scriptजनादेश: आगे बढ़े देश | Patrika Group Editor In Chief Gulab Kothari Article 4 December | Patrika News
ओपिनियन

जनादेश: आगे बढ़े देश

चार राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव परिणाम आ गए। सभी चुने गए विधायकों को हार्दिक बधाई। साथ ही बधाई उन सभी मतदाताओं को जिन्होंने लोकतंत्र के इस उत्सव में जनादेश देने का अपना कर्त्तव्य निभाया।

Dec 04, 2023 / 10:30 am

Gulab Kothari

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चार राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव परिणाम आ गए। सभी चुने गए विधायकों को हार्दिक बधाई। साथ ही बधाई उन सभी मतदाताओं को जिन्होंने लोकतंत्र के इस उत्सव में जनादेश देने का अपना कर्त्तव्य निभाया। चुनने के बाद सभी विधायक राज्य विधानसभा के सदस्य हो गए। किसी भी क्षेत्र से आए, अब राज्य के प्रतिनिधि हो गए। इन सबका नेता एकमात्र मुख्यमंत्री होगा। विपक्ष हो, निर्दलीय, दो मुख्यमंत्री नहीं हो सकते। अत: सभी सम्मान में बराबर रहने चाहिए।

आज भारत लोकतांत्रिक व्यवस्था एवं परम्परा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। इसी के सहारे ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनाकर अग्रणी देशों की कतार में खड़े हैं। यह सही है कि विकास के साथ कुछ ह्रास भी होता है। हम यदि मूल्यों को साथ लेकर आगे बढ़ेंगे तो विकास को भी संतुलित रख सकेंगे। विश्व का नेतृत्व सहजता से कर सकते हैं। संघीय व्यवस्था में राज्यों और केन्द्र की दृष्टि-चिन्तन दिशा-लक्ष्यों में सामंजस्य रहे तो आसमान छू सकते हैं। दलों से उठकर देशहित सर्वोपरि है।

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इस दृष्टि से पांचों राज्यों को तुरंत संभल जाना चाहिए। अगले लोकसभा चुनावों में अधिक समय बाकी नहीं है। जनता की आंखें सरकारों के कामकाज पर टिकी हुई रहेंगी। कई प्रकार की अपेक्षाएं बाट जोह रही होंगी। लघु जनादेश ही बड़े जनादेश का आधार बनता है। इस बार का जनादेश विशेष है।

तीनों हिन्दी राज्यों में परिणाम मौन-लहर की ओर संकेत कर रहे हैं। एक नए संगठित-विकासवान राष्ट्र के लिए आह्वान है मतदाता का। पिछले वर्षों में सत्ता-संघर्ष के चलते जाति-धर्म और सम्प्रदायों के नाम पर देश पीछे जा रहा है। निवेश ठहरा हुआ है। इसके साथ ही यौवन ठहरा हुआ है- रोजगार खो गया। कोई नए भारत का, औद्योगिक भारत का सपना नहीं देख रहा। राष्ट्रवाद की चर्चा पार्टी कार्यालयों में कैद हो गई। दलों की पकड़ भी नीचे नहीं रही। लोक और तंत्र दो रह गए। निराशा का साम्राज्य छा रहा है। ऐसे में ये जनमत प्रकाश की किरण है।

आप श्रेय चाहे ‘लाड़ली बहना’ को दें, तीन तलाक को दें, तीन ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था को दें, देश में पहली बार एक दल के नाम पर चुनाव हुए, व्यक्ति गौण हो गए। सूत्रधार के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसके सारथी बने। आज भी किसी दल के नेता में यह क्षमता नहीं है कि देश को साथ लेकर पार्टी के ध्वज तले आगे बढ़ सके। आलोचना करने में तो क्या जाता है। यह परिणाम लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ता जनमत है। इसी मानस के साथ जातियों के नाम पर होने वाले खण्डन को भी रोका जा सकेगा। महिलाओं की भूमिका 33 प्रतिशत आरक्षण का आश्वासन, समान नागरिक संहिता, सांस्कृतिक मूल्यों का विकास जैसे गंभीर मुद्दों के निस्तारण के लिए भी ‘मोदी’ ही दम रखते जान पड़ते हैं। देश को आगे बढ़ाना है तो तुष्टीकरण और भ्रष्टाचार से मुक्त होना आवश्यक है। मोदी ही गारण्टी की गारण्टी हैं। इसके बावजूद मोदी ने अपनी जगह पार्टी को ही प्रमुखता दी। उन्होंने चुनावी सभाओं में साफ कहा कि पार्टी का चेहरा कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि कमल का फूल है। वाराणसी में जब मोदी लोकसभा का चुनाव लड़े तो पूरे देश में जहां भाजपा मोदी के नाम पर वोट मांग रही थी, वहीं स्वयं मोदी ने वाराणसी में अपने लिए कमल के फूल के नाम पर वोट मांगे थे।

परम्परागत मंत्रिमण्डल के ढांचे को तिलांजलि दे देनी चाहिए। प्रत्येक मंत्री अपने विभाग को प्रदेश स्तर पर समझने की क्षमता रखने वाला होना चाहिए। भ्रष्ट और अपराधी तो कतई नहीं हो। ये ही सरकार डुबाने के निमित्त बनते हैं। सुशासन के प्रयासों को कैंसर की तरह भीतर से खोखला करते रहते हैं। भ्रष्टाचार ही विकास को खाता है। अपराधी तो स्वभाव से संवेदनहीन होता है। कानून को अपना काम करने ही नहीं देते। झूठ और पर्दा इनके परिजन होते हैं। विडम्बना यही है कि ये कमाऊपूत सरकारों के लाड़ले होते हैं।

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मंत्रियों की अक्षमता ही लालफीताशाही की जननी बनती है। तब भ्रष्टाचार पनपता है। निवेशक कतराता है। उद्योग पनप नहीं पाते। 21वीं सदी के उद्योग अभी सौ साल नहीं आएंगे। पत्थर लगेंगे, शिलान्यास होंगे और दफन हो जाएंगे। इस बार जो भी सरकार आएगी, खजाना खाली मिलेगा। हजारों-लाख करोड़ का उधार मिलेगा। नंगा क्या धोए, क्या निचोड़े! जनता को ही जागरूक रहना पड़ेगा। संसाधनों की कमी नहीं है। वातावरण बनाने के लिए विभिन्न मंचों से आवाज उठती रहनी चाहिए। शिक्षा-स्वास्थ्य-पानी-बिजली-सड़कें सहज सुलभ हों। पिछड़ों को मदद मिले। सबको समान अवसर मिलते रहें। किस कारण से सरकार पर अंगुलियां उठती रहीं, उन्हें दूर करें।

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