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बुजुर्गों के आशीष के आकाश में उड़ती है हमारी प्रगति की पतंग

अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस: 01 अक्टूबर

जयपुरOct 01, 2024 / 09:52 pm

Nitin Kumar

अजहर हाशमी
कवि और साहित्यकार
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बुजुर्ग (वृद्धजन) अर्थात सीनियर सिटीजन, परिवार रूपी पुस्तक के वे पन्ने (पृष्ठ) हैं, जिनको ध्यान और आदर के साथ पढऩे पर पुस्तक दुआ का दस्तावेज बन जाती है। एक और रूपक से कहूं तो यह कि परिवार रूपी जमीन में जब बुजुर्ग दुआ के बीज बोते हैं तब वे बीज पीढ़ी (संतान) के लिए अंकुरित और पल्लवित होकर ऐसा दरख्त बन जाते हैं जिनकी टहनियों पर सफलता के सदाबहार सुमन खिलते हैं।
जी हां! इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारी सफलता के समीकरण का सूत्र होते हैं बुजुर्ग। जमीन और बीज के उदाहरण से, दरख्त तथा दुआ के दृष्टांत से तो यह स्पष्ट हो ही जाता है किन्तु, अगर आकाश को भी मिसाल बनाया जाए तो रूपक और उपमा अलंकार का सम्मिश्रण करके कहा जा सकता है कि बुजुर्गों के आशीष के आकाश में हमारी प्रगति की पतंग उड़ती है। सच तो यह है कि बुजुर्ग हमारी समृद्धि की सांसें हैं। बुजुर्ग हमारे अभ्युदय की आंखें हैं। बुजुर्ग हमारी शक्ति के शंख हैं। बुजुर्ग हमारी प्रतिष्ठा के पंख हैं। ‘महाभारत’ के उद्योग-पर्व के 35वें अध्याय के 58वें श्लोक में कहा गया है- ‘जिस सभा में बड़े-बूढ़े नहीं, वह सभा नहीं। जो धर्म की बात न कहें वे बड़े-बूढ़े नहीं। जिसमें सत्य नहीं, वह धर्म नहीं। जो कपटपूर्ण हो, वह सत्य नहीं।’ तात्पर्य यह है कि बड़े-बूढ़े यानी बुजुर्ग कर्म की प्रेरणा देते हैं और धर्म तथा सत्य का मर्म समझाते हैं। बुजुर्गों के अनुभव के आईने में हम अपने भविष्य की छवि देख सकते हैं। इसलिए हमारा दायित्व है कि हम अपने बुजुर्गों को न केवल सम्मान दें अपितु उनकी सुख-सुविधा का ध्यान भी रखें।
लेकिन समाज में इन दिनों जो स्थिति है, अपवादों को छोड़ दें तो वह बुजुर्गों के प्रति असम्मान और अनादर को ही रेखांकित कर रही है। हर दिन समाचार-पत्रों की सुर्खियां और टीवी, न्यूज चैनलों की ‘ब्रेकिंग न्यूज’ या तो बलात्कार की शर्मनाक घटना या बुजुर्गों की बेइज्जती, यहां तक कि किसी फ्लैट या पॉश कॉलोनी में हत्या के दर्दनाक हादसे को बयां करती हैं। भारत में समय-समय पर जो आंकड़े बुजुर्गों के संबंध में जारी होते हैं, वे उनकी दारुण कथा कहते हैं।
बुजुर्गों के संबंध में ‘हेल्प एज’ द्वारा किए गए सर्वेक्षण की कुछ समय पूर्व आई रिपोर्ट दरअसल वेदना और व्यथा की करुण कहानी है। इसके अनुसार 23त्न वरिष्ठ नागरिकों का मानना है कि उनके साथ दुव्र्यवहार होता है। 35त्न बुजुर्ग मानते हैं कि उन्हें प्रतिदिन प्रताडि़त किया जाता है। 38त्न बुजुर्गों का मानना है कि ‘बेटे’ का बर्ताव असम्मानजनक है। 39त्न बुजुर्गों का कहना है कि उनके साथ ‘बहू’ बुरा बर्ताव करती है। इस रिपोर्ट की सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें यह भी कहा गया है कि ‘बेटियां’ भी बुजुर्गों को प्रताडि़त करती हैं। ऐसा मानने वाले बुजुर्ग कम लेकिन 17त्न हैं।
उल्लेखनीय है कि ‘द मेंटीनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 (माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007) यद्यपि बुजुर्ग माता-पिता को यह हक देता है कि वे अपनी संतान से अपने लिए सुरक्षा और भरण-पोषण की मांग कर सकें और यदि संतान ऐसा नहीं करती है तो बुजुर्ग माता-पिता के द्वारा शिकायत करने पर संतान को 3 महीने की सजा और 5000 रुपए जुर्माना का दंड कोर्ट के द्वारा दिया जा सकता है, तब भी यह एक्शन में नहीं लाया जाता क्योंकि वरिष्ठ नागरिक/माता-पिता अपनी संतान की शिकायत करके रिश्तों को कसैला और व्यवहार को विषैला नहीं बनाना चाहते। यह एक्ट सैद्धांतिक रूप में तो ‘सुविधा की सरिता’ है किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से ‘दुविधा का दलदल’ है। वास्तविकता तो यह है कि अपने बुजुर्गों का हम मन से सम्मान-सेवा करें क्योंकि वे हमारे लिए पहचान का भी काम करते हैं और वरदान का भी। किसी कवि ने कहा भी है- ‘बूढ़ा बरगद, बूढ़ा पीपल, बूढ़ा नीम/ बस्ती की पहचान सरीखे सभी बुजुर्ग/ हम पे संकट आया तब हमने समझा/ संकट में वरदान सरीखे सभी बुजुर्ग।’

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