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प्रवाह: दो पाटन के बीच

Pravah Bhuwanesh Jain column: राजस्थान की जनता आए दिन के राजनीतिक ड्रामों और खींचतान से त्रस्त हो चुकी है। राजस्थान हर क्षेत्र में नीचे से नीचे जाता जा रहा है। दुर्भाग्य है कि ‘ किस्सा कुर्सी का ‘ अन्तहीन सिलसिले की तरह खिंचता ही जा रहा है।

Oct 08, 2022 / 05:38 pm

भुवनेश जैन

Ashok Gehlot vs Sachin Pilot

प्रवाह (Pravah): कांग्रेस में जो राजनीतिक नाटक चल रहा है, पता नहीं उससे किसे लाभ होगा और किसे हानि; पर यह तय है कि राजस्थान की जनता के दुख और बढऩे वाले हैं। पिछले चार साल से प्रदेश की जनता तरस रही है कि सरकार को कुछ फुर्सत मिले उसकी सुध लेने की। उसका दुर्भाग्य है कि ‘ किस्सा कुर्सी का ‘ अन्तहीन सिलसिले की तरह खिंचता ही जा रहा है। मुख्यमंत्री और उनके सिपहसालारों की सारी ऊर्जा और समय कुर्सी बचाने में लग रहा है। राज्य हित गौण हो गया है, स्व:हित सर्वोपरि!

राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनने के बाद ही शतरंज की चालों का सिलसिला शुरू हो गया। शक्ति केन्द्र का विभाजन रोकने के लिए एक तरफ से ऐसे दांवपेंच चले गए कि शुरुआत से ही पार्टी में बिखराव पैदा हो गया। दो पाटों के बीच में जो घिसाई शुरू हुई कि जनता पिसती चली गई। पहला दुर्भाग्य, कोरोना के रूप में आया। दो साल तक सारी गतिविधियां ठप रहीं तो सरकार का कामकाज भी ठप हो गया। जिन पर जनता का दर्द दूर करने की जिम्मेदारी थी, वे महीनों तक बंगलों की सुरक्षा में बंद हो गए।

 

शेष दो साल कुर्सी की खींचतान में निकल गए कभी बाड़ेबंदी हुई, कभी जोड़-तोड़ और खरीद-फरोख्त की। गाडिय़ां मिल गईं, जिन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था। दूसरी ओर, जनता को भगवान भरोसे और शासन-व्यवस्था को नौकरशाही के भरोसे छोड़ दिया गया। न नए रोजगार सृजित हुए और न निवेश आया।

बजट घोषणाओं में कोई कसर नहीं छोड़ी गई, पर कागज से उतर कर धरती पर बहुत कम आ पाई। भ्रष्टाचार, सामूहिक बलात्कार और अपराध के आंकड़ों ने रिकॉर्ड तोड़ दिया। विकास के नाम पर हजारों-करोड़ों रुपए के फालतू निर्माण करवाए गए। जनता की गाढ़ी कमाई-कमीशन में उड़ा दी गई।

परीक्षाओं में जमकर धांधली हुई। राजस्थान के बेरोजगार युवा अपने दुर्भाग्य को कोसते रहे। स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुछ बड़ी-बड़ी योजनाएं भी लागू की गईं पर वे सही चल रही हैं या नहीं, इसको देखने की फुर्सत किसी को नहीं है।प्रदेश की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई। सरकारी काम करने वाले ठेकेदारों और अन्य सेवाओं के प्रदाताओं को भुगतान के लिए खून के आंसुओं से रुलाया जा रहा है।

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ऐसा हर उस राजनीतिक दल में होता आया है, जिसमें केन्द्र कमजोर हो जाए। वह ठोस निर्णय नहीं ले पाता और राज्य के तमाम नेता मनमानी करने लग जाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि इससे पिछली भाजपा सरकार ने कोई करामात करके दिखाई हो। तब भी राजनीतिक उठापटक चलती रही। कुर्सी बचाने और कुर्सी से हटाने की कोशिश का खेल चलता रहा।

जनता तब भी उपेक्षित हो गई थी। तब उसने अपनी उपेक्षा का बदला भाजपा को चुनाव में हराकर ले लिया। इसके बावजूद कांग्रेस सरकार ने सबक नहीं सीखा। पार्टी नेतृत्व तक को अपमानित कर दिया। राज्य हित का और आमजन का ध्यान रखा होता तो जनता शायद माफ कर देती। पर चार साल में प्रदेश का विकास ठप कर दस साल पीछे पहुंचा दिया।

राजस्थान की जनता आए दिन के राजनीतिक ड्रामों और खींचतान से त्रस्त हो चुकी है। राजस्थान हर क्षेत्र में नीचे से नीचे जाता जा रहा है। राजनीतिक दल साहस और सूझबूझ से फैसले नहीं करेंगे तो जनता उन्हें भी माफ नहीं करेगी। उनकी कमजोरियों का खमियाजा जनता आखिर क्यों भुगते?
bhuwan.jain@epatrika.com

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