इस एक घटना से अनेक सवाल खड़े होते हैं जिनका जवाब आम लोगों को और पुलिस को मिलकर तलाशना होगा। क्या उद्योगपति को सुप्रीम कोर्ट के फर्जी वारंट के मामले में सात करोड़ रुपए देने से पहले पुलिस से संपर्क नहीं करना चाहिए था? बिना किसी अपराध के सुप्रीम कोर्ट किसी के खिलाफ कैसे कोई वारंट जारी कर सकता है? आए दिन देश के अलग-अलग हिस्सों में हर वर्ग के लोग साइबर ठगी का शिकार बन रहे हैं जिनमें अधिकांश मामले तो पुलिस तक पहुंचते ही नही हैं। ऐसे मामलों में ठग अपने आपको सीबीआइ या ईडी का अधिकारी बताते हैं। इनका शिकार अधिकतर वे ही लोग होते हैं जिन्हें कोई डर होता है और वे पुलिस के पास जाने से घबराते हैं। यदि पुलिस अपना असहयोगात्मक रवैया छोड़ देगी, तो लोगों का डर और झिझक भी खत्म होगी।
पुलिस को ऐसे अपराधों से निपटने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है पर साइबर ठग नित नए तरीके अपना कर अपना शिकार तलाशने में सफल हो रहे हैं। जाहिर है कि ऐसे अपराधों को रोकने के लिए आम आदमी को भी जागरूक करने की जरूरत है। यदि लोग साइबर ठगी के तौर-तरीकों से अवगत होंगे और वे ठगी की आशंका होते ही पुलिस से संपर्क साधेंगे तो साइबर अपराधों पर बहुत हद तक लगाम लगाई जा सकेगी। पुलिस और जांच एजेंसियों की सक्रियता का ही नतीजा है कि साइबर अपराधों के मामलों में सोमवार को देश में 32 ठिकानों पर छापेमारी और 26 लोगों की गिरफ्तारी का खुलासा हुआ। निस्संदेह पुलिस और आमजन की जागरूकता, सतर्कता और सक्रियता से ही साइबर ठगों के जाल को काटा जा सकेगा।