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जीवन में कर्म साधना ही सर्वोपरि, ‘मन चंचल, ह्रदय स्थिर है’ पर प्रतिक्रियाएं

जीवन में कर्म साधना ही सर्वोपरि, ‘मन चंचल, ह्रदय स्थिर है’ पर पाठकों की प्रतिक्रियाएं विस्तार से-

Jun 17, 2023 / 06:58 pm

Patrika Desk

Gulab Kothari Editor-in-Chief, Patrika Group

मन चंचल है यह सब कहते हैं। इसीलिए यह भी कहा जाता है कि मन को स्थिर रखकर ही ह्रदय को पवित्र बनाए रखा जा सका है। पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की ‘शरीर ही ब्रह्मांड’ आलेखमाला के तहत आलेख ‘मन चंचल-हृदय स्थिर है’ शीर्षक आलेख को प्रबुद्ध पाठकों ने जीवन में कर्म साधना का महत्व इंगित करने वाला बताया है। पाठकों का कहना है कि मन की गति को तब ही नियंत्रित रखी जा सकती है जब हम अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित करते हुए अपने नित्यकर्म करें। सही मायने में मनुष्य जीवन में कर्म साधना सर्वोपरि है। पाठकों की प्रतिक्रियाएं विस्तार से-

मन चंचल, ह्दय स्थिर है शीर्षक आलेख के जरिए मन व ह्रदय के भावों को सरल तरीके से समझाने का प्रयास किया है। मन को स्थिर रखकर ह्रदय को किस तरह से पवित्र बनाए रखा जा सकता है, इसका संदेश इस आलेख में दिया गया है। किन-किन विधियों से ऐसा संभव है, इसका भी सरल तरीका बताया है।
-अशोक गांधी, हनुमानगढ़ जंक्शन

‘मन चंचल ह्रदय स्थिर है’ शीर्षक आलेख में विज्ञान की धर्म के अनुसार व्याख्या की गई है। इस तरह के आलेख मनुष्य को कर्म व धर्म के अनुसार जीवन जीने की सीख देते हैं।
– पारस कुमार, हनुमानगढ़ टाउन

यह सही है कि आंखों का बाहर देखना तक बन्द हो जाने पर ही गति का घटित होना संभव है। श्वास-प्रश्वास के ठहर जाने पर प्राणों की गति से मन दूसरी ओर बढऩे लगता है। यही मुक्ति साक्षी आनन्द विज्ञान-मन का मार्ग है।
-एपी वशिष्ठ, शिक्षक, श्रीगंगानगर

मनुष्य जीवन लोक और परलोक सुधारने के लिए होता है क्योंकि मनुष्य जीवन में ही व्यक्ति अपने कार्यों से सुर और असुर की श्रेणी में आता है। आलेख में स्पष्ट रूप से यह संदेश दिया गया है कि मन की गति को नियंत्रित करने के लिए हमें अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करते हुए अपने दायित्व का निर्वहन करना चाहिए। मनुष्य जीवन में कर्म साधना सर्वोपरि है। यही संदेश आलेख में दिया गया है।
सुधा आचार्य, साहित्यकार, बीकानेर

मनुष्य का जीवन उसकी उत्पत्ति से लेकर उसका उद्देश्य और सार इसमें जानने को मिलता है। श्रीकृष्ण दर्शन भी सारी भौतिक और बाहरी चीजें यानी सांसारिक गतिविधियां मन पर ही निर्भर रहती हैं। यही विचार पैदा करता है और इसे उसी तरफ दौड़ाने लगता है। अब मन को कैसे केंद्रित करें यह आलेख में हमें पढऩे को मिला है।
-पंकज बरगले, योगाचार्य, नर्मदापुरम

मन की चंचलता से भटकाव की स्थिति पैदा होती है। यह चंचलता ही काम, क्रोध, मद मोह व लोभ का कारण बनती है। काम, क्रोध, मद मोह व लोभ ईश्वररूप परमसत्य को प्राप्त करने में बाधक बनते हैं। आत्मा की आवाज हमेशा सही दिशा की ओर अग्रसर करती है। ध्यान व साधना से हम मन को नियंत्रित कर सत्य की ओर बढ़ सकते हैं।
-प्रवीण गुलाटी, सचिव, पंजाबी समाज समिति , कोटा

मन हमेशा विषय वासनाओं में भटकता रहता है। संत योगी व महात्मा ध्यान योग साधना से मन को नियंत्रित कर लेते हैं। मन नियंत्रण में आ जाता है तो जीवन संयमित हो जाता है। संयम से कोई विकार पैदा नहीं होते। जीवन संतोषी होने लगता है। धीरे-धीरे व्यक्ति अभाव की स्थिति में भी आनंद की अनुभूति करने लगता है। मन में कोई राग-द्वेष नहीं रहते। संसार के सुख तो नश्वर हैं।
-एडवोकेट निशा शर्मा, कोटा

मन चंचल होता है । मन की गति पवन के समान तेज होती है। एक पल में वह पूरे ब्रह्मांड की यात्रा कर लेता है। मन कल्पनाशील होता है। मन की कल्पनाएं बहुत ही अद्भुद होती है। मन अपनी चंचलता के साथ साथ मनुष्य जीवन की कई सारी वृत्तियों का भी धनी होता है। कहते हैं कि ‘ मन के हारे हार है और मन के जीते जीत ! ‘ मन की मनुष्य की प्रगति का नियामक मानदंड है कि मन मजबूत तो सब तरफ सफलता है। कमजोर मन कुछ भी करने में सक्षम नही होता है। हमारे शास्त्रों में मन को साधने के कई सारे साधन बताए है। गीता इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। मन जितना अभ्यस्त होगा उतना वह क्रियाशील होगा। कृष्ण ने भी मन को अपने में समाहित करने की बात की है।
डॉ शोभना तिवारी, निदेशक, डॉ शिवमंगल सिंह सुमन स्मृति शोध संस्थान, रतलाम

ब्रह्म तत्व में लीन होने के लिए आवश्यक है मन और ह्रदय का स्थिर होना। दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं मुक्ति मार्ग पर चलने और उसे प्राप्त करने के लिए। मन की एकाग्रता से संपूर्ण सृष्टि का ज्ञान मिलता है, वहीं ह्रदय में प्रेम रखकर ईश्वर की साधना करने से उनके चरणों में स्थान मिलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। लेख मेें मन, ह्रदय और मनुष्य के बीच का संबंध बहुत ही गहराई से बताया गया है।
ब्रह्माकुमारी विनीता बहन, जबलपुर

आलेख मन चंचल ह्रदय स्थिर साधकों का मार्गदर्शन करने वाला है। आलेख में सही कहा गया है कि चंचल मन अभ्यास और वैराग्य से वश में हो सकता है। नहीं तो मन को हवा की तरह बांधना कठिन है।
श्रीकृष्ण शास्त्री शिक्षक संस्कृत, विद्यालय दतिया

यह बात सही है कि अगर व्यक्ति मन और बुद्धि ईश्वर में लगा ले तो वह ईश्वर तक पहुंच जाता है। यह बात सर्वविदित है कि हर किसी का मन चंचल और हृदय स्थिर होता है। तभी तो कहते हैं कि मन पर काबू रखना चाहिए क्योंकि जो व्यक्ति अपने मन और बुद्धि पर काबू रखता है वह अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफल हो जाता है।
आशुतोष शर्मा, साहित्यकार, शिवपुरी

मन चंचल है, होता ही है, इसको बांधना तो लगभग असंभव है, लेकिन इसकी गति को सद्कर्मों की ओर मो?कर प्रवृति को साधनामार्गी किया जा सकता है। साधक योग के माध्यम से पहले स्वयं को साधे, फिर वृत्तियों पर नियंत्रण का प्रयास करे। यह होने के बाद मन को भागने से रोका जा सकता है। मन इतना चंचल है कि बार बार उसी ओर जाता है जो दृश्य हो और आत्मा की बजाय शरीर को भाता हो।
डॉ ओमप्रकाश टकसाली, योग गुरु, श्योपुर

आलेख में योग और गीता का महत्व समझाया गया है। मनुष्य का मन चंचल होता है, कभी उपभोग के प्रति तो कभी दैनिक जीवन की विलासिता का लगाव नजर आता है। मन को नियंत्रित करने के लिए गीता के सूत्र योग से साधना तक ले जाते हैं। मन को साधकर ही मनुष्य कर्म-धर्म, भक्ति और ज्ञान को प्राप्त कर सकता है। इसमें योग का भी विशेष महत्त्व है, क्योंकि योग की प्रवृत्ति देने वाली है। योग आत्मबल बढ़ाता है, योग जीवन चक्र को नियंत्रित रूप में आगे बढ़ाता है। आदिकाल से ही योग का चलन है। यही राह तप-साधना और शांति की ओर ले जाती है।
डॉ. विनोद कुमार जैन, चिकित्सक, इंदौर

मन को शाश्वत एवं समर्थ परमात्मा में ही लगाना चाहिए ताकि वह चंचल मन स्थिर हो सके। स्थिर नहीं रहने वाला यह चंचल मन केवल ईश्वर की पावन भक्ति से ही वश में किया जा सकता हैं। आलेख में यही बताया गया है। नियमित रूप से धर्म संस्कृति से जुड़ाव रहने से शरीर भी सही रहता है।
—आचार्य गौरीशंकर शर्मा, जयपुर

 

इस शरीर में है वही इस ब्रह्मांड में है। एक विधाता की रचना में अंतर कैसे हो सकता है। जैसे सूर्य-चंद्र, ग्रह-नक्षत्र, असंख्य तारागण और आकाशगंगाएं ब्रह्मांड में स्वत: संचालित हैं। उसी तरह नेत्र रूप में सूर्य, मन रूप में चंद्र आदि सभी प्राकृतिक शक्तियां इस पिंड (शरीर) में भी विद्यमान हैं। ऋग्वेद का पुरुष सूक्त इसका प्रमाण है जिसमें परमात्म स्वरूप एक विराट पुरुष के विभिन्न अंगों से लोकों की सृष्टि का वर्णन है।

– राजन सरदार, मालवीयनगर, जयपुर

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