सारनाथ बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी से लगभग 10-15 किलोमीटर की दूरी पर है। यह लुम्बिनी, कुशीनगर, बोधगया की ही तरह बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में आता है, क्योंकि गौतम बुद्ध ने अपने जीवन का पहला उपदेश सारनाथ में ही दिया था।
सारनाथ: गौतम बुद्ध ने जहां दिया था अपना पहला उपदेश
संजय शेफर्ड
ट्रैवल राइटर और ब्लॉगर
वाराणसी यात्रा के दौरान मेरी सबसे ज्यादा उत्सुकता सारनाथ जाने और देखने की रही। यह सारनाथ बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी से लगभग 10-15 किलोमीटर की दूरी पर है। यह लुम्बिनी, कुशीनगर, बोधगया की ही तरह बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में आता है, क्योंकि गौतम बुद्ध ने अपने जीवन का पहला उपदेश सारनाथ में ही दिया था। सारनाथ एक ऐसा पर्यटन स्थल है, जहां आपको हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म से सम्बंधित कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल देखने को मिलते हैं। जैन धर्म की बात करें, तो यह पावन स्थल जैन धर्म के तीर्थंकर श्रेयांसनाथ की जन्मस्थली भी है। सारनाथ में मंदिर के अलावा स्तूप, मठ, संग्रहालय और पार्क भी देखने को मिलते हैं, पर इस जगह पर मेरे लिए सबसे बड़ा आकर्षण सारनाथ का पुरातत्व संग्रहालय नजर आता है। इस जगह पर बौद्ध धर्म से सम्बंधित वे सभी चीजें रखी गई हैं, जो इस जगह की खुदाई के समय या फिर बाद में मिली।
वाराणसी में दोपहर तक घूमते रहे और फिर सारनाथ पहुंचे, तो यह जगह सैलानियों से भरी हुई थी। सबसे पहले हम सारनाथ पुरातत्व संग्रहालय गए और जितना सोचा था, कहीं उससे भी अच्छा पाया। खुदाई की जगह से मिली प्राचीन वस्तुओं को संरक्षित और प्रदर्शित करने के लिए सारनाथ में खुदाई वाले क्षेत्र के पास ही इसका निर्माण किया गया था, जिसके तहत प्राचीन वस्तुओं को प्रदर्शित और अध्ययन करने की योजना बनाई गई थी। यह संग्रहालय सारनाथ में पाई गई तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से बारहवीं शताब्दी ईस्वी तक की प्राचीन वस्तुओं को प्रदर्शित करता है। संग्रहालय में बड़ी संख्या में कलाकृतियों, मूर्तियों, बोधिसत्व और प्रतिष्ठित अशोक के सिंहचतुर्मुख स्तम्भशीर्ष को संग्रहित किया गया है, जिसे ‘भारत के राष्ट्रीय प्रतीक’ के रूप में भी जाना जाता है।
इसके बाद तिब्बती मंदिर गए और फिर चौखंडी स्तूप, धमेख स्तूप, अशोक स्तम्भ, मूलगंध कुटी विहार, धर्मराजिका स्तूप, डियर पार्क, थाई मन्दिर और सारंगनाथ मंदिर गए। तिब्बती मंदिर में बुद्ध की एक प्रतिमा बनी है और यह अत्यंत सुन्दर दिखाई देता है। इस मंदिर की संरचना और शिल्पकला दोनों ही अद्भुत है। इस मंदिर के बाहर प्रार्थना पहिए दिखाई देते हैं, जिन्हें घड़ी की दिशा में घुमाया जाता है। यह जगह मुझे काफी अच्छी लगी और फिर हम चौखंडी स्तूप गए। यह स्तूप बौद्ध धर्म में महत्त्वपूर्ण है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तूप का निर्माण ठीक उसी जगह पर कराया गया है, जहां गौतम बुद्ध अपने पांच तपस्वियों से मिले थे। इस जगह को सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत कह सकते हैं। इसी तरह धमेख स्तूप को धर्मचक्र स्तूप भी कहा जाता है। यह स्तूप गोलाकार आकार में बना हुआ है और एक बौद्ध धार्मिक स्थल के रूप में अपनी खास पहचान रखता है। ईंट और मिट्टी से बने इस स्तूप पर मानव और पक्षियों की आकृतियां उकेरी गई हैं। धमेख स्तूप की भव्यता दूर से ही प्रभावित करती है। 143 फुट ऊंचे इस स्तूप में न कोई दरवाजा है और न ही खिड़की। फिर हम अशोक स्तम्भ को देखने के लिए गए, जिसे देखने की चाह मन में वर्षों से संजोए हुए थे। इस स्तम्भ को सम्राट अशोक ने बनवाया था। इस स्तम्भ में चार शेर बने हुए हैं, जो एक दूसरे से पीठ सटाकर बैठे हुए हैं और स्तम्भ के निचले भाग में अशोक चक्र बना हुआ है। हम अशोक स्तम्भ देखने के बाद डियर पार्क गए। यह वह स्थल है जहां पर भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। यह यात्रा हमारे लिए काफी खास रही और हम बौद्ध धर्म से जुड़े तमाम स्थलों को अच्छे से देख और समझ पाए।
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