रूस के कजान में ब्रिक्स सम्मेलन से इतर, द्विपक्षीय वार्ता में मोदी और जिनपिंग ने संबंधों को दीर्घकालिक रणनीतिक परिप्रेक्ष्य में आगे बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने माना कि भारत-चीन संबधों पर दुनिया की निगाह टिकी है और विकास की चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए आपसी समझ बेहतर करना जरूरी है। मोदी ने भी जिनपिंग को स्पष्ट शब्दों में बता दिया कि एलएसी पर शांति और स्थिरता न सिर्फ दोनों देशों के लिए बल्कि पूरी दुनिया की शांति और प्रगति के लिए आवश्यक है। उम्मीद की जानी चाहिए कि गलवान के बाद हासिल सबक ने चीनी राष्ट्रपति की समझ को बढ़ाया होगा कि भारत अब 1962 जैसा नहीं है कि सीमा पर विवाद पैदा कर कुछ हासिल किया जा सके। अब यदि कुछ हो सकता है तो सिर्फ मजबूत रिश्तों के साथ।
दुनिया के शीर्ष नेता समझने लगे हैं कि हमारा भविष्य साझी प्रगति पर ही टिका है। मोदी-जिनपिंग की बातचीत में जिक्र भी हुआ है कि इतिहास भले ही युद्धों का रहा हो, भविष्य आर्थिक तरक्की से तय होना है। इसके लिए लोकतंत्र की मजबूती के साथ आपसी सहमति, सम्मान और साझेदारी जरूरी है। ब्रिक्स सम्मेलन का उद्देश्य भी आपसी समझदारी बढ़ाकर बहुध्रुवीय विश्व का निर्माण करना था। यह लक्ष्य तभी हासिल हो सकता है जब स्वार्थ से ऊपर उठ रिश्ते मजबूत किए जाएं। इसी महीने शंघाई शिखर सम्मेलन में शामिल होने गए भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर का पाकिस्तान में गर्मजोशी से स्वागत और ब्रिक्स के बहाने भारत और चीन के शीर्ष नेताओं की मुलाकात को सकारात्मक कदम के तौर पर देखा जाना चाहिए। यह सिर्फ एक नई शुरुआत है।