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पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – कौन खा गया धन

राजस्थान पथ परिवहन निगम की तंगहाली का समाचार पढ़ा कि रोडवेज पर सेवानिवृत्त कर्मचारियोें के 200 करोड़ रुपए से ज्यादा बकाया है।

जयपुरAug 30, 2024 / 12:04 pm

Gulab Kothari

गुलाब कोठारी
राजस्थान पथ परिवहन निगम की तंगहाली का समाचार पढ़ा कि रोडवेज पर सेवानिवृत्त कर्मचारियोें के 200 करोड़ रुपए से ज्यादा बकाया है। परिवहन निगम के 13 हजार सेवानिवृत्त कर्मचारियों को न तो पेंशन मिल रही है, न ही अन्य परिलाभ। अफसरों की और नेताओं की पेंशन तो चालू ही होगी। क्या यह बेशर्मी-निर्लज्जता और आचरण का निकृष्ट उदाहरण नहीं है? जहां एक टैक्सी ड्राइवर ऋण से कार लेकर भी अपना परिवार पाल सकता है, वहीं आस्तीनें चढ़ाकर दादागिरी दिखाने वाले भ्रष्ट लोग हजारों बसों के चलते हुए भी अपने ही कर्मचारियों के परिवारों को भूखे मारकर मस्त हैं। टोल टैक्स से प्रतिदिन अवैध रूप से (अनावश्यक) करोड़ों रुपए इकट्ठे किए जा रहे हैं, फिर भी घाटा इतना कि छोटे कर्मचारियों को पेंशन तक नहीं। सरकारी सुरक्षा का पहला आकर्षण पेंशन ही है।
एक उदाहरण तो आज भी मेरे सामने हैं। एक ड्राइवर ने 32 वर्ष नौकरी करके इस्तीफा दे दिया। उसको पेंशन देने से कृपालु अधिकारी ने यह कहकर मना कर दिया कि उसने इस्तीफा दिया है, सेवानिवृत्ति नहीं मांगी। यही ‘दरियादिली’ पूरे परिवहन निगम को घाटे में रखे हुए है। हम ही खाएंगे, किसी को खाने नहीं देंगे। कागज पर शब्द ठीक कराया जा सकता था। उसके बच्चों की परवरिश तो हो जाती। डूब मरना चाहिए ऐसे तानाशाहों को।
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समाचार में कितने बिन्दु थे जहां लाभ रोका जा रहा है। मानो ये कर्मचारियों पर मेहरबानी की जा रही हो, खैरात बांट रहे हों अथवा अफसर अपने वेतन से दे रहा हो।

  1. 1. संशोधित नियमों के अनुसार पेंशन नहीं दी जा रही !
  2. 2. सातवें वेतन आयोग में पे-मेट्रिक के अनुसार निगम की ओर से 2.57 प्रतिशत के हिसाब से पेंशन बनती है। इसमें बकाया महंगाई भत्ते जैसा भुगतान नहीं हो रहा।
  3. 3. बकाया अधिश्रम भत्ता, रात्रि भत्ता आदि का भुगतान नहीं हो रहा।
  4. 4. सीपीएफ पेंशनर्स के निराकरण में हायर पेंशन में आ रहीं विसंगतियों का निराकरण नहीं हो रहा।
  5. 5. 75 वर्ष से अधिक उम्र वालों को दस प्रतिशत अतिरिक्त पेंशन वृद्धि नहीं दी जा रही।
पेंशन लेना भी लाचारी भरा काम है। ले लो, जो दे रहे हैं, नहीं तो किसके आगे रोओगे।
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परिवहन क्षेत्र में ही निजी बसों वाले भी तो कमा रहे हैं। वहां न टायर चोरी होते हैं, न डीजल और न बिना टिकट यात्रा संभव है। सरकार में वही आदमी कैसे चोर और भ्रष्ट बन जाता है! मध्यप्रदेश में तो सारी बसें नेता-अफसर-माफिया चलाते हैं। विभाग भी बंद नहीं है। वहां भी सरकार है, यहां भी सरकार है। जहां कर्मचारी ही दु:खी है, वहां आम नागरिक कैसे सुखी होगा। सरकार को जांच करानी चाहिए- कौन खा गया सारा धन। आज तो प्राथमिकता से सारी टोल टैक्स की आय से कर्मचारियों को पेंशन -बकाया भत्तों का भुगतान करना चाहिए। अन्यथा सरकारी नौकरी पर आशंका के प्रश्न उठने लग जाएंगे!

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