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PATRIKA OPINION : नई सरकार पर सहयोगी दलों का रहेगा दबाव

राष्ट्रीय मंच पर नया एनडीए दो राजनीतिज्ञों नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू – पर बहुत अधिक निर्भर होगा। हाल के दिनों तक दोनों व्यक्तिगत तौर पर नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुखर रहे हैं।

जयपुरJun 07, 2024 / 04:39 pm

विकास माथुर

भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने 4 जून को चुनावी जीत हासिल की। इस जीत को ज्यादा से ज्यादा ‘पाइरहिक विक्ट्री’ के रूप में वर्णित किया जा सकता है। ‘पाइरहिक विक्ट्री’ शब्द की उत्पत्ति एपिरस (एपिरस दक्षिणपूर्वी यूरोप का एक भौगोलिक और ऐतिहासिक क्षेत्र, जिसे अब ग्रीस और अल्बानिया के बीच साझा किया जाता है) के राजा पाइरहस से सम्बंधित है जिसने 279 ईसा पूर्व में एस्कुलम की लड़ाई में रोमनों को हराया था लेकिन उनकी सेना को अपूरणीय क्षति हुई थी।
भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 2024 का चुनाव भले ही जीत लिया हो लेकिन इंडिया गठबंधन ने उसे कड़ी चुनौती दी है। इंडिया गठबंधन खुद को संविधान की भावना के प्रति प्रतिबद्ध बताता है। सबसे ज्यादा नुकसान गंगा के मैदान में हुआ जहां मोदी-योगी की अगुवाई में चल रही डबल इंजन ट्रेन को अखिलेश और राहुल गांधी की जोड़ी ने पटरी से उतारने की कोशिश की। चुनाव नतीजों ने बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है। खुद पीएम नरेंद्र मोदी 2019 में वाराणसी से 4.93 लाख मतों से जीते थे। 2024 में उसी वाराणसी में उन्हें मिले मतों की संख्या घट गई। इसके विपरीत कांग्रेस का गढ़ और गांधी परिवार की एक अन्य सीट अमेठी में 2019 में हार के बाद राहुल गांधी ने रायबरेली में 3.9 लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की। यह उलटफेर को दर्शाने वाली कहानी है।
पीएम मोदी लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने और बड़ा संदेश देने का प्रयास करते रहे हैं लेकिन वक्त उनके खिलाफ रहा। भाजपा की चुनावी सभाओं में मोदी ने अपने संबोधनों के जरिए अपने समर्थकों में उत्साह पैदा करने की कोशिश की, लेकिन इसमें अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
मोदी सरकार ने वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों का संचालन किया लेकिन 95 फीसदी से ज्यादा यात्री अब भी एक-दूसरे के ऊपर लदे हुए और भीड़-भाड़ वाली गंदी ट्रेनों में यात्रा करते हैं, जहां आमतौर पर न्यूनतम सुविधाएं भी नहीं होती हैं। लेकिन लोगों को यह समझाने की कोशिश की गई कि उनके जीवन-स्तर की स्थितियों में सुधार हुआ है। जीवन स्तर का कथित मानक एक सापेक्ष अवधारणा है। द्वितीय श्रेणी के एक सामान्य डिब्बे में यात्रा करने वाला इंसान आलीशान वंदे भारत एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे यात्री को किस हसरत भरी से निगाह देखता है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आई एग्जिट पोल की बाढ़ ने हार-जीत के नए मानक खड़े कर दिए। भाजपा की प्रचार सभाओं में राहुल गांधी को पचास से भी कम सीटों पर समेटने की बात कही गई। अखिलेश यादव, एमके स्टालिन, ममता बनर्जी और तेजस्वी यादव को लेकर भी चुनावी सभाओं में ऐसे ही बयान दिए गए। पीएम मोदी ने 82 दिनों में देश भर में 206 रैलियों को संबोधित करके मतदाताओं का मन जीतने की कोशिश की। भाजपा की सभाओं में उपलब्धियों का बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बखान किया गया, लेकिन विपक्षी दल मिलकर मैदान में उतरे और भाजपा की संख्या कम कर दी और उसे बहुमत पाने से रोक दिया।
चुनाव परिणामों ने जता दिया है कि बुलबुला फूट चुका है। अपने घोषित लक्ष्य -अब की बार चार सौ पार- की तुलना में भाजपा 150 से अधिक सीटों से पीछे रह गई। विडंबना यह है कि भाजपा की सीटें उसके गढ़ वाले प्रमुख राज्यों में भी कम हो गई और केवल उड़ीसा तथा तेलंगाना में बढ़ीं। संसद में भाजपा अब भी सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन उसका आकार छोटा हो गया है। पार्टी को अहसास है कि रास्ता कांटों से भरा है। अब राष्ट्रीय मंच पर नया एनडीए दो राजनीतिज्ञों नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू – पर बहुत अधिक निर्भर होगा। हाल के दिनों तक दोनों व्यक्तिगत तौर पर नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुखर रहे हैं। ऐसे राजनीतिक मामलों को देखना मुश्किल भरा होगा जो भाजपा के एजेंडे वाले होंगे। ऐसा लगता है कि वे सरकार पर शिकंजा कसते रहेंगे। ये लोग नई सरकार को ज्यादा समझौताकारी बनने के लिए मजबूर कर सकते हैं।
— मोहन गुरुस्वामी

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