पिछले दो साल में कनाडा में खालिस्तान आंदोलन से जुड़े छह आतंकियों की हत्या हो गई है। कनाडा, आपसी रंजिश में मारे गए इन आतंकियों की मौत का ठीकरा भी भारत पर फोड़ रहा है। निज्जर प्रकरण में कनाडा ने कोई सबूत तक पेश नहीं किए हैं। दरअसल, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की सरकार इन दिनों अल्पमत में हैं। अगले साल उन्हें अपने यहां संसदीय चुनाव का सामना करना है। कनाडा में भारतीयों की आबादी सत्रह लाख से अधिक है। इनमें करीब आधी आबादी सिखों की है। कनाडा में रहने वाले खालिस्तान समर्थक ट्रूडो की पार्टी के वोट बैंक के रूप में जाने जाते हैं। ऐसे में वोट बैंक की राजनीति के लिए ट्रूडो दोनों देशों के संबंधों को दांव पर लगाने से भी नहीं हिचकिचा रहे हैं। निज्जर की मौत के बाद कनाडा की संसद में उसे श्रद्धांजलि तक दी गई थी। निज्जर की मौत को लेकर कनाडा सरकार का आरोप है कि भारत सरकार लॉरेंस गैंग से टारगेट किलिंग करा रही है। अहम सवाल यह नहीं है कि भारत के बारे में कनाडा क्या आरोप लगा रहा है बल्कि अहम सवाल यह है कि आखिर कनाडा भारत पर दबाव बनाने के बारे में सोच भी क्यों रहा है? भारत ने बीते सालों में दिखा दिया है कि वह किसी खेमे से बंधा नहीं है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक तरफ रूस यात्रा पर भी गए तो उन्होंने यूक्रेन जाने का साहस भी दिखाया।
कनाडा में यदि आतंकी मारे जा रहे हैं तो उनके हत्यारों का पता लगाना कनाडा सरकार की जिम्मेदारी है। बिना सबूतों के सिर्फ आरोप लगाकर माहौल खराब करने से कनाडा को कुछ हासिल होने वाला नहीं है। भारत के हितों पर आंच आई तो वह किसी के भी सामने अपनी आवाज बुलंद करने से न कभी पहले पीछे हटा है और न ही आगे ऐसा होने वाला है।