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विदेशों में भारतीय परंपरा और संस्कृति की महक

यह गर्व का क्षण होने के साथ सबक और संकल्प लेने का अवसर भी है कि हम अपनी संस्कृति को और मजबूत करें। विशेषकर उन युवाओं के लिए जो इन परंपराओं और संस्कृति से विमुख हो रहे हैं।

Sep 01, 2023 / 11:02 pm

Nitin Kumar

विदेशों में भारतीय परंपरा और संस्कृति की महक

भारत हमेशा से परंपराओं और संस्कृति का देश रहा है। इनकी खूबियां, इनकी खुशबू और इनका प्रभाव किसी सीमा में बंधा हुआ नहीं है। इन परंपराओं और संस्कृति ने न सिर्फ भारत और भारतीयता को सींचा है, बल्कि दुनिया को भी इसकी महक से अभिभूत किया है और उसे अहसास कराया है कि असल और सौ टका खरे चरित्र का निर्माण कैसे किया जाता है। देश के लिए यह खुशी की बात है कि भारत की मजबूती और पहचान की प्रतीक परंपराओं और संस्कृति के संबंध में दुनिया के कई देशों में स्वीकार्यता स्पष्ट तौर पर परिलक्षित होती नजर आने लगी है।
यही वजह है कि हम ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को भारतीय परंपरा और रामकथा का तन्मयता से रसास्वादन करते देखते हैं। और अब हम यह भी सुन रहे हैं कि अमरीका के एक बड़े प्रांत जॉर्जिया ने अक्टूबर माह को ‘हिंदू विरासत माह’ के रूप में मनाने की घोषणा की है। यह घोषणा राजनीतिक नहीं है, न ही यह वहां के हिंदू समुदाय को खुश करने का कोई जतन है। बल्कि यह इसलिए है कि जॉर्जिया ने यह महसूस किया है कि हिंदू विरासत कितनी विराट है और मन-मस्तिष्क को कितनी पवित्र और आलोकित करने वाली है। यह भी सच है कि सिर्फ हिंदू विरासत नहीं, बल्कि भारत की संपूर्ण विरासत ही समृद्ध है जो संस्कृति और उसमें निहित आध्यात्मिक आयामों की गहनता को अच्छे से अभिव्यक्त करती है। कई देशों ने इसे खुलकर स्वीकार किया और सराहा है तथा इसे अपने कार्य व्यवहार में उतारने का प्रयास किया है। यह निश्चित तौर पर गर्व करने की बात है कि विदेशों में भारतीय परंपराओं को इस कदर याद किया जा रहा है। इसका श्रेय विदेशों में रहने वाले उन भारतीयों को है, जिन्होंने जड़ों से अपने जुड़ाव को पुख्ता तौर पर इस तरह प्रदर्शित किया कि अन्य देशों के लिए यह प्रेरणा का स्रोत बन गया। इसे इसी रूप में निरूपित करना बेहतर होगा कि इन भारतीयों ने भारतीय होने का फर्ज अच्छे से निभाया है।
यह गर्व का क्षण होने के साथ सबक और संकल्प लेने का अवसर भी है कि हम अपनी संस्कृति को और मजबूत करें। विशेषकर उन युवाओं के लिए जो इन परंपराओं और संस्कृति से विमुख हो रहे हैं। अक्सर वे इन्हें सिर्फ रस्मअदायगी की तरह लेते व इनका त्याग करते दिखते हैं। दूसरी ओर, दुनिया इनका मोल समझते हुए इन्हें अपना रही है। हालांकि यह विडंबना ही है कि हम हमारी चीज का महत्त्व तभी समझते हैं, जब कोई पश्चिमी देश उसे अपनाता, उसका अनुसरण करता नजर आता है। उम्मीद है कि जॉर्जिया के कदम से भारत में भी उनकी आंखें खुलेंगी जो भटक गए हैं।

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