देश के विभिन्न भागों में गिरता भूजल स्तर चिंता का सबब बना हुआ है। इसके चलते सिंचाई और पेयजल संकट बढ़ रहा है। इस बार कई स्थानों पर औसत से ज्यादा बारिश हुई है, लेकिन भारी मात्रा में वर्षा जल यूं ही बर्बाद हो गया। हर वर्ष यही हो रहा है। बारिश में पानी को हम सहेज नहीं पाते और न ही इसे भूमि के भीतर पहुंचा पाते। इसका खमियाजा जल संकट के रूप में भुगतना पड़ता है। इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार अगले मानसून से पहले देशभर में दस लाख जल संग्रहण ढांचों के निर्माण का लक्ष्य लेकर चल रही है। इसमें चेक डैम, रिसाव टैंक और रिचार्ज कुएं शामिल होंगे। यदि यह पहल सफल हुई तो न केवल भूजल स्तर में बढ़ोतरी होगी, बल्कि जल संकट की भीषणता में कमी आएगी।
जल संकट से निपटने के लिए वर्षा जल संरक्षण बेहतर उपाय माना जाता है। बरसों से इस पर बात हो रही है। सरकार इसके लिए योजनाएं भी बनाती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर अब तक कुछ खास काम नहीं हो पाया है। जैसे दिल्ली ही नहीं देश के विभिन्न शहरों में तय साइज से अधिक के मकानों में वर्षा जल संरक्षण ढांचों का निर्माण करना अनिवार्य किया गया, लेकिन इसकी पालना नहीं हो पाई है। असल में एक तो इस तरह के ढांचों के निर्माण पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है, फिर लोगों को इसके निर्माण की तकनीक की खास जानकारी भी नहीं है। केंद्र सरकार ने सभी शहरों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के निर्माण के लिए तकनीकी जानकारी देने के लिए सेंटर बनवाने की राज्यों से अनुशंसा की थी, लेकिन इस तरह के सेंटरों के बारे में ज्यादातर लोगों को कोई जानकारी नहीं है। वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम यदि ठीक तरह से न बनें और इनका रखरखाव नहीं हो तो ये खुद समस्या का कारण बन जाते हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर में ही सरकारी स्तर पर बनाए गए इस तरह के ढांचे रखरखाव के अभाव में हादसों की वजह बन रहे हैं।
सरकार जल संग्रहण ढांचों के निर्माण के लिए औद्योगिक घरानों, स्थानीय निकायों और जल क्षेत्र में काम कर रहे लोगों से भी मदद लेगी। यह तय है कि सरकार इस काम को पूरी इच्छाशक्ति से करेगी, तो उसे सभी वर्गों का सहयोग जरूर मिलेगा। इसलिए सरकार को सबसे पहले अपने अमले को सक्रिय करना होगा। इस अभियान के तहत सिर्फ जल संग्रहण ढांचों की संख्या बढ़ाने पर ही ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए। इन ढांचों की तकनीकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने के साथ इनके रखरखाव की स्थाई व्यवस्था किए बिना यह अभियान ऐसे पौधरोपण अभियान की तरह साबित हो सकता है, जिसके तहत पौधे तो खूब लगाए गए, लेकिन रखरखाव के अभाव में वे सूख गए।
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