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शहीद हेमू कालाणी: आज भी हैं युवा वर्ग के लिए आदर्श

Shaheed Hemu Kalani: आज ही के दिन शहीद हुए थे हेमू कालाणी। उनकी शहादत आज की युवा पीढ़ी को नई दिशा प्रदान करती है। ऐसे वीरों को इतिहास हमेशा याद रखता है।

Jan 22, 2022 / 09:45 am

Patrika Desk

शहीद हेमू कालाणी: आज भी हैं युवा वर्ग के लिए आदर्श

कविता शर्मा छबलानी

Shaheed Hemu Kalani: समूचा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस अवसर पर उन स्वतंत्रता सेनानियों को याद करना भी जरूरी है, जिनकी वजह से हम आज आजादी की सांस ले रहे हैं। ऐसे ही नायकों में एक थे हेमू कालाणी। अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के सक्खर में 23 मार्च, 1923 को सिंधी परिवार में पेसूमल कालाणी और जेठी बाई के आंगन में जन्म लेने वाले बालक हेमू कालाणी के आदर्श सरदार भगत सिंह थे। हेमू बचपन से ही साहसी थे। स्कूल जाने के साथ ही वे क्रांतिकारी गतिविधियों में भी सक्रिय होकर अंग्रेजी शासन के खिलाफ आवाज उठाने लगे। वे मात्र 7 वर्ष की उम्र में तिरंगा हाथ में थाम कर अंग्रेजों की बस्ती में चले जाते थे और अपने मित्रों के साथ निर्भीक सभाएं करते थे। वे पढ़ाई-लिखाई में कुशल होने के अलावा अच्छे तैराक तथा धावक भी थे।
उन दिनों ‘स्वराज मंडल’ नामक गुप्त संस्था की बड़ी भूमिका थी, जिसके सूत्रधार डॉ. मघाराम कालाणी थी। इस संस्था का उद्देेश्य भारत में ब्रिटिश राज्य को समाप्त करना था। ‘स्वराज मंडलÓ की विद्यार्थी शाखा ‘स्वराज सेनाÓ के सदस्य हेमू कालाणी थे। 8 अगस्त,1942 के मुंबई कांग्रेस अधिवेशन में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित हुआ। इसके अगले दिन सुबह खबर प्रसारित हो गई कि महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना आजाद सहित कई नेता गिरफ्तार कर लिए गए हैं।

तब आंदोलन की बागडोर जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन, राम मनोहर लोहिया जैसे राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के नायकों ने संभाली थी। 23 अक्टूबर, 1942 को ‘जब भारत छोड़ो’ आंदोलन अपने चरम शिखर पर था। हेमू को पता चला कि शहर में हथियारों से लदी रेलगाड़ी सिंध के रोहिणी स्टेशन से रवाना होकर सक्खर शहर से गुजरती हुई बलूचिस्तान के क्वेटा नगर पहुंचेगी।

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हेमू कालाणी ने रेलगाड़ी को गिराने का विचार किया। दो सहयोगियों नंद और किशन को भी साथ लिया। रेलगाड़ी गुजरने से पहले ही तीनों एक स्थान पर पहुंचे। हेमू कालाणी ने रेल की पटरियों की फिशप्लेटों को उखाडऩा शुरू कर दिया। इस बीच गश्त कर रहे सैनिक घटनास्थल पर आए। नंद और किशन तो बच निकले। हेमू कालाणी अपना कार्य करते रहे और उन्हें पकड़ लिया गया।

मार्शल लॉ कोर्ट ने हेमू कालाणी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जिसे कर्नल रिचर्डसन ने फांसी में बदल दिया। 21 जनवरी 1943 को प्रात: 7.55 पर हेमू कालाणी ने फांसी के फंदे को चूमकर संसार को अलविदा कह दिया। उनकी शहादत आज की युवा पीढ़ी को नई दिशा प्रदान करती है। ऐसे वीरों को इतिहास हमेशा याद रखता है।

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