दिवाली और छठ को लेकर देश के हर बड़े स्टेशन पर कमोबेश यही हालात हैं। विशेष ट्रेनें शुरू होने के बाद भी राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और महाराष्ट्र से बिहार-उत्तर प्रदेश जाने वाली प्रमुख ट्रेनों में नवंबर के दूसरे हफ्ते तक कन्फर्म टिकट नहीं मिल रहा है। मुंबई में भगदड़ की घटना रेलवे के लिए इस बात का अलर्ट है कि त्योहारी सीजन में स्टेशनों पर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त इंतजाम की जरूरत है। इनके अभाव में अतीत में स्टेशनों पर भगदड़ के कई हादसे हो चुके हैं। मुंबई के एलफिंस्टन स्टेशन के फुटओवर ब्रिज पर 2017 में भगदड़ से 22 लोगों की जान गई थी। पिछले साल गुजरात के सूरत स्टेशन पर भगदड़ में एक यात्री की मौत हुई थी। इससे पहले दिल्ली स्टेशन के फुटओवर ब्रिज पर 2004 में भगदड़ से चार लोगों की जिंदगी का सफर थम गया था। ये सभी हादसे दिवाली और छठ के सीजन में हुए। सबसे गंभीर हादसा 2013 के महाकुंभ के दौरान इलाहाबाद स्टेशन पर हुआ था, जहां भगदड़ में 36 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। हर ऐसे हादसे के बाद रेलवे बंदोबस्त चाक-चौबंद करने के वादे करता है। फिर भी स्टेशनों पर भगदड़ की घटनाओं पर अंकुश नहीं लग पाना चिंताजनक है। हकीकत तो यह है कि स्टेशनों पर लगातार बढ़ रही भीड़ को नियंत्रित करने का कोई कारगर फार्मूला रेलवे ने अब तक ईजाद ही नहीं किया। यह सही है कि भीड़ के मनोविज्ञान को समझना मुश्किल है, लेकिन उसे नियंत्रित करने की ठोस रणनीति तो बनाई जा सकती है। त्योहारी सीजन में स्टेशनों में गैर-जरूरी लोगों के प्रवेश पर रोक के साथ यह उपाय भी कारगर हो सकता है कि संबंधित ट्रेन के यात्री ही प्लेटफॉर्म पर मौजूद हों। जनरल बोगियों में चढ़ने वाले यात्रियों की आपस में धक्का-मुक्की टालने के लिए रेलवे पुलिस की निगरानी में कतार लगवाना बेहतर विकल्प हो सकता है।
देखा गया है कि जब यात्री ट्रेन में चढ़ रहे होते हैं, तब रेलवे पुलिस के जवान आसपास कहीं नजर नहीं आते। हादसे टालने के लिए भीड़ को नियंत्रण में रखने के साथ स्टेशनों पर राहत और बचाव के भी मुकम्मल बंदोबस्त होने चाहिए।