हिंदी और संस्कृत देश की प्रमुख भाषाएं हैं। इन पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए, लेकिन इसका तरीका ऐसा होना चाहिए कि कहीं यह महसूस न हो कि उनकी अपनी भाषा को कुचलकर या उनकी कीमत पर इन्हें बढ़ावा देने की कोशिश हो रही है। इन्हें बलपूर्वक या दूसरी भाषाओं की जाने-अनजाने उपेक्षा कर लागू करने से हल नहीं निकलेगा। इससे तो उलटे इनका नुकसान होगा और स्थानीय नागरिकों की नजर में बैरी का भाव उपजेगा, जैसा कि कर्नाटक में इस समय हो रहा है।
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क्या ही अच्छा हो कि सभी, केंद्र और राज्य सरकारें और आगे बढ़कर इन स्थानीय भाषाओं की खूबियों, उनमें निहित साहित्य, साहित्यकारों व अन्य क्षेत्रों की प्रबुद्ध हस्तियों, समृद्धि, जानकारियों व विचारों को अन्य भाषाओं तक पहुंचाने के उपाय भी करें।
सभी राज्यों की भाषाओं में विलक्षणता के ऐसे तत्त्व हैं, जिनकी जानकारी आपस में साझा होने से ज्ञानवर्धन होगा और आपसी भाईचारा व सम्मान बढ़ेगा। कई ऐसे प्रसंग व उदाहरण मिलेंगे, जो दूसरे राज्यों के शैक्षणिक पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनकर प्रेरणा के स्रोत बनने में सक्षम होंगे। ऐसी प्रेरणा देश को स्थायी तौर पर एकजुट करने में कारगर होगी।
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