Ram Navami 2021: मां कौशल्या के आंगन में एक प्रकाश पुंज उभरा और कुछ ही समय में पूरी अयोध्या उसके अद्भुत प्रकाश में नहा उठी। बाबा ने लिखा, ‘भए प्रगट कृपाला, दीन दयाला, कौशल्या हितकारी…।’ उधर सुदूर दक्षिण के वन में जाने क्यों खिलखिला कर हंसने लगी भीलनी शबरी… पड़ोसियों ने कहा, ‘बुढिय़ा सनक तो नहीं गई?’ बुढिय़ा ने मन ही मन सोचा, ‘वे आ गए क्या?’ नदी के तट पर उस परित्यक्त कुटिया में पत्थर की तरह भावना शून्य होकर जीवन काटती अहिल्या के सूखे अधरों पर युगों बाद अनायास ही एक मुस्कान तैर उठी। पत्थर हृदय ने जैसे धीरे से कहा, ‘उद्धारक आ गया…।’ युगों से राक्षसी अत्याचारों से त्रस्त उस क्षत्रिय ऋषि विश्वामित्र की भुजाएं अचानक ही फड़क उठीं। हवनकुण्ड से निकलती लपटों में निहार ली उन्होंने वह मनोहर छवि, मन के किसी शांत कोने ने कहा, ‘रक्षक आ गया…।’
जाने क्यों एकाएक जनकपुर राजमहल की पुष्प वाटिका में सुगन्धित वायु बहने लगी। अपने कक्ष में अन्यमनस्क पड़ी माता सुनयना का मन हुआ कि सोहर गाएं। उन्होंने दासी से कहा, ‘क्यों सखी! तनिक सोहर कढ़ा तो, देखूं गला सधा हुआ है या बैठ गया।’ दासी ने झूम कर उठाया, ‘गउरी गनेस महादेव चरन मनाइलें हो… ललना अंगना में खेलस कुमार त मन मोर बिंहसित हो…।’ महल की दीवारें बिंहस उठीं। कहा, ‘बेटा आ गया…।’ उधर समुद्र पार की स्वर्णिम नगरी में भाई के दुष्कर्मों से दुखी विभीषण ने अनायास ही पत्नी को पुकारा, ‘आज कुटिया को दीप मालिकाओं से सजा दो प्रिये! लगता है कोई मित्र आ रहा है।’ इधर अयोध्या के राजमहल में महाराज दशरथ से कुलगुरु वशिष्ठ ने कहा, ‘युगों की तपस्या पूर्ण हुई राजन। तुम्हारे कुल के समस्त महान पूर्वजों की सेवा फलीभूत हुई। अयोध्या के हर दरिद्र का आंचल अन्न-धन से भरवा दो, नगर को फूलों से सजवा दो, जगत का तारणहार आया है। राम आया है…।’ खुशी से भावुक हो उठे उस प्रौढ़ सम्राट ने पूछा, ‘गुरुदेव! मेरा राम?’ गुरु ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, ‘नहीं! इस सृष्टि का राम… जाने कितनी माताओं के साथ-साथ स्वयं समय की प्रतीक्षा पूर्ण हुई है।
राम एक व्यक्ति, एक परिवार या एक देश के लिए नहीं आते, राम समूची सृष्टि के लिए आते हैं, राम युग-युगांतर के लिए आते हैं…।’ सच कहा था उस महान ब्राह्मण ने! सहस्राब्दियां बीत गईं, हजारों संस्कृतियां उपजीं और समाप्त हो गईं, असंख्य सम्प्रदाय बने और उजड़ गए, हजारों धर्म बने और समाप्त हो गए, पर कोई सम्प्रदाय न राम जैसा पुत्र दे सका, न राम या राम के भाइयों जैसा भाई दे सका, न राम के जैसा मित्र दे सका, न ही राम के जैसा राजा दे सका।
(लेखक पौराणिक पात्रों और कथानकों पर लेखन करते हैं)