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मत चूके चौहान

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥(गीता 4/7)इसका यह अर्थ तो है ही कृष्ण किसी भी युग में अथवा प्रत्येक युग में पैदा हो सकते हैं। अर्थात् हमको आवश्यकता पड़ने पर सदा उपलब्ध हैं। उन्होंने तो यहां तक कहा है कि मैं प्रत्येक हृदय में हूं। ‘ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति’ (गीता 18/61)।

Nov 16, 2023 / 10:34 am

Gulab Kothari

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यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥(गीता 4/7)
इसका यह अर्थ तो है ही कृष्ण किसी भी युग में अथवा प्रत्येक युग में पैदा हो सकते हैं। अर्थात् हमको आवश्यकता पड़ने पर सदा उपलब्ध हैं। उन्होंने तो यहां तक कहा है कि मैं प्रत्येक हृदय में हूं। ‘ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति’ (गीता 18/61)।

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भीतर बैठा है, जगाने की जरूरत है। द्रोपदी की तरह पुकारना पड़ेगा। दौड़ आएंगे। कब पुकारेंगे..? आज ही क्यों नहीं? पूरा प्रांत, एक नहीं पांच-पांच प्रदेश, एक भीषण द्वन्द्व से गुजर रहे हैं। राष्ट्र हित-राष्ट्र विकास-युवा भविष्य के लिए योग्य प्रतिनिधियों का चुनाव करना है। समुद्र मंथन चल रहा है। इसमें सुर भी हैं, असुर भी हैं। अलग- अलग नहीं हैं। बाहर जितने देव नजर आते हैं, भीतर वे असुर भी हैं। अति विनम्र धूर्त। बातें विकास की, कारोबार लूटने का। आज 75 साल बाद सारा अन्न विषाक्त हो गया, फल-सब्जी विषैले हो गए, दूध-पनीर-विषैले हो गए, हवा-पानी तक विषैले हो चुके। धीरे-धीरे आदमी विषैला होता जा रहा है। सरकारी अधिकारी, नकली खाद-बीज बेचकर किसानों को आत्महत्या के लिए उकसा रहे हैं। माफिया सरकार के निर्णयों में भागीदार बन जाते हैं।

हर युग में असुर तीन गुना ही रहेंगे। कलियुग में समय के साथ देवता ही असुर हो रहे हैं। इसका भी दोष तो हमारा ही है। आज हमारे युवावर्ग में न भगतसिंह बचा, न लाल बहादुर । सब मोबाइल पकड़कर बैठे हैं। आज जब देश भीतर के आतंकियों से ही जूझ रहा है, तब इसके भीतर का कृष्ण कब जगेगा? सरकारें तो कंस का रूप ले चुकी। रावण, सीता को लेकर भागने लगे। जनप्रतिनिधि रक्षक नहीं रहे-व्यापारी बन बैठे। जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। वर्षों से गरीब और गरीब होता जा रहा है। यह सब सरकारें-जनता के नौकर कर रहे हैं। अब बहुत हो चुका।

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दान या युद्ध?

आने वाले दिनों में तीन बड़े हिन्दी भाषी प्रदेशों में विधानसभा के लिए मतदान होना है। एक बार फिर हमारे हाथ में बड़ा अवसर आया है। हम देश का भविष्य बदलने की शुरुआत कर सकते हैं। युवा ही कर्णधार हैं, भविष्य है। अशिक्षित-बेरोजगार कब तक रहोगे? कब तक पेट भरने के लिए पलायन करते रहोगे? कब तक मानव तस्करी और मादक पदार्थों की मार खाएंगे? ये नेताओं के विषैले चेहरे कब बदलेंगे? आज हमारे हाथ में है। किसी का लिहाज किया और अपना ही गला कटवाया समझो। धर्म, जाति, क्षेत्र, वंश आदि के दंश अभी हरे हैं। आगे इनको सुखा देना है। पटाखों की तरह चुन-चुनकर जला देना है। वरना, ये तुम्हारा भविष्य जला देंगे। उठो! अपने भविष्य को प्रकाशित करने के लिए मशाल हाथ में लो। भीतर के कृष्ण-संकल्प को दृढ़ करो। ‘परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।’ के उद्घोष के साथ टूट पड़ो। आपके हाथ में वोट का सुदर्शन चक्र है। आसुरी शक्तियों को धराशायी कर दो। विकास के मार्ग को बुहारना पड़ेगा। चारों ओर श्वेत कपड़ों में ‘विदेशी बबूल’ उग आए हैं। ईवीएम पर एक बटन दबाकर काट सकते हो, अन्यथा अगले पांच साल ये तुम्हें काटते रहेंगे। तुम्हारे नाम से उधार लेते रहेंगे, घी पीते रहेंगे। नए सिरे से देश को आजाद करना है। बन जाओ भगतसिंह, अपने बच्चों के भविष्य के लिए। वरना, कल तुम भी असुर बन जाओगे।

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