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Patrika Opinion: समस्या का स्थायी समाधान नहीं हैं प्रतिबंध के उपाय

प्रदूषण की समस्या पर जब समय रहते रोकथाम के उपाय नहीं होते तो बाद में यह गहरे संकट का रूप ले लेती है। दिल्ली ही नहीं बल्कि दिल्ली से सटे गाजियाबाद में भी ग्रैप-४ के प्रतिबंध लागू करना इसका ताजा उदाहरण है।

जयपुरNov 18, 2024 / 10:31 pm

harish Parashar

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि देश की राजधानी दिल्ली में ग्रैप (ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान) के चौथे चरण के प्रतिबंधों को उसकी अनुमति के बिना नहीं हटाया जाएगा। वायु गुणवत्ता प्रबंध आयोग ने रविवार को ही ग्रैप-४ के तहत प्रतिबंध लागू करने का ऐलान किया था। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश से साफ है कि प्रदूषण की समस्या पर काबू पाने के सरकारी दावे कागजी ही साबित हुए हैं। प्रदूषण की समस्या पर जब समय रहते रोकथाम के उपाय नहीं होते तो बाद में यह गहरे संकट का रूप ले लेती है। दिल्ली ही नहीं बल्कि दिल्ली से सटे गाजियाबाद में भी ग्रैप-४ के प्रतिबंध लागू करना इसका ताजा उदाहरण है।
दिल्ली में एक्यूआइ इंडेक्स सुधारने की दिशा में कदम उठाने की मांग करने वाली याचिका की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट पहले भी प्रदूषण के मौजूदा हालात पर तल्ख टिप्पणियां कर चुका है। वायु प्रदूषण के लिए सडक़ों पर दौड़ते वाहनों को जिम्मेदार मानते हुए दिल्ली में आवश्यक सेवाओं से जुड़े ट्रकों को छोडक़र भारी वाहनों का प्रवेश बंद किया गया है। वहीं एलएनजी, सीएनजी, इलेक्ट्रिक व बीएस-४ डीजल ट्रकों को ही प्रवेश की अनुमति, और स्कूलों में भी अधिकांशत: ऑनलाइन पढ़ाई व सरकारी दफ्तरों में पचास फीसदी कार्मिकों को वर्क फ्रॉम होम जैसे प्रतिबंधों से समस्या का स्थायी समाधान होगा, ऐसा लगता नहीं। दरअसल समय रहते जरूरी उपाय कर लिए जाएं तो ऐसे सख्त कदमों की जरूरत ही नहीं पड़े। सीएनजी के लिए वाहनों की लम्बी कतारें व इलेक्ट्रॉनिक वाहनों (ईवी)के लिए चार्जिंग पॉइंट्स की कमी भी संकट बढ़ाने वाली है। वैसे भी ईवी खरीदने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के प्रयास भी आधे-अधूरे ही हैं। अब तो राजधानी दिल्ली ही नहीं, बल्कि देश के कई बड़ेे शहर वायु प्रदूषण सूचकांक के मामले में खतरे के स्तर पर हैं। ऐसे में चिंता दिल्ली की ही नहीं बल्कि तमाम उन शहरों की करनी होगी जिनमें आज नहीं तो कल दिल्ली जैसे हालात बनने का खतरा मंडरा रहा है। हो यह रहा है कि न तो प्रदूषण के कारकों की ठीक से पड़ताल करने की जरूरत समझी जाती है और न ही इनके मुकाबले के लिए उपायों की तलाश की जाती है। इसीलिए वाहनों के साथ-साथ कभी आतिशबाजी व पराली जलाने तो कभी बढ़ते निर्माण कार्यों को हवा में घुलते जहर के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट का डंडा चलने पर ही जिम्मेदार हरकत में आते हैं। कोर्ट की चिंता भी लगातार आगाह कर रही है कि समय रहते कदम न उठाए गए, तो लोगों की सेहत के लिए बड़ा खतरा उभर कर सामने आते देर नहीं लगने वाली।

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