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घातक साबित हो सकती है कर्ज लेकर घी पीने की प्रवृत्ति

भारत में शुद्ध घरेलू बचत 47 साल के निचले स्तर पर है तो यह वाकई एक चिंता की बात है। पुन: बचत योजनाओं की ओर ध्यान देना चाहिए। विशेष कर अल्प बचत योजनाओं की ब्याज दरें अच्छी कर दी जाएं तो निम्न और मध्यम आय वर्ग के निवेशकों को फायदा होगा।

जयपुरJun 12, 2024 / 03:57 pm

विकास माथुर

सरकार के पास पैसा आएगा तो अर्थव्यवस्था की गाड़ी भी पटरी पर तेज दौड़ेगी। एक बड़ा तथ्य यह है कि भारतीय परिवार सबसे अधिक निवेश प्रॉपर्टी यानी जमीन-जायदाद में करते हैं, जो कुल निवेश का 40 प्रतिशत से अधिक है। यानी भारतीय परिवारों में सबसे बड़ी तमन्ना अपने घर का मालिक बनने की रहती है। इसी तमन्ना में के चलते घरेलू कर्ज में वृद्धि दर्ज हो रही है। लोग फ्लैट या मकान के लिए कर्ज ले रहे हैं।
इसके अलावा, बैंकों में जमा राशि, पेंशन फंड, जीवन बीमा, इक्विटी या म्यूचुअल फंड में भी भारतीय परिवार बचत का पैसा निवेश कर रहे हैं। पिछले कुछ दशकों में भारतीय परिवारों की मार्केट में वित्तीय पहुंच भी बढ़ी है और उनके सामने निवेश के तमाम विकल्प खुल गए हैं। अब यह भी देखने में आया है कि अपनी बचत का पैसा भारतीय परिवार शेयर मार्केट में भी लगाने से नहीं हिचक रहे हैं और वे जोखिम भी ले रहे हैं। प्रॉपर्टी के बाद भारतीय परिवार सोना, चांदी और जेवरात में निवेश करते हैं। यही कारण है कि देश का बुलियन मार्केट तेजी से आगे बढ़ रहा है।
सोना और चांदी इन दिनों अपने उच्चतम स्तर पर नजर आ रहे हैं। थोड़ा भारत सरकार के बचत को बढ़ावा देने के प्रयासों पर नजर डालते हैं। देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था। तब भारत सरकार ने भारतीय परिवारों की बचत को कैसे देश की प्रगति में लगाया जाए, इस सवाल पर गंभीरता से विचार किया और इसके लिए कदम उठाने शुरू किए। वर्ष 1948 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय बचत संगठन, जिसे अब राष्ट्रीय बचत संस्थान कहते हैं, का गठन किया। डाकघर बचत बैंक को संविधान में सूचीबद्ध किया गया। वर्ष 1959 में संसद में पारित सरकारी बचत प्रमाण पत्र अधिनियम और वर्ष 1968 में सार्वजनिक भविष्य निधि अधिनियम ने भारतीय लघु बचत योजनाओं की रूपरेखा तैयार की।
भारत में लघु बचत का मूल विचार यह है कि बचत और निवेश समावेशी होने चाहिए, यानी गांव के स्तर तक बचत होनी चाहिए। सबसे अहम बात, जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है, तब देश को बचत योजनाओं में लगाए पैसे ही काम आते हैं। ऐसा हम कोविड महामारी के दौरान देख चुके हैं। तब न केवल लोगों के लिए बचत किए हुए पैसे संबल बने, बल्कि सरकार को भी बचत योजनाओं में लगाए गए धन से बहुत संबल मिला था। म्यूचुअल फंड्स स्कीम्स की महत्ता को भी भारत सरकार ने बहुत पहले ही भांप लिया था और यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया एक्ट 1963 को लेकर आई। वर्ष 1964 में भारत में पहली म्यूचुअल फंड स्कीम लॉन्च कर दी गई।
यह योजना इतनी लोकप्रिय हुई कि यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने इसके बाद कई म्यूचुअल फंड योजनाएं लॉन्च कीं। वर्ष 1991 में शुरू आर्थिक सुधारों ने देश में वित्तीय बाजार को और बढ़ावा दिया। भारत सरकार ने वर्ष 1992 में भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड यानी सेबी की स्थापना की। सेबी को म्यूचुअल फंड का भी नियामक बनाया गया। यानी सरकार लगातार बचत को बढ़ावा देती रही है। एक तथ्य यह भी है कि भारतीयों को बचत करने वालों में गिना जाता है, लेकिन हम दुनिया में टॉप 10 देशों में नहीं आते हैं। अफ्रीका का छोटा देश जिबूती बचत में बहुत आगे है, जहां वर्ष 2022 में ग्रोस डोमेस्टिक सेविंग रेट 84.9 प्रतिशत थी। इसके बाद कतर, आयरलैंड, अफ्रीकी देश गैबॉन, सिंगापुर जैसे देश आते हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने हाल में जो आंकड़े जारी किए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। ये आंकड़े इस ओर इशारा करते हैं कि भारत में शुद्ध घरेलू बचत 47 साल के निचले स्तर पर है तो यह वाकई एक चिंता की बात है। वर्ष 2023 में बचत घटकर सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 5.3 प्रतिशत हो गई है, जो वर्ष 2022 में 7.3 प्रतिशत थी। फिर वही सवाल क्या भारतीय परिवार भी पश्चिम के परिवारों की राह पर चल रहे हैं, जो वर्तमान में कर्ज लेकर जीवन को अच्छे से जीना चाहते हैं। यदि ऐसा है तो यह भारत और भारतीय परिवारों के लिए सोच-विचार का विषय है। भारत सरकार को पुन: बचत योजनाओं की ओर ध्यान देना चाहिए। पिछले कुछ वर्षों के दौरान समय-समय पर बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कमी की गई है। सरकार को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। विशेष कर अल्प बचत योजनाओं की ब्याज दरें अच्छी कर दी जाएं तो निम्न और मध्यम आयवर्ग के निवेशकों को फायदा होगा। सरकार के पास पैसा आएगा तो अर्थव्यवस्था की गाड़ी भी पटरी पर तेज दौड़ेगी। भारतीयों का भविष्य भी सुरक्षित रहेगा।
—विजय गर्ग

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