनुदान देगा। बायोलॉजिकल क्षेत्र में संभावित रूप से आनुवंशिक हेरफेर कर जैव-हथियारों का निर्माण शामिल हैं।
भारत को बहुमुखी रणनीति के तहत 6जी युद्ध के खिलाफ प्रभावी तैयारी करनी होगी और ठोस कदम उठाने होंगे। तकनीकी प्रगति, नीतिगत सुधार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को शामिल करते हुए भारत को एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। भारत को एआइ, क्वांटम कंप्यूटिंग, साइबर टेक्नोलॉजी और बायो टेक्नोलॉजी में आर एंड डी के लिए फंडिंग बढ़ानी चाहिए। इसके लिए डेडिकेटेड रिसर्च सेंटर्स की स्थापना और सरकार, सेना एवं निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए।
साइबर इंटेलिजेंस, साइबर क्षमता बाधित करने का पता लगाने के लिए मजबूत ढांचा स्थापित करना भी बेहद आवश्यक है। कुशल साइबर कार्यबल को प्रशिक्षित करना और साइबर स्वच्छता यानी नेटवर्क और डेटा सुरक्षा को बढ़ावा देना भी जरूरी होगा। संज्ञानात्मक युद्ध की रणनीति विकसित करनी होगी। सूचना युद्ध में निवेश करना होगा यानी गलत सूचना और प्रचार का मुकाबला करने के लिए क्षमता निर्माण पर ध्यान देना होगा। साथ ही खुफिया जानकारी, प्रौद्योगिकी और सर्वोत्तम मानकों को साझा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोगी देशों के साथ मिलकर काम करना होगा। अत्याधुनिक तकनीक से जुड़े रहकर ही नए दौर के खतरों से मुकाबला किया जा सकता है।

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