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Patrika Opinion: महामारी का वज्रपात और संवेदनहीनता

Patrika Opinion: सुप्रीम कोर्ट ने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों से कहा कि कोविड-19 से जान गंवाने वालों के परिजनों से संपर्क कर मुआवजा दावों का पंजीकरण और वितरण उसी तरह करें, जैसा 2001 में गुजरात में आए भूकंप के दौरान किया गया था। इस फटकार के बाद उम्मीद है सरकारें संवेदनशील बनेंगी।

Jan 21, 2022 / 04:08 pm

Giriraj Sharma

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Patrika Opinion: अपने किसी प्रियजन को अचानक खो देना सबसे बड़ा दुख होता है। ऐसी स्थिति में परिवार और समाज का साथ न सिर्फ ढांढस बंधाता है बल्कि दुखों से उबरने और जिंदगी की रफ्तार बनाए रखने का हौसला भी देता है। इसके विपरीत, समाज की उपेक्षा दुखों को न सिर्फ बढ़ाती है बल्कि व्यक्ति को अंदर से तोड़ भी देती है। पिछले करीब दो साल से पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है। लाखों लोग मारे जा चुके हैं। भारत भी दुनिया के सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में शामिल है। हमारे देश में 4.87 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा बैठे हैं। यह तो सरकारी आंकड़ा है। आशंका है कि असल में इससे कहीं ज्यादा लोगों की मौत हुई हो सकती है।
यह आशंका कोविड-19 से मौत के बाद परिजनों की तरफ से मुआवजे के लिए दाखिल किए जा रहे आवेदनों की संख्या को देखते हुए और बलवती होती जा रही है। हालांकि मुआवजे के दावों में झूठे मामले भी शामिल हो सकते हैं, लेकिन जांच की आड़ में मौत के आंकड़ों को छिपाने का खेल न खेला जाए, यह भी सुनिश्चित किया जाना जरूरी है। राहत की बात है कि सुप्रीम कोर्ट लगातार नजर बनाए हुए है और सरकारों की नीयत खोटी न हो जाए, इसकी पहरेदारी कर रहा है।

एक कल्याणकारी राष्ट्र होने के कारण बेहतर तो यही होता कि राष्ट्रीय आपदा कानून के तहत प्रत्येक मृतक के परिजनों में चार-चार लाख रुपए का मुआवजा दिया जाता, पर देश के आर्थिक हालात को देखते हुए केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर सुप्रीम कोर्ट ने 50-50 हजार रुपए का मुआवजा देने की व्यवस्था दी थी।

अब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा महसूस किया है कि कई राज्य सरकारें 50-50 हजार का मुआवजा देने में भी आनाकानी कर रही हैं। इस बारे में व्यापक नीति बनाए जाने के बावजूद यदि राज्य सरकारें तकनीकी आधार पर मुआवजा दावों को खारिज कर रही हैं तो यह अव्वल दर्जे की असंवेदनशीलता कही जाएगी।

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इसीलिए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने फिर से स्पष्ट किया कि तकनीकी आधार पर किसी मुआवजा दावे को खारिज नहीं किया जाएगा। कई राज्यों के आंकड़ों को भी शीर्ष अदालत ने यह कहकर खारिज कर दिया कि ये सरकारी हैं। संबंधित मुख्य सचिवों से पूछा कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शरू की जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों से कहा कि कोविड-19 से जान गंवाने वालों के परिजनों से संपर्क कर मुआवजा दावों का पंजीकरण और वितरण उसी तरह करें, जैसा 2001 में गुजरात में आए भूकंप के दौरान किया गया था। इस फटकार के बाद उम्मीद है सरकारें संवेदनशील बनेंगी और उन परिवारों को राहत देंगी, जिन पर महामारी किसी वज्रपात की तरह गिरी है।

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