अब तक की सभी धमकियां झूठी निकली हैं, लेकिन शरारती तत्त्वों की यह हरकत प्रशासन और स्कूल प्रबंधन के लिए सुरक्षा जांच की प्रक्रिया को बाधित करती है। स्कूलों को खाली कराना, जांच करना, पढ़ाई का नुकसान और संसाधनों पर दबाव यह सब प्रभाव डालता है। इन धमकियों का असर सिर्फ स्कूलों तक ही नहीं, बल्कि पूरे समाज में फैलता है। अभिभावकों की चिंता बढ़ जाती है और बच्चे मानसिक तनाव का सामना करते हैं।
ऐसी धमकियां देना एक गंभीर सुरक्षा और सामाजिक चुनौती बन चुका है। इसे हल करना सख्त जरूरी हो गया है। यह देखा गया है कि अधिकतर धमकियां साइबर अपराध का हिस्सा होती हैं। सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉॅम्र्स पर अफवाहें तेजी से फैलती हैं, जिससे स्थिति और गंभीर हो जाती है। साइबर अपराधियों को अब तक सख्त सजा नहीं मिल पाई है, जो ऐसी घटनाओं को बढ़ावा मिल सकता है। प्रशासन-सुरक्षा एजेंसियों को सतर्कता बढ़ानी होगी और आरोपियों को पकडऩा जरूरी है। इसके अलावा, साइबर सुरक्षा को मजबूत करना और ऑनलाइन अफवाहों की निगरानी करना प्रशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए।
सबकी जिम्मेदारी बनती है कि इन अफवाहों से सावधान रहे। बिना पुष्टि के सूचना साझा न करें। अभिभावकों-शिक्षकों को बच्चों में सुरक्षा की भावना विकसित करनी चाहिए। उन्हें आत्मरक्षा व आपातकालीन स्थितियों से निपटने की जानकारी देनी चाहिए। विद्यालयों को निशाना बनाना केवल कानून का उल्लंघन नहीं है, बल्कि समाज के भविष्य पर हमला भी है। स्कूलों में भय का वातावरण फैलाकर बच्चों के मनोबल को तोड़ा जा रहा है। प्रशासन, स्कूल प्रबंधन-समाज को एकजुट होकर इन चुनौतियों का समाधान करना होगा और शिक्षा के वातावरण को सुरक्षित और सकारात्मक बनाए रखना होगा। सख्त सुरक्षा उपाय, तकनीकी समाधान, कानूनी सख्ती और जन-जागरूकता से ही इन्हें रोका जा सकता है।