बात किसी एक दल की नहीं है। देश की सबसे पुरानी पार्टी हो या सबसे बड़ी पार्टी या फिर क्षेत्रीय दल। टिकट पाना और येन-केन-प्रकारेण चुनाव जीतना ही नेताओं का एकमात्र लक्ष्य नजर आ रहा है। पार्टियां परिवारवाद को भी पाल रही हैं और धनबल-बाहुबल को भी। संसद-विधानसभाओं में अच्छे लोगों की संख्या घटने की रिपोर्ट आए दिन आती हैं। जेल में बैठे अपराधी भी चुनाव जीत रहे हैं।
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यदि नहीं, तो संकल्प लेने के लिए आज से अच्छा दिन और क्या हो सकता है? देश में चुनाव आयोग की स्थापना हुए 72 साल हो चुके हैं। आयोग भी आज प्रण ले और राजनीतिक दल भी, कि हम दुनिया में सिर्फ सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश ही नहीं हों, बल्कि हमारा लोकतंत्र दुनिया के लिए एक उदाहरण भी हो। काम मुश्किल नहीं, बस जरूरत है तो दृढ़ इच्छाशक्ति की।
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