संयुक्त राष्ट्र की भूमिका को लेकर उठते सवालों के बीच अब यह तय करने का समय आ गया है कि उसे अपना वजूद बचाए रखना है या नहीं। दुनिया में चल रहे दो युद्धों को रोकने की नाकामी ने भी इस संस्था के औचित्य को कमतर किया है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की परिस्थितियों में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का उद्देश्य यही था कि अब ऐसे युद्ध की नौबत आने से पहले ही उचित कदम उठाए जा सकें। लेकिन, देखा जा रहा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों ने इस संस्था को हाईजैक कर लिया है और उसे किसी अन्य देश की कोई चिंता नहीं है। यही वजह है कि पिछले कुछ दशकों से सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग जोर पकड़ रही है।
जी-4 देशों (भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान) की लगातार मांग के बाद सुरक्षा परिषद में करीब 80 साल बाद सुधार की प्रक्रिया शुरू होने की उम्मीद जगी है। लेकिन, इस प्रक्रिया में भी लगातार बाधा डालने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। अभी सुरक्षा परिषद में अमरीका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन स्थायी सदस्य हैं, जो पूरी दुनिया का प्रतिनिधित्व करने की स्थिति में नहीं हैं। पश्चिम एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमरीका, दक्षिण एशिया का इस संगठन में उचित प्रतिनिधित्व नहीं है। भारत के साथ-साथ ब्राजील और जापान को स्थायी सदस्य बनाने की मांग लगातार उठती रही है। अफ्रीका की दावेदारी को इसलिए भी दरकिनार नहीं किया जा सकता कि संयुक्त राष्ट्र के करीब एक चौथाई सदस्य इसी महाद्वीप से हैं। भारत ने सुरक्षा परिषद में सुधार को आगे बढ़ाने के लिए इंटर गवर्नमेंट निगोसिएशन प्रोसेज (आइजीएन) अपनाने की मांग की थी, जिसका 2022 में तत्कालीन अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद ने भी समर्थन किया था। इसी साल सिंतबर में होने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा से पहले आइजीएन में जितनी प्रगति होनी चाहिए नहीं हो सकी है। एक बार फिर इसे टालने का प्रयास हो रहा है, जिसका भारत ने जोरदार विरोध किया है। सुरक्षा परिषद में भारत आठ बार अस्थायी सदस्य रह चुका है।
सितंबर में होने जा रहे संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र से पहले सुरक्षा परिषद में सुधार की दिशा में कोई खास प्रगति न होना दर्शाता है कि ताकतवर देशों को इसकी चिंता नहीं है। चीन तो कतई नहीं चाहता कि एशिया में किसी और का वर्चस्व बढ़े। वीटो पावर रखने वाले देश किसी भी प्रस्ताव को रोकने की शक्ति रखते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया काफी बदल गई है। तब भारत ब्रिटेन का गुलाम था, अब यह ब्रिटेन से बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। इस सच्चाई को समझकर ही यूएन अपना औचित्य बनाए रख सकेगा।
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