गुलाब कोठारी
लोकतंत्र का कैसा नंगा नाच हो रहा है! जिसे टिकट नहीं मिले, वही आग-बबूला हो रहा है! देश चल कैसे सकता है, उसके बिना। लोग कौन होते हैं, मुझे चुनने वाले! क्या होता है आलाकमान! आज मैं पार्टी में रहकर इतना बड़ा हो गया हूं कि पार्टी छोटी है-मेरे आगे। भस्मासुर हो गया हूं, पार्टी को भस्म कर दूंगा! लोकतंत्र मेरी दिशा में ही चलेगा! टिकट नहीं दिया तो चुनाव लड़कर पार्टी को खा जाऊंगा! आज यह दृश्य सर्वव्यापी होता नजर आ रहा है। यह आतंकियों का, भ्रष्टाचारियों का लोकतंत्र होता जा रहा है। यहां लोक है और गूंगा है। तंत्र हिटलरशाही होता जा रहा है। तंत्र व्यापारी है और लोक, व्यापार की सामग्री बन चुका है। ऐसे आसुरी वृत्तियों वाले साम-दाम-दण्ड-भेद से टिकट ले भी आएं तो कम से कम युवा तो उनका साथ नहीं दें। उनका भविष्य लुट जाएगा।
यह इस देश का दुर्भाग्य ही है कि बूढ़े लोग, युवाओं को मार्ग देने के स्थान पर उनका रास्ता रोकते जा रहे हैं। सठिया लोग देश चला रहे हैं। शायद विश्व का एकमात्र देश होगा जहां कोई प्रभावी नेता-अफसर सेवानिवृत्त ही नहीं होता। युवा का मार्ग बंद! तब कहां नौकरियां! बेरोजगारी का मूल कारण बना यह हठी, स्वार्थी व प्रभावी वर्ग देश को डुबोने के लिए जिम्मेदार हैं। खुद बैठे रहने के लिए, दूसरों को भी नहीं हटाना चाहता।
किसी भी बड़े अधिकारी-न्यायाधीश-नेता को देख लें, वह सेवानिवृत्त नहीं होना चाहता। मरते दम तक अभावग्रस्त रहता है। न वेतन से पेट भरता है, न रिश्वत से, न ही पेंशन से। अपनी सत्ता न छूटे। देश भले ही पीछे चला जाए। राजनीति में तो सेवानिवृत्ति है ही नहीं। न वे कभी बूढे़ ही होते। जैसे-जैसे समय के साथ औसत आयु बढ़ रही है, वह निवृत्त होना ही नहीं चाहता। न उसे नई तकनीक से वास्ता है, न ही शिक्षण-प्रशिक्षण से। उसके पोषक तत्त्व पहले वंशवाद और जातिवाद थे, अब माफियावाद हो गया है। पिछले चार सालों में से किसी विपक्षी नेता के दर्शन जनता को नहीं हुए, चाहे वह किसी दल का हो। अब अचानक हाथों में झंडे ले-लेकर कूद पड़े। जो भ्रष्टाचार के कारण हारे थे, वे भी गुर्रा रहे हैं। क्या इनके रहते देश युवा हो सकता है?
आज की पहली आवश्यकता है-एक नए कानून की। सेवानिवृत्ति के बाद किसी नेता-अधिकारी-न्यायाधीश (लोकतंत्र के तीनों पाये) को पुन: काम पर नहीं लिया जाए। फिर देश में हर वर्ष कितने लोग आगे आएंगे। इन स्वार्थी तत्त्वों का पेट भरने के लिए आए दिन कितने आयोग-समितियां-संस्थान बना रहे हैं। जनता के सिर पर बोझ लाद रहे हैं। ये देशभक्त ऐसे हैं कि महीने का काम सालों में भी पूरा नहीं करते। ऐसे अनावश्यक संस्थानों को भी बंद कर देना चाहिए जो विदेशों की तर्ज पर लोकाचार के लिए बने थे।
युवा जानते असलियत
होना तो यह चाहिए कि सेवा-निवृत्ति की आयु पूरे देश में एक ही हो। पेंशन नीति और वेतनमान भी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुसार होनी चाहिए। आज जो वेतन ऊपर वालों को मिलता है, वह डॉलर वालों जैसा है। तब नीचे वालों के लिए धन बचता ही नहीं है। सारी लड़ाई उस धन को हड़पने की है। भले ही गरीब भूखा मर जाए। ऐसे ही लोग देश का नेतृत्व करने को उतारू हो रहे हैं।
मैं हर राजनीतिक दल के आलाकमान से आग्रह करना चाहता हूं कि टिकट देने का निर्णय करने से पहले व्यक्ति की शिक्षा, निष्ठा, समझ और पृष्ठभूमि पर चर्चा करें। आज तक जीतने के लालच में हम लोकतंत्र को माफिया के हाथों ही सौंपते जा रहे हैं। तीनों पाये धमकाने लग गए हैं। यह लोकतंत्र का अपमान भी है और अवसान भी। ऐसे तत्त्वों के दबाव में अपने निर्णय भी किसी आलाकमान को बदलने की आवश्यकता नहीं है। जनता-आज का युवा-अपने भविष्य को समझता है और इनकी असलियत को भी।