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दूर हों महिला-नेतृत्व वाले सूक्ष्म उद्यमों की वित्तीय बाधाएं

महिला उद्यमिता और सशक्तीकरण: जड़ों में बैठी सामाजिक मान्यताओं से निपटना भी जरूरी, करनी होगी जागरूकता और ज्ञान सृजन की पहल

जयपुरNov 22, 2024 / 09:36 pm

Nitin Kumar

लक्ष्मी वेंकटरमण वेंकटेशन
संस्थापक और प्रबंध ट्रस्टी, भारतीय युवा शक्ति ट्रस्ट
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भारत में महिलाओं द्वारा संचालित सूक्ष्म उद्यम स्थानीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इन व्यवसायों का एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) क्षेत्र में रोजगार, निवेश और उत्पादकता में प्रमुख योगदान है। 2024 तक उद्यम पोर्टल पर पंजीकृत सभी एमएसएमई में से 20.05 प्रतिशत की स्वामी महिलाएं थीं, जो इस क्षेत्र में लगभग पांचवें कामकाजी हिस्से को रोजगार देती हैं और कारोबार में इनका 10 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है। वास्तव में, महिलाओं की अगुवाई वाले सूक्ष्म उद्यम एक विशाल शक्ति हैं। 70 प्रतिशत अनौपचारिक सूक्ष्म उद्यम इन्हीं के अंतर्गत आते हैं और ये समाज के कामकाजी हिस्से को इसी अनुपात में रोजगार मुहैया करवाते हैं। इन बढ़ते कदमों के बावजूद महिला उद्यम शक्ति का समुचित सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। उनकी प्रगति के रास्ते में कई बाधाएं हैं। ऋण सुविधाओं तक पहुंच की कमी, कौशल के पुराने तौर-तरीके, कमजोर विपणन प्रणाली, बंटी हुई डिजिटल दुनिया और लैंगिक भेदभाव महिला नेतृत्व वाले व्यवसायों के विस्तार में अड़चन हैं।
भारत में महिला व्यवसाय अक्सर सीमित ऋण सुविधा, गारंटी की मांग और आवश्यक प्रशिक्षण की कमी से बाधित होते हैं। 45 प्रतिशत से अधिक महिला व्यवसायियों के पास आपात समय के लिए कोई बचत नहीं है। तकनीकी कौशल व डिजिटल दक्षता में तंग हाथ और बड़े बाजारों में उनके उत्पादों का न दिखाई देना इन समस्याओं को और बढ़ाता है। हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण में अधिकांश महिलाओं से व्यवसाय से पहले घरेलू जिम्मेदारियां निभाने की अपेक्षा की जाती है, जिससे सामंजस्य बैठाना अक्सर सामाजिक मान्यताओं के खिलाफ संघर्ष के समान होता है।
महिला उद्यमों को सशक्त बनाने के लिए इन सभी समस्याओं का समाधान जरूरी है। पर्याप्त वित्तीय सहायता के साथ-साथ बैंकों और ऋणदाताओं की सोच बदलना आवश्यक है। आज भी, कई महिलाओं को ऋण के लिए पति या पिता की गारंटी दिलानी पड़ती है। महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता से उन्हें जोखिम लेने और अपने उद्यमों में निवेश करने में मदद मिलेगी। साथ ही, तकनीकी, डिजिटल और व्यवसाय प्रबंधन कौशल में समुचित प्रशिक्षण भी जरूरी है। व्यक्तिगत मार्गदर्शन और क्षमता निर्माण कार्यक्रम से उन्हें विकास प्रबंधन, रणनीतिक योजना बनाने और चुनौतियों से निपटने को आवश्यक उपकरण और आत्मविश्वास हासिल होंगे। बाधाओं को दूर करने में सरकार की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है। हालांकि आज महिलाओं के लिए ऐसी कई योजनाएं व कार्यक्रम हैं जिनसे महिलाओं की ऋण, प्रशिक्षण व बाजार तक पहुंच आसान हुई है। महिला उद्यमियों के लिए सहायक वातावरण बनाने हेतु वित्तीय सहायता नीतियां भी आवश्यक हैं। बैंक शुल्क और अन्य शुल्कों में कमी, ब्याज सब्सिडी और उनके उद्यमों को कर छूट से उन पर वित्तीय बोझ कम होगा और विस्तार में मदद मिलेगी। इसके अलावा सब्सिडी, ऋणदाताओं के लिए क्रेडिट गारंटी व महिला-नेतृत्व वाले सूक्ष्म उद्यमों के लिए कम ब्याज दर पर ऋण जैसी योजनाएं वित्तीय बाधाओं को दूर करने में मददगार होंगी।
इन बाहरी चुनौतियों से निपटना समस्या का केवल आधा समाधान है। हमारी जड़ों में बैठी सामाजिक मान्यताओं से निपटना भी महत्त्वपूर्ण है। जागरूकता और ज्ञान सृजन की पहल महिलाओं को सीमाबद्ध करने वाली मान्यताएं तोडऩे में मदद कर सकती है। इस पहल से समाज महिलाओं के अधिकारों, भूमिकाओं और अवसरों के प्रति जागरूक होगा और उन्हें अर्थव्यवस्था में समान भागीदार मानने के लिए प्रोत्साहित होगा। सच्चे सशक्तीकरण के लिए जरूरी है कि महिलाओं को पुरुष समकक्षों के समान प्रशिक्षण और वित्तीय व सामाजिक अधिकार मिलें।
जमीनी स्तर से लेकर वैश्विक स्तर तक सूक्ष्म उद्यमों में महिला उद्यमियों को सशक्त बनाने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ सकता है। वर्तमान में महिला-नेतृत्व वाले उद्यमों का एमएसएमई टर्नओवर में 10 प्रतिशत से अधिक योगदान है। उचित समर्थन से जीडीपी वृद्धि तथा रोजगार सृजन में उनकी भूमिका और बड़ी हो सकती है। वे स्थानीय समुदायों को ऊपर उठाने, हाशिये के समुदायों में सामाजिक समावेश लाने और अधिक लचीली अर्थव्यवस्थाओं को बनाने में समर्थ हैं। एक महिला की वित्तीय स्वतंत्रता अक्सर उसके परिवार के लिए अधिक शैक्षिक और विकासात्मक अवसर लाती है, जिससे पूरे समुदाय के लिए लाभदायक सशक्तीकरण चक्र बनता है। अध्ययनों से पता चला है कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाएं महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से विकास के पायदान चढ़ सकती हैं। मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के पूर्ण आर्थिक समावेश को प्रोत्साहित करके भारत 2025 तक अपनी जीडीपी में 770 बिलियन डॉलर तक जोड़ सकता है।

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