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Patrika Opinion: कमला की उम्मीदवारी है यूएस की प्रगतिशीलता की निशानी

आज कमला हैरिस की दावेदारी न केवल महिला सशक्तीकरण बल्कि अश्वेतों के अधिकार से जुड़े आंदोलनों को भी सकारात्मक उम्मीद व बल देती है। एक समय वह था जब अमरीका में लगभग सभी अधिकारों पर श्वेत पुरुषों का एकाधिकार था।

जयपुरSep 19, 2024 / 01:46 pm

विकास माथुर

वर्ष 1989 में आयोजित पूर्व राष्ट्रपतियों के सम्मेलन में, 1974 से 1977 तक अमरीका के राष्ट्रपति रहे जेराल्ड फोर्ड ने बड़े ही रोचक ढंग से बताया था कि अमरीका को उसकी पहली महिला राष्ट्रपति कब और कैसे मिलेगी। दरअसल, यह सवाल उनसे एक स्कूली छात्रा ने पूछा था, जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि ‘अमरीका की पहली महिला राष्ट्रपति का चयन आम हालात में नहीं होगा’। उनके मुताबिक, ‘डेमोक्रेट्स या रिपब्लिकन में से कोई एक पार्टी अपने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार किसी पुरुष को और उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार किसी महिला को बनाएगी, वह जोड़ी चुनाव जीतेगी।
कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति के आकस्मिक निधन के बाद अमरीकी संविधान के तहत महिला उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति पद पर चयनित कर लिया जाएगा।’ हालांकि यह बात पूर्व राष्ट्रपति फोर्ड ने संभवत: यह समझाने के लिए कही थी कि महिलाओं का यूं प्रमुख पदों पर आना कितना मुश्किल है, लेकिन काफी हद तक उनकी भविष्यवाणी सच होती दिख रही है। कमला हैरिस की राष्ट्रपति पद की दावेदारी आम परिस्थितियों में नहीं हुई है। डेमोक्रेट्स द्वारा उनकी दावेदारी के पीछे दो मुख्य कारणों में से एक राष्ट्रपति बाइडन का खराब स्वास्थ्य था, वहीं दूसरा कारण उनका उपराष्ट्रपति होना था। दोनों ही बातें फोर्ड की भविष्यवाणी से कुछ कुछ मेल खाती हैं।
अश्वेत व गैरअमरीकी मूल की महिला कमला हैरिस का राष्ट्रपति प्रत्याशी होना अमरीकी इतिहास के कई महत्त्वपूर्ण राजनीतिक व सामाजिक बदलावों का नतीजा है। एक जमैकन पिता और भारतीय मां की पुत्री कमला हैरिस की दावेदारी इतिहास के पन्ने पलटने की मजबूर करती है। 6 दिसंबर, 1865 में संविधान के 13वें संशोधन द्वारा दास-प्रथा की समाप्ति, 1870 में 15वें संविधान संशोधन द्वारा अश्वेत पुरुषों को मतदान का अधिकार मिलना व 1920 में 19वें संशोधन द्वारा महिलाओं को मतदान का अधिकार मिलना उन कुछ महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है जिसने एक अश्वेत महिला को राष्ट्रपति दावेदारी के इतना करीब ला खड़ा किया है। हालांकि यह संघर्ष आज भी जारी है, अमरीका की राजधानी वाशिंगटन डीसी की गलियों में जब भी आप पैदल घूमेंगे तो निश्चित ही कहीं न कहीं इमारतों-दीवारों पर ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ के नारे लिखे मिल जाएंगे। उसके अलावा महिला अधिकारों के मुद्दों पर भी सतत प्रदर्शन हाते रहते हैं।
2016 में यदि हिलेरी क्लिंटन का प्रत्याशी होना महिला सशक्तीकरण की आवाज का एक मजबूत संदेश था, तो आज कमला हैरिस की दावेदारी न केवल महिला सशक्तीकरण बल्कि अश्वेतों के अधिकार से जुड़े आंदोलनों को भी सकारात्मक उम्मीद व बल देती है। एक समय वह था जब अमरीका में लगभग सभी अधिकारों पर श्वेत पुरुषों का एकाधिकार था, उदाहरण के तौर पर सन 1870 से पहले सिवाए श्वेत पुरुषों के किसी को भी मतदान के अधिकार प्राप्त नहीं था। जैसे-जैसे समय बदला अमरीका ने 2008 में बराक ओबामा के रूप में पहला अश्वेत राष्ट्रपति चुना, 2016 में हिलेरी क्लिंटन इतिहास में पहले बार सबसे बड़े राजनीतिक दलों में से एक (डेमोक्रेटिक पार्टी) की प्रत्याशी बनीं और 2020 में उपराष्ट्रपति का चुनाव जीतीं, कमला हैरिस 2024 में अमरीकी इतिहास की पहली अश्वेत महिला राष्ट्रपति प्रत्याशी हैं।
अमरीका में महिलाओं के अधिकार की राह आसान नहीं रही है, अमरीकी इतिहास में श्वेतों का अश्वेतों पर प्रभुत्व होने के बावजूद अश्वेत पुरुषों को श्वेेत महिलाओं से पहले मतदान के अधिकार मिला। 1920 में जब महिलाओं को कानूनन यह अधिकार प्राप्त हुआ। यह बड़ा मुश्किल था क्योंकि हाउस और सीनेट में 2/3 बहुमत से 19वें संशोधन का प्रस्ताव पारित हो जाने के बाद भी 3/4 राज्यों की सहमति की आवश्यकता थी और अधिकतर दक्षिणी राज्य इसके विरोध में थे। 18 अगस्त, 1920 को टेनेसी राज्य में महिला मतदान अधिकार के इस प्रस्ताव पर वोटिंग होनी थी और 48-48 की वोटिंग से टाई हो गया। उस समय 23 वर्षीय रिपब्लिकन हैरी बर्न ने प्रस्ताव के पक्ष में निर्णायक मतदान किया और अमरीका में इस प्रस्ताव को बहुमत प्राप्त हुआ। हालांकि हैरी बर्न इस प्रस्ताव के समर्थक नहीं थे। कहा जाता है कि हैरी बर्न की मां के कहने पर हैरी ने इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया।
— द्रोण यादव

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