ओपिनियन

पत्रिका में प्रकाशित आज का अग्रलेख- सरकारी ‘शक्तिमान’

समय जिस प्रकार करवटें बदल रहा है, उसमें आदमी का मोल तय होने लगा है, रिश्ते छोटे पड़ने लगे हैं। भौतिकवाद ने अहंकार और महत्वाकांक्षाओं को सातवें आसमान पर चढ़ा दिया है।

जयपुरJul 11, 2024 / 08:26 pm

Gulab Kothari

गुलाब कोठारी

समय जिस प्रकार करवटें बदल रहा है, उसमें आदमी का मोल तय होने लगा है, रिश्ते छोटे पड़ने लगे हैं। भौतिकवाद ने अहंकार और महत्वाकांक्षाओं को सातवें आसमान पर चढ़ा दिया है। इस देश में कभी रजवाड़ों के दौर में आम आदमी का भी सम्मान होता था। राजमहल का दरवाजा कोई खटखटाता था तो उसे राजा दरबार में बुला लेता था। आज जनता के सेवक कहे जाने वाले -चाहे मेयर हों, जयपुर विकास आयुक्त (जेडीसी) हो, बिजली, यातायात, जलदाय के प्रमुख शासन सचिव हों, जनता का दर्द सुनने और राहत पहुंचाने को पद का अपमान समझते हैं। ‘वराह’ विष्णु के दस अवतारों में एक हैं जो पशु रूप हैं। पृथ्वी का भार उठाए रहते हैं। वराह यानी सूअर की शक्ति उसका अन्न है। वह भिष्ठा खाता है और सर्वाधिक चर्बी वाला प्राणी है। जंगली सूअर तो शेर से भी जूझ लेेता है। सरकारें हर विभाग में ऐसे ‘शक्तिमान’ को तैयार करती रहती है।

पिछले दिनों ही प्रकाशित एक समाचार – ‘लोकायुक्त ने माना…बजरी खनन के पट्टों में हुआ अरबों का घोटाला, मांगी रिपोर्ट ’ शीर्षक से पढ़ा। इसमें कहा गया था कि राजस्थान के लोकायुक्त प्रताप कृष्ण लोहरा ने नियम विरुद्ध बजरी खान के पट्टों में अरबों का घोटाला होना माना है। लोकायुक्त ने सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी एवं उच्चतम न्यायालय के आदेशों के विपरीत निरस्त एलओआइ धारकों को नियम विरुद्ध बजरी खनन के पट्टे देने में हुए घोटालों की रिपोर्ट कई बिन्दुओं पर मांगी है।

बजरी घोटाला, भ्रष्टाचार का एक बड़ा पात्र है जिसमें अधिकारी, मंत्री, यहां तक कि मुख्यमंत्रियों तक के नाम वर्षों से चर्चा में आते रहे हैं। बिना ऊपर की मिलीभगत के ऐसे जानलेवा नासूर पनप ही नहीं सकते। अवैध निर्माण भी एक बड़ा नासूर है, नेताओं/अफसरों के घरों में धन के ढेर लगे हैं। आज कई विधायक-अधिकारी-मंत्री सरकारी जमीनों पर धड़ल्ले से कब्जे करवा रहे है। तब पिछली सरकारों की फाइलें कौन खोले? पिछले 15-20 सालों में जितना अतिक्रमण, माफिया राज कांग्रेस व भाजपा की पूर्ववर्ती दोनों सरकारों ने स्थापित किया और जिस प्रकार से न्यायपालिका, ग्रीन ट्रिब्यूनल, सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटियों ने आदेश दे-देकर अनुपालना के प्रति आंखें मूंदे रखी, उससे तो इन संस्थाओं ने अपने अस्तित्व पर प्रश्न ही खड़े करवाए। इतना ही नहीं ये संस्थाएं सरकारी भ्रष्टाचार की बदनामी के अंग भी बन गईं। दोनों ही पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों के प्रतिनिधियों की विभागों में स्थायी व्यवस्थाएं भी चर्चा में बनी रही हैं। अवैध खनन के इस खेल में वन विभाग की बड़ी भूमिका है। नेता और अफसरों का गठजोड़ वन क्षेत्र में खनन माफिया को पनपा रहा है। खनन माफिया को फायदे पहुंचाने की नीयत से संभावित खनन क्षेत्रों को आए दिन वन क्षेत्र से मुक्त करने का खेल भी चल रहा है। वन क्षेत्र में नए क्षेत्रों को हटाने और जोड़ने का यह काम बस पैसे का खेल है।

क्या राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति पहली बार हुई है? क्या दूसरे संवैधानिक पद भी खाली थे? फिर इस ‘घोटाला विभाग’ पर कार्रवाई किन कारणों से नहीं हुई? क्या लोकायुक्त को ये कारण लिखित में कोई बताएगा? क्या पहले इस तरह की रिपोर्टें कभी बनी नहीं? क्या किसी को याद है कि भिण्ड-मुरैना (मध्यप्रदेश) में बजरी माफिया के हाथों एक पुलिस अधीक्षक को कुचलकर मार दिया गया था? अलग-अलग मामलों में और भी कितने पुलिस कर्मचारी अपनी जान गंवा चुके? क्या पुलिस अपनी रक्षा करने के लायक भी नहीं बची या उसने भी अपने नख-दंत खो दिए हैं?

लोकायुक्त महोदय! आपने जनता की दु:खती नस पर हाथ तो रख दिया है, किन्तु क्या परिणाम बदल पाएंगे, यह शंका तो बनी ही रहेगी। क्या आप पुरानी सरकारों-नेताओं-प्रमुख अधिकारियों के विरुद्ध कुछ कर पाएंगे। नाम भी शायद नहीं बताए जाएं। आज तक जस्टिस जसराज चौपड़ा इस बात से दु:खी हैं कि जोधपुर में चामुण्डा देवी मन्दिर (मेहरानगढ़) दु:खान्तिका की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई। ऐसी सैंकड़ों कमेटियों की रिपोर्टें 15-20 वर्षों से मौन कर दी गई हैं।

राजस्थान में लोकायुक्त संस्था बने 50 साल पूरे हो गए। मध्यप्रदेश और कर्नाटक में लोकायुक्त पुलिस को छापा डालने तक का अधिकार है, लेकिन राजस्थान में लोकायुक्त को यह अधिकार है ही नहीं। पुलिस टीम मिलना तो दूर की बात है। प्रदेश के लोकायुक्त ने नौ साल पहले राज्य सरकार से लोकपाल की तरह शक्तियां देने के लिए कानून का मसौदा तैयार करके दिया, लेकिन वह ठंडे बस्ते में पड़ा है। इस दौरान भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों की सरकारें राज करके चलीं गई, लेकिन लोकायुक्त बिना पंजे का शेर ही बना हुआ है। सरकार लोकायुक्त को ताकत देने के साथ ही उसकी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने को तैयार नहीं है।

बजरी से राज्य सरकार को सालाना 115 से 130 करोड़ के आसपास आय होती है। जबकि जनता की जेब से 8 से 10 हजार करोड़ रुपए सालाना निकल रहे हैं। खान विभाग में बजरी माफिया का नेटवर्क इतना मजबूत है कि खानों की नीलामी तक न्यायिक प्रक्रिया में उलझती जा रही है। सरकार और अधिकारी कानूनी तरीके से बजरी खनन की लीज जारी होने का रास्ता ही नहीं निकाल पा रहे हैं। इस कारण तारीख पर तारीख पड़ रही है और बजरी के अवैध खनन व अंधाधुंध दोहन से नदियां छलनी हो रही हैं। वहीं मनमाने दाम वसूली से लोगों की जेब पर डाका पड़ रहा है। सत्ता में आते ही भजनलाल सरकार ने अवैध खनन के खिलाफ अभियान जोर-शोर से शुरू किया था। सरकार के चुनावों में व्यस्त होते ही बजरी माफिया, नदियों व तालाबों की कोख खाली करने में लग गए। इस कारण बजरी के अवैध खनन व चोरी से राज्य सरकार को रॉयल्टी का भारी नुकसान खूब हो रहा है।

राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रदेश में बजरी के अवैध खनन और परिवहन को लेकर करीब तीन माह पहले कहा था कि लगता है यहां पुलिस और खान विभाग की बजरी माफिया से मिलीभगत है। कोर्ट ने बूंदी के सदर थाने में दर्ज बजरी चोरी के मामले में पर्यावरण हितों को देखते हुए सीबीआई से एफआइआर दर्ज कर जांच करने को कहा था। साथ ही कोर्ट ने बनास और चंबल नदी के आसपास के मामलों में बजरी माफिया को जांच के दायरे में लेने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने तो यहां तक कहा कि राज्य सरकार बजरी माफिया के खिलाफ कागजी अभियान चलाती है। जाहिर है कि अफसरों को कोई परवाह ही नहीं है। यहां तक कि कोर्ट को भी गुमराह करने का प्रयास किया जाता है। यह बात भी छिपी नहीं है कि अधिकारी और राजनेता बजरी के अवैध खनन से चांदी कूट रहे हैं, जिसको लेकर हाईकोर्ट के आदेश में भी इशारा किया गया।

बजरी खनन अकेला मुद्दा नहीं है। पत्थर खनन का मुद्दा भी उतना ही बड़ा है। इस बीमारी ने प्रदेश के कितने पहाड़ों को मौत की नींद सुला दिया। पुलिस-नेताओं के मध्य संघर्ष भी खूब सुर्खियों में आते रहे हैं। हाल ही खेतड़ी में अवैध खनन का मुद्दा तो विधानसभा में भी खूब गूंजा। सत्तापक्ष के विधायक ने खेतड़ी में एडीजी के भाई पर अवैध खनन का आरोप लगाया, तो एडीजी के भाई ने विधायक पर ही अवैध खनन कराने का आरोप लगा दिया। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने अवैध खनन से जुड़े इस मामले के साथ ही खनन माफियाओं के एक दलित कांस्टेबल को कुचलकर मारने की जांच का मुद्दा उठाया। कोर्ट हर बार की तरह स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान अब लेता नहीं। सरकार में कुछ नई परम्पराएं चल पड़ी हैं-बांटकर खाने की। तेरी सरकार, तू खा ले, मेरी होगी, मैं खा लूंगा।/खा लूंगी।

बजरी-पत्थर-भू-माफिया-शराब-मादक पदार्थ जैसे माफिया जब सरकार का अंग बन जाएंगे, तब जनता का हाल क्या होगा? ऊपर से अतिक्रमण-मास्टर प्लान के आदेशों की धज्जियां नहीं उडेंगी तो क्या होगा। कानून में विश्वास कहां रह जाएगा? हर भ्रष्टाचार में पुलिस भी जनता के साथ होली खेलने लगी। बजरी-अतिक्रमण-भू-माफिया-भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों की तस्वीरें दिखाने के लिए अकेला जयपुर के समीप रामगढ़ बांध ही काफी है। सब मस्त हैं। लोकतंत्र क्या अंग्रेजों के राज से सुखद है? चूंकि अधिकांश संवैधानिक पदाें पर नियुक्तियां भी सरकारें ही करती हैं, उसके आगे भी और विरोध में भी बाल-बच्चेदार व्यक्ति के लिए चुनौती देना सहज नहीं है।

यह भी पढ़ें

Lokshabha Elections 2024: चुनाव अथवा महासमर?

इन सारे माफिया की कमाई अरबों की होती है। इसलिए हमारे दोनों ही पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री विपक्ष को कोसते तो रहे, किन्तु पूरे पांच साल मौन रहकर चले गए। अंत तक दोनों ही आलाकमान के विरोधी भी बन गए। कारवां गुजर गया- हम गुबार देखते रहे।

संबंधित विषय:

Hindi News / Prime / Opinion / पत्रिका में प्रकाशित आज का अग्रलेख- सरकारी ‘शक्तिमान’

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.