ईश्वर प्रजापति रूप है, यज्ञ रूप है। इसकी सम्पूर्ण सृष्टि यज्ञ रूप ही है। अग्नि में सोम की आहुति एक यज्ञ है। अग्नि में भीतर सोम है, सोम में भीतर अग्नि भी है। अर्थात् यज्ञ के भीतर एक यज्ञ और भी है। अत्यन्त सूक्ष्म में पुन: तीसरा यज्ञ अग्नि-सोमात्मक होगा, पहले वाले यज्ञ की दिशा में। वहीं पर ईश्वर की स्थिति है। इसीलिए सभी प्राणी समान होते हैं।