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प्रवाह… झूठ का पुलिंदा-3

कहावत है कि ‘जिंदा हाथी लाख का, मरा तो सवा लाख का।’ यह कहावत रामगढ़ बांध पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही है। भले ही बांध स्वयं मर रहा है या मर चुका है, पर अफसरों के लिए दुधारू गाय साबित हो रहा है।

Dec 04, 2020 / 08:08 am

भुवनेश जैन

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– भुवनेश जैन

कहावत है कि ‘जिंदा हाथी लाख का, मरा तो सवा लाख का।’ यह कहावत रामगढ़ बांध पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही है। भले ही बांध स्वयं मर रहा है या मर चुका है, पर अफसरों के लिए दुधारू गाय साबित हो रहा है। इस बांध ने अपने जीवन काल में जयपुर के नागरिकों को वर्षों तक जीवनदायिनी जल दिया। मरने के बाद भी इससे जुड़े रहे ज्यादातर अफसर इसका कतरा-कतरा बेच कर घर भरने में जुटे रहे हैं।
रामगढ़ बांध को बनाए रखने की जिम्मेदारी मुख्यत: जल संसाधन सचिव, नगरीय विकास सचिव, जयपुर जिला कलक्टर, जयपुर विकास प्राधिकरण आयुक्त और राजस्व मंडल के अध्यक्ष की है। इन पदों पर जो भी अधिकारी लगते हैं, अतिक्रमणकारी सबसे पहले उनके पास पहुंच जाते हैं। इन पदों पर पूर्व में रह चुके कई प्रशासनिक अधिकारियों के भी बांध के भराव क्षेत्र में बेनामी कब्जे बताए जाते हैं, पर कानून की कमजोरियों के चलते इसे कभी कोई साबित नहीं कर पाया। ऐसा कोई भी प्रयास होता है तो इन पदों पर लगे अधिकारी मिल-जुलकर उसे विफल करने में जुट जाते हैं।
जल संसाधन विभाग चाहता है कि रामगढ़ बांध कभी पुनर्जीवित नहीं हो वरना बीसलपुर की करोड़ों की परियोजनाएं बनाने का कोई बहाना उन्हें नहीं मिलेगा। बीसलपुर से जयपुर वासियों को पेयजल उपलब्ध कराने के नाम पर 36 करोड़ के टेण्डर हो चुके हैं। अब 1100 करोड़ का नया प्लान पेश कर दिया गया है।
अब्दुल रहमान बनाम सरकार मामले में अदालत का स्पष्ट आदेश है कि बांध के डूब क्षेत्र में खातेदारी भी खत्म हो। खेती की तो कतई अनुमति नहीं है, पेटाकाश्त की भी नहीं। पर धड़ल्ले से खेती हो रही है। मौजूदा कलक्टर अंतर सिंह नेहरा हो या जल संसाधन सचिव नवीन महाजन, किसी को इसकी फिक्र नहीं है। नगरीय विकास विभाग और जयपुर विकास प्राधिकरण तो जयपुर के विकास के नाम पर सिर्फ बड़े-बड़े अनुपयोगी फ्लाईओवर बनाने में जनता का धन उड़ाने के आगे कुछ सोच नहीं पाता। राजस्व विभाग ने रामगढ़ बांध संबंधी मामले शायद अंतिम प्राथमिकता में रख रखे हैं।
अफसरों और अभियंताओं की लापरवाही कहें, संवेदनहीनता कहें या स्वार्थ, जयपुर के प्रमुख जल स्रोत की बर्बादी का यही सबसे बड़ा कारण है। अपने निकम्मेपन को छिपाने के लिए सब मिलकर झूठ के पुलिंदे बनाने में जुटे हैं। शहर को इंतजार है कि या तो न्यायपालिका कोई कठोर कदम उठाएगी या कोई संवेदनशील, निडर और ईमानदार अफसर आएगा जो उनके प्रिय बांध का पुनरोद्धार कर दिखाएगा। राजनेताओं की इच्छाशक्ति तो पहले ही मर चुकी है।

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