इसका आशय एक चुनाव परिणाम अथवा नए मुख्यमंत्रियों के नामों की घोषणाओं से समझ में नहीं आएगा। सन् 1947 के बाद से आज तक कभी कर्मयोगियों -सद्पुरुषों- भविष्य को ध्यान में रखकर मुख्यमंत्रियों का चुनाव नहीं हुआ। लोकतंत्र में यह एक नया मील का पत्थर साबित होगा। इसमें अनुभव का आधार तथा भविष्य के लिए नए नेतृत्व तैयार करने का इरादा, दोनों पहलू दिखाई दे रहे हैं। इससे बड़ा संकेत यह भी है कि भाजपा साधारण कार्यकर्ता- पिछड़े वर्ग को भी उच्च पद पर आसीन कर सकती है। अब तक तो व्यक्ति ही पार्टियों से बड़ा होने लगा था। नेता के स्थान पर भस्मासुर बन रहे थे। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के मनोनीत मुख्यमंत्रियों और उनकी टीम को बधाई और शुभकामनाएं। तीनों ही प्रदेशों के नए मुख्यमंत्री जनता के बीच रहने वाले हैं। जनता की समस्याओं-दुःख दर्द को जानते भी हैं। भ्रष्टाचार और अफसरशाही के शिकंजे से परिचित भी हैं।
इस बार चुनावों की विशेषता यह भी रही कि जहां कांग्रेस ने हर राज्य में अलग क्षत्रप उतारे, वहीं भाजपा ने पार्टी और मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा। देश में एकात्म स्वरूप का बिगुल बजाया। एक शब्द- एक व्यक्ति प्रवाहित रहा संपूर्ण प्रक्रिया में। प्राणों की समता- अश्वत्थ वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित रहा। नए चेहरों में भी कोई विवाद का अवसर नहीं। पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मौन सहभागिता स्पष्ट परिलक्षित हुई है। भाजपा ने यह भी सिद्ध करने का प्रयास किया है कि वह संघ की एक शाखा मात्र है। संघ ही मातृ संस्था है। ऊर्जावान्-श्रमजीवी-कर्मयोग की तिकड़ी है। तभी तो राष्ट्र विरोधी तत्त्वों से संघर्ष संभव हो सकता है। सादगी एवं विनम्रता और आक्रामकता का ऐसा समीकरण! वाह !!
इन चुनावों में एक दिव्यता भी परिलक्षित हो रही है। इस बार मतदान में आंकड़े उतने प्रभावी नहीं हुए। इस बार राजनीति नहीं रही, बल्कि एक सुप्त सी, किन्तु ऊर्जावान विचारधारा मतदाता के मन में चल रही थी। चाहें तो इसको सनातन धारा कह सकते हैं। ध्रुवीकरण कह सकते हैं। इसमें भारतीयता, संस्कृति एवं सनातन शब्दों की प्राण प्रतिष्ठा उभरकर आई है। यह वैसी ही बात है जैसे आर्टिकल 370 को हटाने की बात है। अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों की मौन भूमिका तय भी कर रही है।
अनुभव से आगे निष्ठा
तीनों प्रदेशों में दो-दो उपमुख्यमंत्री बनाना बड़ा, साहसी और लोकतंत्र की भावी दिशा तय करने वाला कदम है। न वंशवाद – न धनबल- न दादागीरी।
दीया कुमारी को महिला प्रतिनिधि के रूप शामिल कर आधी आबादी को सकारात्मक संदेश दिया है। यह बात भी स्पष्ट है कि जो संगठन के लिए अच्छा कार्य करेगा, उसे फल मिलेगा।
मत चूके चौहान
इस दृष्टि से छत्तीसगढ़ में आदिवासी चेहरा दूरदर्शिता का परिणाम दिखाई पड़ता है। लोकसभा में 47 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है। अन्य 53 सीटों पर भी आदिवासी मतदाता प्रभावी है। छत्तीसगढ़ में ही 11 में से चार सीटें आरक्षित हैं। विधानसभा में भी आरक्षित 29 सीटों में भाजपा को 18 सीटें मिली हैं। स्थानीय राजनीति भी बहुत प्रभावित होगी।
मध्यप्रदेश के निर्णय का आधार ओबीसी वोट बैंक है। कांग्रेस 2024 के चुनाव में जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाने वाली है। ओबीसी उसका बड़ा मुद्दा है। उसका उत्तर मिल गया। यादव का नाम उत्तरप्रदेश-बिहार के मतदाताओं को भी प्रभावित करेगा। सत्ता के केंद्र में बदलाव भी आया है। अब तक सत्ता पर मध्य और उत्तर क्षेत्र हावी रहता था। अब नया केंद्र मालवा बन गया है। पार्टी में कद्दावर नेताओं को एक सांचे में डाल दिया। वरिष्ठ और अनुभव से निष्ठा आगे निकल गई। जो पांच सांसद जीते हैं- शायद वे भी मुख्यमंत्री का सपना लिए बैठे थे। विशेष रूप से प्रहलाद पटेल और कैलाश विजयवर्गीय । पांच साल बाद तो ये दौड़ में पिछड़ चुके होंगे।
इस बार के नए निर्णय लोकतंत्र का नया सूर्योदय करेंगे। सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सी नीतियां मिलने की शुभ शुरुआत होगी। युवा आगे बढ़ेगा। ‘मेक इन इण्डिया’ जैसे नए नारे देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाते हुए नए रोजगार उपलब्ध कराएंगे। भ्रष्टाचार के पिशाच से मुक्ति मिलेगी। विश्व पटल पर हमारे नए युग का नए ढंग से स्वागत होगा!