देश की हर सफलता पर खुशियां मनाना अच्छी बात है। देश का हर नागरिक दिल से चाहता है कि भारतीय टीम फाइनल भी जीते और वर्ल्ड कप पर कब्जा करे। लेकिन जागरूक नागरिकों का यह भी कर्त्तव्य है कि खेल से होने वाले मनोरंजन में वे इतना न डूब जाएं कि देश और विशेष तौर से नई पीढ़ी से जुड़े महत्त्वपूर्ण विषयों से उसका ध्यान ही हट जाए।
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‘ऐतिहासिक’ चुनाव
इन दिनों पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों को मिनी आम चुनाव भी कहा जा रहा है। ये चुनाव प्रदेशों ही नहीं, पूरे देश के भविष्य से जुड़े हुए हैं। आजादी के 76 साल हो चुके हैं। देश का लोकतंत्र तो धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है लेकिन राजनीति में बहुत सी बुराइयां ऐसी हैं, जो घटने के बजाय बढ़ रही हैं। इनमें अपराधीकरण, जातिवाद, चुनाव में धन-बल का दुरुपयोग, जनप्रतिनिधियों का भ्रष्ट आचरण जैसी बुराइयां शामिल हैं। देश में शिक्षा का स्तर जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसे देखते हुए युवा पीढ़ी से उम्मीद की जा रही है कि राजनीति पर चढ़ी कालिख की इन परतों की धुलाई का काम वह अब अपने हाथों में लेगी। लोकतंत्र का उत्सव कहे जाने वाले चुनावों की गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेगी। लेकिन चुनावों के प्रति उसकी उदासीनता निराशाजनक स्थितियां पैदा कर रही है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव पांच साल में एक बार होते हैं। यही मौका होता है जब देश-प्रदेश के हित-अहित से जुड़े मुद्दों पर सार्वजनिक चर्चाएं होती हैं। प्रत्याशियों का चयन होता है। पार्टियों पर लोकतंत्र की स्वस्थ परम्पराएं अपनाने के लिए दबाव बनाया जा सकता है। भविष्य के लिए अच्छी कार्य योजनाओं को घोषणा-पत्रों में शामिल करवाया जा सकता है। आपराधिक प्रवृत्ति और जाति-धन-बल के आधार पर चुनाव लड़ने वालों पर अंकुश लगाया जा सकता है। कुल मिलाकर भविष्य की धारा मोड़ी जा सकती है। और इस कार्य का बीड़ा देश की युवा शक्ति से बेहतर कोई नहीं उठा सकता।
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